अंतरराष्ट्रीय विधवा दिवस आज, पति खोया, लेकिन बच्चों के लिए खुद को किया मजबूत

हर साल 23 जून को अंतरराष्ट्रीय विधवा दिवस मनाया जाता है. इसके पीछे का उद्देश्य है कि विधवा महिलाओं की स्थिति में सुधार हो सके. ताकि वे भी बाकी लोगों की तरह सामान्य जीवन जी सकें. उन्हें बराबरी का हक मिले.

By Prabhat Khabar News Desk | June 23, 2023 8:16 AM

रांची, लता रानी : आज अंतरराष्ट्रीय विधवा दिवस है. इस दिन का उद्देश्य विधवा महिलाओं की स्थिति में सुधार लाना है. इसकी घोषणा संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 22 दिसंबर 2010 को की थी. अंतरराष्ट्रीय विधवा दिवस के पीछे का उद्देश्य है कि विधवा महिलाओं की स्थिति में सुधार हो सके. ताकि वे भी बाकी लोगों की तरह सामान्य जीवन जी सकें. उन्हें बराबरी का हक मिले. क्योंकि कहीं न कहीं विधवा महिलाओं को वो बराबरी और हक नहीं मिलता जिसकी वे हकदार हैं. इस दिन पर कुछ ऐसी ही महिलाओं के संघर्ष की कहानी बयां की जा रही हैं, जो विपरीत परिस्थितियों में भी संघर्षशील हैं.

शादी के पांच वर्ष बाद पति का निधन हो गया, लेकिन हिम्मत नहीं हारी

करमटोली निवासी संगीता टोप्पो कहती हैं : फरवरी 1999 में शादी हुई. एक महीने बाद ही पता चला कि पति को ब्लड कैंसर है. इस दौरान पति की खूब सेवा की, लेकिन 2004 में उनका निधन हो गया. अब सिर्फ बेटा का साथ रह गया. संगीता ने काफी संघर्ष कर बेटे का पालन-पोषण किया और इंजीनियर बना दिया. संगीता कहती हैं : शादी के दूसरे दिन ही शिक्षक परीक्षा का रिजल्ट घोषित हुआ, जिसमें मेरा भी नाम शामिल था. पहली पोस्टिंग पश्चिमी सिंहभूम में हुई. बाद में बंधगांव में पोस्टिंग हुई. पति के निधन के बाद लगा कि मेरी जिंदगी ही उजड़ गयी. लोगों के ताने भी सुनने पड़ते, लेकिन हिम्मत नहीं हारी. मेरा मानना है कि हर महिला को आत्मनिर्भर होना जरूरी है. परिस्थितियों से लड़ना हर लड़की को आना चाहिए.

लोगों को बदलनी होगी अपनी मानसिकता

रांची में पली बढ़ी मंजू दिवे की 1984 में लातेहार में शादी हुई. 14 वर्ष पहले पति का निधन हो गया. इसके बाद तीन बेटी और एक बेटे की जिम्मेदारी आ गयी. लेकिन बच्चों की जिम्मेदारी से मंजू घबरायी नहीं. घर में ही एक छोटी सी दुकान चलाकर चारों बच्चों की परवरिश की. आज बड़ी बेटी टीसीएस में कार्यरत है. वहीं दूसरी बेटी बीएसएनएल में इंजीनियर हैं. तीसरी बेटी अस्पताल में सेवा दे रही हैं. वहीं बेटा रिम्स से एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहा है. मंजू दिवे कहती हैं : समाज की यातनाओं ने डरना नहीं चाहिए. कर्म आपको बड़ा बनाता है. विधवाओं को लेकर लोगों को अपनी मानसिकता बदलनी चाहिए.

ये सामाजिक संगठन निभा रहे अहम भूमिका

विश्व हिंदू परिषद सेवा विभाग के अंतर्गत सामूहिक विवाह कराये जाते हैं. इसमें विधवा विवाह भी शामिल है. विधवा जोड़े स्वयं रिश्ता तय करते हैं, जिसमें विभाग सहयोग करता है. प्रांत सेवा विभाग के सह सेवा प्रमुख अशोक अग्रवाल ने कहा कि किसी के घर बसाने से काफी खुशी होती है.

नारी शक्ति सेना दो परिवारों की सहमति से विधवा विवाह कराती है. अब तक 250 विधवा महिलाओं का विवाह संपन्न हो चुका है. सेना अध्यक्ष सुचिता तिवारी ने कहा कि विधवाओं को भी समाज में जीने का अधिकार है. उन्हें भी दूसरा विवाह करने का हक है.

समाज के ताने सुने लेकिन मदद भी मिली

पेशे से शिक्षिका सुप्रिता झा हजारों महिलाओं के लिए आदर्श हैं. बच्चों को शिक्षित कर रही हैं. वह कहती हैं : 2005 में शादी हुई, लेकिन 2013 में पति का हमेशा के लिए साथ छूट गया. उस वक्त पति-पत्नी दुमका में थे. पति के निधन के बाद बेटे संग सुप्रिता रांची अपने घर आ गयीं और बेटे की परवरिश में जुट गयी. बेटा अब 11वीं का छात्र है. सुप्रिता कहती हैं : जीवन में बहुत सारी सामाजिक बाधाएं आयीं, लेकिन उसे पार कर लिया. समाज के ताने भी सुने, लेकिन सहयोग के हाथ भी बढ़े.

Next Article

Exit mobile version