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पानी के मामले में झारखंड लाडला बेटा, पर भूजल के दोहन से स्थिति चिंताजनक : जल पुरुष डॉ राजेंद्र

जल पुरुष के नाम से प्रख्यात डॉ राजेंद्र सिंह झारखंड प्रवास पर हैं. रमन मैग्सेसे पुरस्कार प्राप्त डॉ राजेंद्र सिंह ने चिकित्सा सेवा की पढ़ाई भी की है. झारखंड प्रवास के दौरान डॉ राजेंद्र सिंह प्रभात खबर के कार्यालय में आये और प्रभात खबर संवाद कार्यक्रम का हिस्सा बने.

जल पुरुष के नाम से प्रख्यात डॉ राजेंद्र सिंह झारखंड प्रवास पर हैं. रमन मैग्सेसे पुरस्कार प्राप्त डॉ राजेंद्र सिंह ने चिकित्सा सेवा की पढ़ाई भी की है. अब जल संरक्षण के लिए काम करते हैं. चार साल सरकारी सेवा करने के बाद इन्होंने नौकरी छोड़ दी. अलवर के मांगू काका (मांगू मीणा) के कहने पर अपना जीवन समाज को समर्पित कर दिया. जल और भूमि संरक्षण पर काम करना शुरू किया. 42 साल से इसी काम में लगे हैं. झारखंड प्रवास के दौरान डॉ राजेंद्र सिंह प्रभात खबर के कार्यालय में आये और प्रभात खबर संवाद कार्यक्रम का हिस्सा बने. उन्होंने बताया कि वह 127 देशों की यात्रा कर चुके हैं. कई देशों में वह जल संरक्षण का काम कर रहे हैं. कहते हैं कि झारखंड तो पानी के मामले में देश का लाडला बेटा है. लेकिन अतिक्रमण, प्रदूषण और शोषण से लाडला बेटा बर्बाद हो रहा है. यहां के अधिकारी मेरी सुनते तो हैं, लेकिन मेरे हिसाब से करते नहीं है. मेरे जाने के बाद सब भूल जाते हैं.

पानी से जुड़े विषयों पर काम करने, मुहिम चलाने और इसे अपने जीवन का उद्देश्य बनानेका ख्याल कैसे आया, थोड़ा बैकग्राउंड बतायें?

मैं जयपुर में भारत सरकार का सेवक था. चिकित्सक के रूप में सेवा दे रहा था. इस काम में मन नहीं लग रहा था. ऑफिस आओ, झूठी-सच्ची रिपोर्ट तैयार करो. सरकार को भेजो. चार साल बाद मैंने नौकरी छोड़ दी. उस समय अलवर का एक गांव बेपानी हो रहा था. लोग उजड़ने लगे थे. वहां के लोगों को दूषित पानी के कारण रतौंधी होने लगी थी. मैं उसी गांव में गया. चिकित्सक था, तो लोगों की चिकित्सा शुरू की. लोग ठीक होने लगे. उनको दुनिया दिखने लगी. कुछ लोगों को यह पता नहीं था कि 15 किमी दूर से उनके लिए मटका में पानी लाया जाता है. वैसे लोगों ने ठीक होने के बाद कहा कि इससे अच्छा था कि मुझे दिखाई ही नहीं देता था. क्योंकि अब लोगों ने पानी लाकर देना बंद कर दिया था. ऐसे में एक मांगू काका मिले. उन्होंने कहा कि मुझे तो विश्वास ही नहीं था कि तुम दवा खिलाकर हमें ठीक कर दोगे. तुम पैसा भी नहीं लेते हो. जो पढ़ता है, वह गांव में रहता नहीं है. तुम इलाज का काम बंद कर दो. तुम काम के आदमी हो. कल सुबह आना. जब दूसरे दिन सुबह छह बजे पहुंचा, तो मुझे एक रस्सी के सहारे 150 फीट नीचे के कुएं में उतार दिया. मांगू काका ने पूछा, क्या देखा? मैंंने कहा कि कुएं में तो दरार है. लोग धरती के पेट से पानी तो निकाल रहे हैं, लेकिन दे नहीं रहे हैं. मांगू काका ने मुझे कहा कि तुम ऐसा काम कर कि सूरज पानी की चोरी नहीं कर सके. राजस्थान में सूरज बहुत पानी की चोरी कर रहा है. दूसरे दिन मुझे मांगू काका ने पहाड़ घुमाया. बताया कि पानी बचाने के लिए साइट का सेलेक्शन महत्वपूर्ण होता है. उन्होंने मुझे बिना पढ़ाये इंजीनियरिंग में पीएचडी करायी.

चार दशकों से ज्यादा समय से आप इस अभियान में हैं, काम के दौरान किस तरह की चुनौतियों का सामना किया?

चुनौतियां हमेशा सरकार पैदा करती हैं. जब मैंने पानी बचाने का अभियान शुरू किया, तो सरकार कहती थी कि तुम ऐसा नहीं कर सकते हो. मेरे ऊपर धारा 377 के कई मुकदमे किये गये, लेकिन कभी डर नहीं लगा. कहता था कि बांध अपने लिये तो बनाया नहीं. बांध सरकार का है. मेरे खिलाफ किये गये मुकदमे टिक नहीं पाते थे. जब जल संरक्षण की दिशा में कुछ काम हो गया था, तो बात तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन के पास पहुंची. उन्होंने कहा कि वह मेरा काम देखने जायेंगे. प्रशासन ने उनको रोकने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं माने. कहा कि जिस नदी को पुनर्जीवित किया गया है, उसको शुरू से अंत तक देखेंगे. राष्ट्रपति ने उसे देखा. जिस दिन देखकर लौटे, मेरे ऊपर किये गये सभी मुकदमे समाप्त हो गये. मैंने डैम बनाने के लिए कभी अनुमति नहीं ली. इससे नेताओं को जलन होती थी. 42 साल से इस अभियान में लगे हैं. एक भी सरकारी पैसा नहीं लेते हैं. रचना चुनौती का काम होता है. जेल उनको भेजते हैं, जो जेल जाने से डरते हैं. मैं तो डरता ही नहीं था. इस लोकतंत्र में कई दोस्त मिल जाते हैं, जो आपके रचनात्मक काम के सहयोगी बन जाते हैं.

जल संरक्षण को लेकर कितनी जागरूकता आयी है. स्थिति में बदलाव की जगह, क्या समस्या गंभीर हुई है?

जल संरक्षण को लेकर अब बहुत बातें हो रही है. लेकिन, केवल बात करने से कुछ नहीं होगा. इसके लिए कुछ करना होगा. दो दिन पहले महाराष्ट्र में था. वहां एक कार्यक्रम के दौरान सरकार से पूछा कि अमृत महोत्सव मना रहे हैं. केवल एक काम बता दें, जो याद करने के लायक आपने किया है. इसका कोई जवाब उनके पास नहीं था. मैंने कहा कि कम से कम एक अमृत वाहिनी तो बना दीजिए. देश के लिए आदर्श हो जायेगा. नदियों के किनारे बसने वालों को अमृत प्राप्त होने लगेगा. आज तो केवल बीमारी मिल रही है.

कौन कर रहा प्रदूषण. क्या है इसे रोकने के उपाय?

अतिक्रमण, प्रदूषण और शोषण नदियों की सबसे बड़ी समस्या है. सबसे बड़ी पॉल्यूटर (प्रदूषण करने वाली) सरकार ही है. झारखंड में 1400 मिमी के आसपास बारिश होती है. पानी के मामले में झारखंड देश का लाडला बेटा है. हमारे यहां तो 200 से 300 मिमी ही बारिश होती है. यहां के 62 फीसदी भूमिगत जल का दोहन हो रहा है. फसल चक्र बर्बाद हो रहा है. हम 84 फीसदी पानी अंडर ग्राउंड से ले रहे हैं. इसको बचाने के लिए फसल चक्र को मजबूत करना होगा. ऐसी फसल लगानी होगी, जहां पानी की कम जरूरत पड़े. जहां खाली एरिया है, वहां घास लगानी होगी. जहां पानी बह जा रहा है, वहां बंडिंग और मेढ़बंदी का काम करना होगा. झारखंड के किसानों को जल संरक्षण का महत्व बताना होगा.

झारखंड को जल के मामले में समृद्ध किया जा सकता है?

झारखंड खुद को संभाल सकता है. आज यहां के लोगों को पता ही नहीं है कि फसल कब और क्या लगायें. झारखंड में भी क्लाइमेट चेंज और ग्लोबल वार्मिंग की चुनौती है. यहां की धरती को भी बुखार लग रहा है. गरम हो रही है. इसको भी बुखार उतारने के लिए पट्टी की जरूरत है. इसको पानी की पट्टी चाहिए. बारिश के पानी का संरक्षण करना होगा. किसानों को जल संरक्षण के लिए साइट सेलेक्शन बताना होगा. सरकार का अपना मैनुअल है. उसके हिसाब से चलने से नहीं होगा. धरती के नीचे के ज्ञान को समझना होगा. आज झारखंड की 60 फीसदी नदियां सूख गयी हैं. ऊपर का पानी नीचे डालना होगा, तो भी नदियां पुनर्जीवित होंगी.

आप वर्षों से झारखंड आ रहे हैं. सरकार, पीएसयू और राजनेता से मिलते हैं. झारखंड की नदियों को जीवित करने या जल संरक्षण का बात करते हैं. यह मामला कहां अटक जाता है?

मैं जब पिछली बार आया था, तो राजधानी की नदियों का सर्वे किया था. कांके की ओर एक नदी के किनारे मंदिर बनाया जा रहा था. मैंने इसकी सूचना राज्य के एक वरीय अधिकारी को दी. उन्होंने कहा कि अभी रुकवाता हूं. लेकिन, आज तो बड़ा मंदिर बन जाने की सूचना है. असल में बात यह है कि जब मैं यहां आता हूं, तो अधिकारी व राजनेता सब मेरी बातों को गंभीरता से सुनते हैं. लेकिन, मेरे जाते ही भूल जाते हैं कि मैंने क्या कहा था. असल में वह दिखावे के लिए काम करते हैं.

झारखंड में भी नदियां मर रही हैं. कहीं अतिक्रमण, कहीं प्रदूषण, कहीं विकास की अंधी दौड़. राजधानी की हरमू नदी नाला बन गयी. नदियों को कैसे बचायें?

विकास डिस्प्लेसमेंट ऑफ नॉलेज (ज्ञान का विस्थापन) से नहीं शुरू होना चाहिए. यहां यही हो रहा है. राज्य गठन के पहले जो स्थिति थी, आज नहीं है. नदियां नाला बन गयीं. नदियों पर कब्जा हो रहा है. स्थानीय ज्ञान का उपयोग नहीं हो रहा है. विकास विस्थापन, विनाश और बिगाड़ के साथ लाया जा रहा है. पहले यहां पानी की दिक्कत नहीं थी. राज्य बनने से पहले दामोदर और स्वर्णरेखा को छोड़कर सभी नदियां साफ थीं. आज शायद ही कोई नदी साफ है. 23 साल में भूमिगत जल नीचे चला गया है. क्या-क्या हुआ, हम सभी देख रहे हैं. सूखा और बाढ़ आ रहा है. यह विनाशकारी विकास है. इसे रोकना होगा. नदियों को रोकने लिए सरकार को नदियों के किनारे को ब्लू जोन, ग्रीन जोन और रेड जोन में चिह्नित करना होगा. इसके लिए कड़ा कानून बनाना होगा. इसका पालन भी करना होगा.

सरकार से आप क्या अपेक्षा रखते हैं?

जिसको हमने पावर ऑफ अटॉर्नी दिया है, उससे अपेक्षा तो रखेंगे ही ना. हमने उनको वोट दिया. चुना है. उनसे चाहेंगे कि वह हमारे वर्तमान और भविष्य को बेहतर करने की दिशा में सोचें. भारत में लोकतंत्र तो है, लेकिन पूंजीपतियों का तंत्र होता जा रहा है. लोक नहीं उद्योगपतियों का तंत्र हो गया है. अपने जन प्रतिनिधियों से उम्मीद करते हैं, तभी तो डेमोक्रेसी बची है. इस कारण हम वोट करते हैं.

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