Jagannathpur Rath Mela: प्रभु के दर पर उम्मीदों का मेला, देखें खूबसूरत तस्वीरें

जगन्नाथपुर रथ मेला के मीना बाजार में सैकड़ों दुकानें सजी हैं. इन दुकानों में खासतौर पर ऐसे सामान बिक रहे हैं, जो सामान्य दिनों में नहीं दिखते.

By Abhishek Roy | July 8, 2024 11:44 AM
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जगन्नाथपुर रथ मेला,रांची- जगन्नाथपुर रथ मेला अपने भव्य स्वरूप में रविवार से शुरू हो गया. भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के दर्शन के साथ लोगों ने रथ खींचा. वहीं, चार एकड़ में फैला परिसर सैकड़ों लोगों के लिए उम्मीदों का मेला बन गया है. रांची समेत आस-पास के जिलों और निकटवर्ती राज्यों के गांवों से लोग पारंपरिक घरेलू सामग्री, उपकरण और वाद्ययंत्रों की बिक्री के लिए पहुंचे हैं. मीना बाजार में सैकड़ों दुकानें सजी हैं. इन दुकानों में खासतौर पर ऐसे सामान बिक रहे हैं, जो सामान्य दिनों में नहीं दिखते.

तराजू और बटखरे की मांग

तोपचांची, धनबाद के लोहापट्टी गांव से दर्जनों लोग मेला पहुंचे हैं. लोहरा जनजाति के लोगों ने लोहे से बनने वाले विभिन्न उपकरणों की दुकानें सजायी हैं. इसमें खास तौर पर खेती में इस्तेमाल होनेवाले हसुआ, पैना, कुदाली, कुल्हाड़ी, खुरपी आदि शामिल हैं, जिसकी अच्छी-खासी बिक्री हुई. इन उपकरणों की कीमत वजन अनुसार तय है. वहीं, लोहे से बने तराजू और बटखरे की भी डिमांड दिखी. तराजू 280 रुपये और बटखरा की कीमत वजन के अनुसार तय है. एक किलो वाले बटखरे की कीमत 170 रुपये है. इसके अलावा ओखली भी वजन अनुसार उपलब्ध है, एक किलो वजनी ओखली की कीमत 160 रुपये तय है. जबकि, लोग मोलभाव कर इनकी खरीदारी करते दिखे.

कांके और लोहरदगा की शहनाई

लोक कला-संस्कृति से जुड़े पारंपरिक वाद्ययंत्रों की खरीदारी के लिए जगन्नाथपुर मेला विशिष्ट अवसर देता है. रथ मेला में कांके प्रखंड के चामगुरु गांव में बननेवाली शहनाई की बिक्री हो रही है. लोगों ने 1200 से 1700 रुपये में सागवान और गम्हार की लकड़ी से बनी शहनाई खरीदी. लोगों ने इस शहनाई की धुन को खास बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाले साढ़ी व पाना की भी खरीदारी की. साथ ही लोहरदगा के घघरा प्रखंड के बरवाटोली गांव में खास कांसा से बनने वाली शहनाई और घुंघरू की भी बिक्री हुई. विक्रेताओं ने बताया कि रथ मेला के लिए मार्च महीने से ही तैयारी शुरू हो गयी थी.

नगड़ा और लाल मिट्टी के नगाड़े

पारंपरिक वाद्ययंत्र में विश्वविख्यात नगाड़े की भी बिक्री हो रही है. रथ मेला में नगाड़े की दो किस्म उपलब्ध है. एक किस्म जिसे झारखंड की नगड़ा मिट्टी से तैयार किया जाता है. नगड़ा मिट्टी से बने नगाड़े को गुमला के सिसई प्रखंड के गम्हरिया गांव की महिलाओं ने खुद बनाया है. वहीं, दूसरी किस्म के नगाड़े को पुरुलिया के बलरामपुर प्रखंड के बाघाडीह गांव में तैयार किया गया है. लाल मिट्टी से तैयार होनेवाले इस नगाड़ा के खोल की थाप और चाटी से निकलनेवाली डूम ध्वनि लोगों को आकर्षित कर रही थी. नगाड़े की कीमत 4500 से 8000 रुपये के बीच है.

सोनाहातू के तीर-धनुष की हो रही बिक्री

झारखंड के पारंपरिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल होने वाले तीर-धनुष भी मेला में बिक रहे हैं. इन्हें सोनाहातू के बरांदा गांव के जंगल में मिलने वाले खास पीला बांस से तैयार किया जाता है. गांव के 10-12 परिवार आज भी इस पारंपरिक हथियार को तैयार करते हैं और देशभर में लगनेवाले मेले में बिक्री करते हैं. धनुष की कीमत 200 रुपये है और आधे दर्जन तीर के सेट की कीमत 150 रुपये है.

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