International Mother Language Day: रांची विवि के जनजातीय भाषा विभाग में नौ विषयों की पढ़ाई होती है. इन नौ विषयों में 350 से अधिक विद्यार्थी मातृभाषा का ज्ञान हासिल कर रहे हैं. पंचपरगनिया में 70, कुड़माली में 75, कुड़ुख में 90, मुंडारी में 43, नागपुरी में 100, खोरठा में 75, हो में 22, संताली में 36 और खड़िया के नौ विद्यार्थी शामिल हैं. वहीं 60 से अधिक विद्यार्थी शोध कर रहे हैं. इनमें नागपुरी भाषा में 27 शोधकर्ता हैं. इन नौ भाषाओं में झारखंड, बिहार और बंगाल के विद्यार्थी शामिल हैं. चिंता की बात है कि पंचपरगनिया और हो में स्थायी शिक्षक नहीं हैं.
राज्य के प्लस टू विद्यालयों में जनजातीय और क्षेत्रीय भाषा की पढ़ाई होती है, लेकिन शिक्षक ही नहीं हैं. राज्य गठन के 22 वर्ष बाद भी इन विद्यालयों में जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा के शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हो पायी है. अब तक शिक्षकों के पद भी सृजित नहीं हैं. प्लस टू स्तर पर संताली, मुंडारी, हो, खड़िया, कुड़ुख, कुरमाली, खोरठा, नागपुरी और पंचपरगनिया भाषा की पढ़ाई होती है. इनमें से एक भी विषय के शिक्षक का सृजित नहीं है. बिना शिक्षक के ही इन भाषाओं की पढ़ाई होती है और विद्यार्थी परीक्षा में शामिल होते हैं. शिक्षक नहीं होने के कारण इन विषयों की उत्तरपुस्तिका मूल्यांकन में भी परेशानी होती है. कई विषयों की कॉपी का मूल्यांकन विवि के शिक्षकों से कराया जाता है.
राज्य के प्राथमिक विद्यालयों में मातृभाषा में पढ़ाई शुरू हुई है. पहले चरण में राज्य के 250 विद्यालयों में तीसरी कक्षा तक पांच भाषाओं में पढ़ाई शुरू हुई है. इसके लिए राज्य के 4600 विद्यालयों को चिन्हित किया गया है. इनमें चरणबद्ध तरीके से मातृभाषा में पढ़ाई शुरू की जायेगी.
प्लस टू विद्यालयों में जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा में शिक्षकों के पद सृजन की प्रक्रिया शुरू हुई है. विद्यालय में भाषा की पढ़ाई करनेवाले 80 या उससे अधिक विद्यार्थी होने पर उस भाषा में शिक्षक का पद सृजित किया जायेगा.
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खास बात है कि 90 फीसदी भाषाएं बोलनेवाले लोग एक लाख से भी कम है.
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डिजिटल दुनिया में वैश्विक स्तर पर 100 से भी कम भाषाओं का इस्तेमाल हो रहा है.
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संयुक्त राष्ट्र के अनुसार दुनिया के करीब 40 फीसदी लोगों ने ऐसी भाषा में शिक्षा हासिल नहीं की, जिसे वे बोलते या समझते हैं
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यूनेस्को ने 17 नवंबर 1999 को मातृभाषा दिवस मनाने की घोषणा की थी
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वर्ष 2000 में पहली बार 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया गया था
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संयुक्त राष्ट्र के अनुसार हर दो हफ्ते में एक भाषा गायब हो जाती है यानी दुनिया एक पूरी सांस्कृतिक और बौद्धिक विरासत खो देती है
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संयुक्त राष्ट्र के अनुसार दुनिया में करीब 6900 भाषाएं बोली जाती हैं
डॉ प्रदीप कुमार बोदरा हो भाषा के जानकार हैं. संत जेवियर्स कॉलेज में रिसर्चर के पद पर कार्यरत हैं. उन्होंने हो साहित्य में मुहावरे व कहावतें एक अध्ययन विषय पर रिसर्च किया है. उनकी हो कविताओं का राष्ट्रीय स्वर कविता संग्रह और हो व्याकरण किताब प्रकाशित हो चुकी है. जल्द ही हो भाषा में मुहावरा संग्रह, कहावत संग्रह, पहेली संग्रह, हो साहित्य, हो लोक गीत संग्रह, नाटक संग्रह, आधुनिक हो कहानी संग्रह का प्रकाशन होनेवाला है. वह बताते हैं कि शुरू से ही हो मातृभाषा के प्रति लगाव रहा है. अपनी संस्कृति को बचाना जरूरी है.
डॉ हाराधन कोइरी ने एमए और पीएचडी की उपाधि हिंदी में हासिल की है, लेकिन कविता लेखन पंचपरगनिया में करते हैं. पंचपरगनिया भाषा में इनके कई लेख प्रकाशित हो चुके हैं. पंचपरगनिया काव्य संग्रह टुसू और विनन्दिया रामकथा का विश्लेषण कर चुके हैं. वहीं पंचपरगनिया में गीता का अनुवाद कर रहे हैं. डॉ हाराधन कहते हैं : महाकवि विद्यापति ने मातृभाषा को के महत्व को रेखांकित करते हुए लिखा है. देसियल बयना सब जन मिट्ठा, तैं तैसन जम्पओ अवहट्ठा अर्थात अपना देश या अपनी भाषा सबको मीठी लगती है. यही जानकर मैंने इसकी रचना की है.
डॉ आनंद किशोर डांगी लातेहार में नगर विकास विभाग में सिटी मिशन मैनेजर के पद पर कार्यरत हैं. साथ ही खोरठा भाषा के विकास के लिए 2007 से कार्य कर रहे हैं. उनकी छह पुस्तकें खोरठा भाषा में प्रकाशित हो चुकी हैं और दो किताबें जल्द ही प्रकाशित होनेवाली हैं. इसके अलावा खोरठा के विकास के लिए डिजिटल पत्रिका खोरठा टाइम्स, यू ट्यूब चैन, फेसबुक पेज आदि पर लिखते हैं. खोरठा भाषा में शॉर्ट फिल्म और कहानी का भी लेखन करते हैं. डॉ आनंद कहते हैं : भाषा के विकास के लिए मानक रूप तैयार हो गया है. अब प्रचार प्रसार की आवश्यकता है.
डॉ बीरेंद्र कुमार महतो, रांची विवि के टीआरएल में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं. नागपुरी भाषा में इनकी 15 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं. नागपुरी भाषा के तात्विक अध्ययन पर पीएचडी की डिग्री ली है. त्रैमासिक पत्रिका गोतिया और मासिक पत्रिका छोटानागपुर एक्सप्रेस का संपादन कर रहे हैं. स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम में इनकी एक नागपुरी कविता व कहानी शामिल है. नागपुरी भाषा का पहला कार्टून कामिक्स हुलचुलिया सामू भी प्रकाशित कर चुके हैं. डॉ महतो ने कहा कि अधिक से अधिक अपनी भाषा में साहित्य रचना की जरूरत है. भाषा संस्कृति की जीवन रेखा है.
जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा विभाग रांची विवि से सेवानिवृत्त रोज केरकेट्टा ने खड़िया भाषा के विकास के लिए काफी काम किया है. खड़िया लोक कथाओं का साहित्यिक और सांस्कृतिक अध्ययन (शोध-ग्रंथ), प्रेमचंदाअ लुङकोय (प्रेमचंद की कहानियों का खड़िया अनुवाद), सिंकोय सुलोओ, लोदरो सोमधि (खड़िया कहानी-संग्रह), हेपड़ अवकडिञ बेर (खड़िया कविता एवं लोक कथा-संग्रह), खड़िया निबंध संग्रह, खड़िया गद्य-पद्य संग्रह, जुझइर डांड़ (खड़िया नाटक-संग्रह), सेंभो रो डकई (खडि़या लोकगाथा), स्त्री महागाथा की महज एक पंक्ति (वैचारिक लेख-संग्रह) एवं बिरुवार गमछा तथा अन्य कहानियां (कथा-संग्रह), अबसिब मुरडअ( कविता संग्रह,) पगहा जोरी जोरी रे घाटो (कहानी संग्रह) प्रकाशित हो चुके हैं. उनका मानना है कि खड़िया भाषा के विकास में काफी काम बाकी है. साहित्य लेखन, अनुवाद, दस्तावेजीकरण का पूरा काम होना है. इन सबकी बहुत आवश्यकता है. वर्तमान में उपन्यास व आत्म संस्मरण पर कार्य जारी है.
रतन कुमार महतो सत्यार्थी कुड़माली भाषा पर कार्य कर रहे हैं. मौसम ज्ञान विज्ञान विभाग से 2017 में रिटायर होने के बाद कुड़माली भाषा में एमए की डिग्री ली. नेट क्वालिफाइ किया. हलुक कविता, मधु मंजरी, मधु धारा कविता संग्रह प्रकाशित हो चुका है, जबकि तीन कविता संग्रह प्रकाशित होनेवाले हैं. रतन महतो कहते हैं : 1979 से कुड़माली भाषा में कविता लिख रहा हूं. भाषा के विकास के लिए कुड़माली विषय की किताबों का प्रकाशन होना चाहिए़ महिला साहित्यकारों को आगे आना होगा.
डॉ किशोर सुरिन रांची विवि के जनजातीय भाषा एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग में अस्सिटेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं. वह मुंडारी विषय को लेकर काफी काम करते रहे हैं. विभाग में मुंडारी भाषा में अनुवाद का कार्य कर रहे हैं. इसमें सूचना का अधिकार, ग्राम पंचायत, पांचवीं अनुसूची, संविधान का अनुवाद शामिल है. इसके लिए एक कमेटी बनी है. डॉ किशोर ने कहा कि आने वाले समय में अंग्रेजी की महत्वपूर्ण किताबें, जिनमें मुंडारी भाषा का जिक्र है, उसका भी अनुवाद किया जायेगा.
विश्व में धार्मिक आंदोलन, राष्ट्रीय आंदोलन, श्रमिक आंदोलन, नारी मुक्ति आंदोलन हुए हैं, लेकिन भाषा की मर्यादा की रक्षा के लिए हुआ आंदोलन 20वीं शताब्दी की देन है. पूर्वी पाकिस्तान के लोगों ने अपनी मातृभाषा बांग्ला के अस्तित्व की रक्षा के लिए 21 फरवरी 1952 को विरोध प्रदर्शन किया. इसमें भाषा प्रेमी जब्बर, रफीकुल, वरकत आदि युवाओं ने अपने प्राणों की आहुति दी. इसके बाद विश्व मातृभाषा प्रेमिक समिति, बांग्लादेश और अन्य राष्ट्रों ने विश्व की सभी भाषाओं की सुरक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ में 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की मान्यता के लिए प्रस्ताव रखा.
संयुक्त राष्ट्र संघ ने विश्व की 67003 भाषाओं (कुछ भाषाएं लुप्त) की सुरक्षा को लेकर 17 नवंबर 1999 को 21 फरवरी को विश्व मातृभाषा दिवस के रूप मनाने की स्वीकृति दी. अब इस दिवस को मर्यादा के साथ पालन करना विश्व के हर मातृभाषा प्रेमियों का पुनीत कर्तव्य है. इस दिन अपनी-अपनी मातृभाषा की सुरक्षा तथा नियमित चर्चा के लिए संकल्प लेना चाहिए. याद रखना होगा कि हमारी मातृभाषा जन्मजात नहीं है. इसे अनुकरण के माध्यम से सीखना तथा अर्जन करना पड़ता है. अपनी मातृभाषा के साथ संपर्क में रहना चाहिए. यह सब तभी संभव होगा जब बच्चों कीप्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में दी जायेगी. इसके लिए हमें सचेत होना पड़ेगा.
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पंचपरगनिया भाषा के विभागाध्यक्ष तारकेश्वर ने कहा : अपनी मातृभाषा को लेकर कोई झिझक नहीं होनी चाहिए. मातृभाषा को लेकर विद्यार्थियों में जागरूकता के साथ दाखिला लेनेवालों की संख्या भी बढ़ी है.
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नागपुरी भाषा के विभागाध्यक्ष उमेश नंद तिवारी ने कहा कि मातृभाषा जीभ है, जिसे काटने के बाद जीवित तो रहा जा सकता है, लेकिन भावनाओं को व्यक्त नहीं किया जा सकता. भाषा व्यक्ति के व्यक्तित्व और अस्तित्व को प्रकट करती है.
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कुड़ुख भाषा के विभागाध्यक्ष हरि उरांव ने कहा कि नयी शिक्षा नीति 2020 स्थानीय, क्षेत्रीय व मातृभाषा पर केंद्रित है. हालांकि सबसे पहले शिक्षकों की कमी को पूरा करना है.
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रामलखन सिंह यादव कॉलेज के सहायक प्रो खालिद अहमद ने कहा कि मातृभाषा को लेकर कोई हीन भावना न रखें. सरकारी स्तर पर भाषाओं का दस्तावेजीकरण, भाषाओं में रंगमंच का आयोजन जरूरी है.
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डीएसपीएमयू में कुरमाली भाषा के विभागाध्यक्ष डॉ पीपी महतो के अनुसार झारखंडी भाषाओं का लोक साहित्य बेहद समृद्ध है. अगर इन्हें अहमियत दी जाए, तो समाज के नीतिज्ञान के लिए बेहतर होगा.