International women day आदिवासी समाज को समतामूलक बताया गया है, जबकि महिलाओं के लिए अलग है सच्चाई

International women day : भारतीय समाज में महिलाएं किन समस्याओं से जूझती हैं और वे किस तरह अपने अधिकारों को प्राप्त कर सकती हैं, जानिए महिलाओं के जरिए.

By Rajneesh Anand | March 6, 2024 8:33 PM
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आदिवासी समाज को इगैलिटेरियन (समतामूलक) समाज के तौर पर प्रस्तुत किया जाता है, जहां प्रत्येक व्यक्ति समान है और उनमें किसी तरह का भेदभाव नहीं किया जाता है, जबकि सच्चाई इससे अलग है. उक्त बातें संत जेवियर काॅलेज के इतिहास विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर अंजू टोप्पो ने महिला दिवस के अवसर पर प्रभात खबर द्वारा आयोजित परिचर्चा के दौरान कही.

समानता का पैमाना क्या हो

अंजू टोप्पो ने कहा कि आदिवासी समाज की समानता को किस तरह दिखाया जाता है, यह जानना हमारे लिए बहुत जरूरी है. अगर आदिवासी समाज में हम एक साथ नृत्य करते हैं, तो क्या आप इसे समानता का पैमाना मानेंगे? या फिर हम खुलकर बातचीत करते हैं, त्योहार मनाते हैं, इसे मानेंगे. मेरा मानना है कि यह चीजों को रोमांटिसाइज करने का तरीका है, जिसके जरिए यह बताया जाता है कि सबकुछ प्रेमपूर्ण है. लेकिन, यह कहना गलत नहीं होगा कि अन्य समाज की तुलना में आदिवासी समाज में ज्यादा समानताएं हैं. परंतु जब बात आती है संपत्ति की, जमीन की तो क्यों भेदभाव शुरू हो जाता है? लड़कियों को जमीन ना मिले और समुदाय को जमीन मिले, यह बात मुझे अनुचित लगती है, लड़के भी कई बार अपनी सामुदायिक जमीन को गलत हाथों में दे देते हैं, उनसे सवाल क्यों नहीं होता है.

मुस्लिम महिलाओं को शिक्षा की सख्त जरूरत

वहीं इस मौके पर बीएयू की असिस्टेंट प्रोफेसर डाॅ ताजवर इजहार ने कहा कि हमारे समाज में खासकर मुस्लिम समाज की बात करें तो महिलाएं काफी पिछड़ी हैं. उनमें आधुनिक शिक्षा की काफी कमी है और उन्हें इस दिशा में काफी कुछ करना है. मैं एक ऐसे परिवार से आती हूं जहां शिक्षा को काफी महत्व दिया गया, खासकर मेरी मां ने हमें शिक्षा को लेकर काफी प्रेरित किया. मेरा यह मानना है कि घर में मिलने वाली शिक्षा का आपके जीवन पर अमिट प्रभाव होता है, इसलिए उसे बेहतर तरीके से दिया जाना चाहिए और उनमें लैंगिक भेदभाव के लिए जगह नहीं होनी. हमारे समाज में बच्चियां कुपोषित हैं और महिलाएं एनीमिया की शिकार हैं, इसकी वजह लैंगिक असमानता है, जो नहीं होनी चाहिए.

महिलाएं शारीरिक रूप से कमजोर नहीं


सोशल एक्टिविस्ट और महिला अधिकारों के लिए वर्षों से संघर्षरत डाॅ किरण ने कहा कि अकसर यह कहा जाता है कि महिलाएं शारीरिक रूप से कमजोर होती हैं, जबकि यह सच नहीं है. महिलाएं कतई शारीरिक रूप से कमजोर नहीं होती है. महिला जो एक जीवन का सृजन करती है और देश का भविष्य गढ़ती है वो कमजोर कैसे हो सकती है. उन्होंने कहा कि बात अगर महिलाओं के मुद्दों की हो तो सुरक्षा का मामला बहुत ही गंभीर है. एक महिला के शरीर को बिना उसकी मर्जी के छूना और उसे अपमानित करना घृणित अपराध है, लेकिन एक सर्वे में यह बात सामने आई कि बलात्कारियों को इसका कोई अफसोस नहीं है. वहीं लैंगिक भेदभाव भी हमारे समाज में व्याप्त है, जिसे खत्म करने की जरूरत है. आज भी लोगों की सोच इस तरह की है कि वे लड़कियों के साथ उनके जेंडर को लेकर भेदभाव करते हैं और उन्हें कमतर आंकते हैं. महिलाओं को अपने अधिकारों के लिए सचेत तो होना ही चाहिए, साथ ही अपने योगदान पर भी विचार करना चाहिए.

पेमेंट गैप आज भी बड़ा मुद्दा


संत जेवियर काॅलेज की असिस्टेंट प्रोफेसर निशा सिंह ने परिचर्चा में हिस्सा लेते हुए कहा कि बेशक समाज बहुत बदला है, लेकिन आज भी महिलाओं को काफी संघर्ष करना है. कार्यक्षेत्र की अगर बात करें तो पेमेंट गैप देखने को मिलता है. स्त्री और पुरुष को समान वेतन आज भी नहीं मिल पा रहा है, वहीं शिक्षा, स्वास्थ्य और राजनीति के क्षेत्र में भी महिलाएं पिछड़ी हैं और उन्हें अपनी जगह सुनिश्चित करने के लिए संघर्ष करना होगा. महिलाओं का स्वास्थ्य आज भी इग्नोर किया जाता है, जिसकी वजह से हमारे राज्य में लगभग 70 प्रतिशत महिलाएं एनीमिया की शिकार हैं.

गृहिणी सामाजिक व्यवस्था को संभालती हैं

साधना जो कि एक गृहिणी हैं, उन्होंने कहा कि अकसर यह कहा जाता है कि गृहिणी कुछ करती नहीं है, जबकि सच्चाई यह है कि अगर गृहिणी अपना काम ना करें तो पूरा परिवार और सामाजिक व्यवस्था ध्वस्त हो जाए. मैं तो इस तरह का बयान देने वालों को चुनौती देना चाहती हूं कि आप एक बार हमारी जगह आकर काम करें तो आपको यह पता चल जाएगा कि गृहिणी क्या करती हैं.

सवाल सिर्फ लड़कियों से पूछा जाता है


माॅडल एंजेल लकड़ा ने परिचर्चा के दौरान कहा कि जब मैंने ग्लैमर की दुनिया में जाने का निर्णय किया, तो मेरे घर में विरोध हुआ, क्योंकि उन्हें लगा कि यह निर्णय सही नहीं है. यहां खतरा है, जबकि यही निर्णय किसी लड़के का होता तो उससे सवाल नहीं किया जाता है. दरअसल हमारे समाज में परिवार की इज्जत बचाने की जिम्मेदारी सिर्फ लड़कियों की है, लड़कों से कोई उनके इज्जत के बारे में बात नहीं करता है.

महिलाओं के लिए एकजुटता जरूरी


ब्लाॅगर सुप्रिया ने कहा कि मैं अपने परिवार की बड़ी बेटी और ससुराल में बड़ी बहू हूं, मैंने अपने जीवन में घर में तो लैंगिक भेदभाव नहीं देखा, लेकिन यह कहूंगी कि कई बार सामाजिक जीवन में महिलाओं से ही मुझे वो सपोर्ट नहीं मिला, जो महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए जरूरी है. अगर महिलाएं बंटकर रहेंगी तो वे अपने अधिकारों की जंग हार सकती हैं, इसलिए जरूरी है एकजुटता की..

महिलाओं के मुद्दों को समझने की जरूरत

परिचर्चा की शुरुआत में प्रभात खबर डाॅट काॅम के संपादक गीतेश्वर प्रसाद सिंह ने महिलाओं को महिला दिवस की शुभकामनाएं दीं और यह कहा कि आज की यह चर्चा इसलिए जरूरी है क्योंकि हमारे देश में महिलाओं को जिस तरह का अवसर और सम्मान देने की बात हम करते रहे हैं, वो अभी तक संभव नहीं हो पाया है. उन्होंने कहा कि आज की यह परिचर्चा इसलिए भी जरूरी है कि क्योंकि महिलाओं के मुद्दे क्या हैं, यह हमें महिलाओं के नजरिए से जानना बहुत जरूरी है.

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