गिरिडीह के सम्मेद शिखर जी पारसनाथ पर्वतराज को पर्यटन स्थल बनाने की अधिसूचना रद्द करने का मामला तकनीकी पेंच में फंसा हुआ है. अधिकारियों का मानना है कि पारसनाथ को वन्य जीव अभयारण्य व पर्यटन स्थल घोषित करने की अधिसूचना विलोपित या रद्द करने से राज्य सरकार को वहां विकास कार्य करने के लिए फंड का इंतजाम करना मुश्किल हो जायेगा. पारसनाथ में राज्य सरकार द्वारा प्रदत्त की जानेवाली सुविधाओं के लिए राशि आवंटित नहीं की जा सकेगी. ऐसे में पारसनाथ वन क्षेत्र में विकास या पशु-पक्षियों के संरक्षण लिए किये जाने कार्यों का क्रियान्वयन संभव नहीं हो सकेगा.
वर्तमान में राज्य सरकार ने पारसनाथ को वन्य जीव वन्य अभयारण्य के रूप में पर्यटकीय क्षेत्र विकसित करने का मास्टर प्लान बनाया है. हालांकि, जैन समाज के विरोध के बाद फिलहाल कार्य रोक दिया गया है. जैन समाज द्वारा पर्यटन स्थल की जगह पर धार्मिक तीर्थस्थल घोषित करने की मांग की जा रही है. लेकिन, धार्मिक तीर्थस्थल के लिए राज्य सरकार में अब तक कोई प्रावधान नहीं है.
धार्मिक तीर्थस्थल घोषित करने के लिए पूर्व की अधिसूचना रद्द करने पर सरकार को नया प्रावधान या कानून बनाना पड़ेगा. राज्य सरकार मामले के सभी पहलुओं पर विचार कर हल निकालने का प्रयास कर रही है.
2019 में ही पारसनाथ को बनाया गया था वन्य जीव अभयारण्य : केंद्रीय वन मंत्रालय ने राज्य सरकार की अनुशंसा पर दो अगस्त 2019 को पारसनाथ को वन्य जीव वन्य अभयारण्य घोषित कर पर्यावरण पर्यटन और अन्य धार्मिक गतिविधियों की अधिसूचना जारी की थी. उसी समय से जैन समाज द्वारा अधिसूचना स्थगित करने की मांग की जा रही है. जैन समाज का मानना है कि पर्यटन स्थल घोषित करने से पारसनाथ की पवित्रता भंग हो सकती है.
जैनियों के सबसे पवित्र तीर्थ पर मांस और मदिरा सेवन की छूट मिल सकती है. इसी वर्ष 24 मार्च को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग ने झारखंड सरकार को मामले में कार्रवाई करने के लिए पत्र लिखा था. उसके बाद से पारसनाथ को पर्यटन स्थल घोषित करने के निर्णय की फिर से समीक्षा करने की मांग जोर-शोर से उठायी जा रही है.
गिरिडीह स्थित तीर्थस्थल सम्मेद शिखर जी पारसनाथ पर्वतराज को पर्यटन स्थल घोषित करने से जैन धर्म के लोगों में आक्रोश है. मंगलवार को जमशेदपुर में जैन समाज के लोगों ने प्रदर्शन किया. उपायुक्त कार्यालय पहुंचकर मुख्यमंत्री को संबोधित ज्ञापन सौंपा. इसमें उक्त स्थल को धार्मिक तीर्थस्थल का दर्जा देने की मांग की गयी. प्रदर्शन को विभिन्न हिंदूवादी संगठनों ने भी समर्थन दिया.