अभिषेक राॅय, रांची :
रांची की बेटी बिनिता घोष का जीवन दहशत के बीच गुजर रहा है. मिसाइल के धमाके से दिल दहल रहा है. यह स्थिति इस्राइल और हमास के बीच चल रहे युद्ध के कारण बनी है. आर्यपुरी (रातू रोड) की बिनिता ने अपने जो अनुभव साझा किये हैं, वह दहलाने वाला है. बिनिता तेल अवीव यूनिवर्सिटी (इस्राइल) में पीएचडी कर रही हैं. इधर, घर पर माता-पिता अपनी इकलौती संतान की सलामती की दुआ मांग रहे हैं. बिनिता से प्रभात खबर ने दूरभाष पर बात की, तो उसने पूरे हालात के बारे में विस्तार से बताया. बिनिता कहती हैं, हवाई हमले का कोई निश्चित समय नहीं है. जान बचाने के लिए सिर्फ 01:30 मिनट का समय मिलता है. इसमें ही अगले 72 घंटे का जुगाड़ लेकर बंकर में कैद होना पड़ रहा है. इस बीच परिजनों से बातचीत भी नहीं कर सकते.
बिनिता ने बताया कि बीते कुछ माह से ही परिस्थितियां बिगड़ चुकी थीं. कॉलेज में इस पर चर्चा करने की मनाही थी. सरकार ने चेतावनी दी थी कि सायरन बजते ही सभी बंकर में खुद को सुरक्षित कर लें. शनिवार (सात अक्तूबर) की सुबह 06:30 बजे पहली बार सायरन बजा, किसी तरह जान बचाने के लिए सभी बंकर की ओर भागे. बंकर में बंद होकर पहली बार युद्ध की परिस्थिति से रूबरू हुई. मिसाइल के धमाकों की गूंज सबके कानों तक पहुंच रही थी. इस दिन विवि की हॉस्टल सुप्रीटेंडेंट ने अगले आदेश तक सबको बंकर में बंद होने से पहले के नियम और शर्तों की जानकारी दी. इसके बाद सबके मोबाइल पर ऐप डाउनलोड कराया गया.
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यह खास ऐप मिसाइल हमले की सूचना और सायरन मोबाइल में भी देती है. इसके बाद से प्रत्येक दिन किसी एक वक्त बंकर में जाने का संकेत मिलता ही है. मंगलवार (10 अक्तूबर) को हमें राशन एकत्रित करने का समय दिया गया था. हॉस्टल बिल्डिंग के नीचे राशन दुकान पहुंची ही थी कि दोपहर 12 बजे दोबारा सायरन बजा. मैं तेजी से भागी और खुद को बिल्डिंग की सीढ़ी में छिपा लिया. अगले कुछ घंटे तक प्रार्थना करती रही. बिनिता ने बताया कि विवि परिसर में 10 भवन हॉस्टल के हैं. इसके एक तल में एक विशाल कमरा और सीढ़ी का कॉरिडोर स्टील के चादर से बना है, इसे ही बंकर के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है. बिनिता का कमरा हॉस्टल के सातवें तल्ले पर है, जहां से बंकर तक पहुंचने में 15 सेकेंड का समय लगता है.
मंगलवार शाम को बिनिता ने भारतीय दूतावास से संपर्क कर घर वापसी की गुहार लगायी. इस बीच उन्हें जानकारी दी गयी कि इस्राइल में भारतीय मूल के 18000 लोग फंसे हैं. इनमें 7000 विद्यार्थी भी हैं.
डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी यूनिवर्सिटी से एमएससी जूलॉजी करने के बाद बिनिता ने रिसर्च का रास्ता चुना. भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर में शोध से जुड़ी. प्रवेश परीक्षा से तेल अवीव यूनिवर्सिटी के फैकल्टी ऑफ लाइफ साइंस से शोध से जुड़ने का अवसर मिला. फरवरी 2022 से बिनिता डेवलपमेंट ऑफ बायोलॉजी इन स्टेम सेल्स विषय पर शोध कर रही है. बिनिता 2017 में डीडी कोसांबी यंग साइंटिस्ट अवार्ड हासिल कर चुकी है. इसके अलावा 2019 में होमी भाभा सेंटर फॉर साइंस एजुकेशन और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च की ओर से वेरॉनिका रोडरिगस अवार्ड फॉर प्रिजर्वेशन का सम्मान भी हासिल कर चुकी है. बिनिता के पिता विश्वजीत घोष इस्कॉन के प्रचारक हैं और मां रूपा घोष गृहिणी हैं.