झारखंड की नेचुरल ट्राइबल साड़ी, सिल्क सूट का अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेला में जलवा

ट्राइबल महिलाएं शादी के पहले हरे रंग की साड़ी और शादी के बाद लाल रंग की साड़ी पहनती हैं, जिसकी बिक्री यहां की जा रही है. आशीष सत्यव्रत साहू ने बताया की उनके द्वारा बेचे जा रहे कपडे पारंपरिक और ओर्गेनिक है

By Prabhat Khabar News Desk | November 18, 2023 10:35 AM

रांची : दिल्ली के प्रगति मैदान में लगे भारतीय अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेला में आनेवाले लोग प्रदर्शनी देखने के साथ-साथ खरीदारी का भी खूब लुत्फ उठा रहे है. झारखंड पैवेलियन में लगे ट्राइबल परिधान लोगों को खूब पसंद आ रहे हैं. झारखंड में तसर सिल्क बहुत बड़ी मात्रा में उत्पादित किया जाता है. ऐसे में पैवेलियन में सिल्क की साड़ियां और सूट के स्टॉल पर खासी भीड़ दिखी. यहां मिलनेवाली साड़ियों पर ट्राइबल आर्ट का ही प्रिंट देखा जा रहा है. ट्राइबल परिधान की बिक्री कर रहे दामु बोदरा ने बताया की उनके स्टॉल पर सिल्क और कॉटन की पारंपरिक साड़ियां है.

जिसकी कीमत 1000 से 3500 रुपये तक है. उन्होंने बताया कि हम अपने कपड़ो पर प्राकृतिक रंगों द्वारा अपने ही कारीगरों द्वारा पेंटिंग या कढ़ाई करवाते है, जिससे कि पहनने वाले को उसके नेचुरल लुक का आभास होता है. साथ ही हमारी कोशिश है कि हम अपनी लोक संस्कृति को अपने काम के माध्यम से लोगो तक पहुंचायें. जिसमे ट्राइबल डांस, इंस्ट्रूमेंट, प्रकृति की झलक मिलती है. ट्राइबल महिलाएं शादी के पहले हरे रंग की साड़ी और शादी के बाद लाल रंग की साड़ी पहनती हैं, जिसकी बिक्री यहां की जा रही है. जोहार ग्राम के नाम से झारखंड के पारंपरिक परिधानों को बेचने वाले आशीष सत्यव्रत साहू ने बताया की उनके द्वारा बेचे जा रहे कपडे पारंपरिक और ओर्गेनिक है, ये कपडे झारखंड के आदिवासी समुदाय जैसे खड़िया, मुंडा, उरांव आदि उपयोग करते हैं| पैवेलियन में झारखंड की पिनदना साड़ी जो की प्रदेश महिलाएं विशेष अवसरों पर पहनती हैं,

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वीरू गमछा पुरुषों के लिए और कुखना शॉल (जो की मोटा कपडा होता है) से बने आधुनिक परिधान की बिक्री कर रहे हैं. इसके अलावा उनके पास जैकेट, ओवरकोट, शर्ट, टोपी, मास्क और बेतरा लुगा (जिसे महिलायें बच्चो को साथ लेने के लिए उपयोग करती हैं) उपलब्ध है. उनकी पैकिंग भी झारखंड के स्टेट ट्री सखुआ के पत्तो के साथ किया जाता है. उन्होंने बताया की उन्होंने शुरुआत मार्च 2019 में जिला उद्योग केंद्र के प्रोजेक्ट पास होने के बाद शुरू की थी, जिसके बाद उन्हें सरकार की तरफ से 15 प्रतिशत की सब्सिडी भी मुहैया करायी गयी थी. वर्तमान में वे सभी कपड़े स्थानीय बुनकरों से खरीदते हैं. जिससे उनके संस्थान के साथ लगभग 30 बुनकर परिवारों को भी रोजगार मिलता है.

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