Jagannath Temple Ranchi: ओड़िशा के पुरी नहीं जा सकते, तो रांची में ही कीजिए भगवान जगन्नाथ के दर्शन
रांची का जगन्नाथ मंदिर अपनी वास्तुकला, खूबसूरती की चमक से परे भक्ति के लिए प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से एक है. यह पवित्र स्थान शांति और सुकून के साथ ही प्राकृतिक सुंदरता के लिए पर्यटकों को आकर्षित करता है, जो इसे रांची में एक प्रिय स्थल बनाता है.
Jagannath Temple Ranchi- रांची की हरी-भारी पहाड़ी पर बना जगन्नाथ मंदिर सबसे प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से एक है. यह भक्तों और पर्यटकों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित कर लेता है. यहां लोग भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने के लिए दूर-दूर से आते हैं. खासकर यहां का रथ मेला आकर्षण का केंद्र है. पुरी की तर्ज पर भगवान जगन्नाथ का रथ यहां भी खींचा जाता है. 15 दिन तक मेला लगता है, जहां झारखंड की संस्कृति और परंपरा देखने को मिलती है.
पुरी की तर्ज पर बना है रांची में भगवान जगन्नाथ का मंदिर
मंदिर के साथ-साथ यहां का प्राकृतिक सौंदर्य भी लोगों को आकर्षित करता है. लोग मंदिर में पूजा-अर्चना करने के बाद प्रकृति के बीच शांति और सुकून के पल भी बिताते हैं. राजधानी रांची के धुर्वा स्थित जगन्नाथ मंदिर का निर्माण ओड़िशा के जगन्नाथ मंदिर की वास्तुकला को ध्यान में रखकर कराया गया. यह बेहद भव्य है.
जगन्नाथ मंदिर का इतिहास
रांची के जगन्नाथ मंदिर का इतिहास में काफी पुराना है. 17वीं शताब्दी में नागवंशी राजा ने इस मंदिर का निर्माण कराया था. भगवान जगन्नाथ को विष्णु का अवतार माना गया है. इस मंदिर में भगवान जगन्नाथ बहन सुभद्रा और भैया बलराम के साथ विराजमान हैं. जगन्नाथपुर मंदिर के संस्थापक के उत्तराधिकारी लाल प्रवीर नाथ शाहदेव के मुताबिक, 1691 में बड़कागढ़ में नागवंशी राजा ठाकुर एनीनाथ शाहदेव ने रांची में धुर्वा के पास भगवान जगन्नाथ मंदिर का निर्माण कराया था. जगन्नाथ मंदिर में कई प्रकार के नवीनीकरण व विस्तार हुए हैं, जिसकी वजह से यह अब और भव्य हो गया है.
रांची में जगन्नाथ मंदिर की स्थापना की कहानी
जानकारों की मानें, तो इस मंदिर का निर्माण वर्ष 1691 में हुआ था. तब बड़कागढ़ नाम के एक क्षेत्र में नागवंशी राजा ठाकुर एनीनाथ शाहदेव का शासन हुआ करता था. एक दिन राजा ठाकुर एनीनाथ शाहदेव ने ओड़शा के पुरी शहर जाने का मन बनाया. वह एक नौकर और कर्मचारियों के साथ पुरी चल पड़े. पुरी पहुंचकर उन्होंने भगवान जगन्नाथ की कहानी सुनी. नौकर भगवान जगन्नाथ का भक्त हो गया. सोते-जागते उसकी जुबान पर महाप्रभु का नाम रहता था.
कहते हैं कि एक रात जब राजा समेत सभी कर्मचारी सो रहे थे, तब राजा ठाकुर के नौकर को भूख लगी. भूख से व्याकुल नौकर को कुछ सूझ नहीं रहा था कि वह क्या करे. ऐसे में उसने भगवान जगन्नाथ से प्रार्थना की. भगवान अब आप ही मेरी भूख मिटाइए. कहते हैं कि महाप्रभु जगन्नाथ भेष बदलकर नौकर के पास आए. अपनी भोगथाली में भोजन लाकर उसे दिया. इस तरह नौकर की भूख मिटी और उसका मन शांत हुआ.
सुबह उठकर नौकर ने यह कहानी राजा ठाकुर एनीनाथ शाहदेव को सुनाई. राजा को नौकर की बात सुनकर हैरत हुई. फिर रात हुई. रात में भगवान जगन्नाथ राजा एनीनाथ के स्वप्न में आए. भगवान ने कहा कि हे राजन, यहां से लौटने के बाद तुम अपने राज्य में भी मेरे विग्रह की स्थापना कर पूजा-अर्चना करो. इसके बाद राजा ने संकल्प लिया की ओड़िशा से लौटते ही वह अपने राज्य में भगवान जगन्नाथ के मंदिर की स्थापना करेंगे.
प्रत्येक वर्ष होता है भव्य रथ यात्रा का आयोजन
पुरी से लौटने के बाद एनीनाथ शाहदेव ने सभी समाज के लोगों को बुलाया. उन्होंने मंदिर का निर्माण कराया और रथ मेला के दौरान अलग-अलग लोगों को अलग-अलग जिम्मेदारी दी, ताकि मेला में सभी वर्गों की सहभागिता हो. यहां प्रत्येक वर्ष अषाढ़ शुक्ल पक्ष द्वितीया में प्रभु जगन्नाथ की भव्य रथ यात्रा निकलती है. इसमें हजारों श्रद्धालु शामिल होते हैं. मंदिर रोजाना सुबह 7:00 बजे से लेकर दोपहर 1:00 बजे तक भक्तों के लिए खुला रहता है. फिर शाम को 4 बजे से मंदिर के पट खुलते हैं. रात 9:00 बजे तक श्रद्धालु यहां भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और भैया बलराम के विग्रह का दर्शन कर सकते हैं.
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