झारखंड में मंडी खुलते ही कृषि बाजार शुल्क प्रभावी, ऐसे होगी वसूली

यह शुल्क बाजार समिति प्रांगण या उप प्रांगण में होनेवाले कारोबार पर लगेगा. बाजार शुल्क बाजार समिति वसूलेगी. बाजार समिति में इलेक्ट्रॉनिक व्यापार प्लेटफॉर्म में बाजार शुल्क नहीं लगेगा.

By Prabhat Khabar News Desk | February 21, 2023 6:23 AM

विधि विभाग ने ‘झारखंड राज्य कृषि उपज और पशुधन विपणन (संवर्द्धन और सुविधा) अधिनियम-2022’ का गजट प्रकाशित कर दिया है. इसके साथ ही यह अधिनियम राज्य में लागू हो गया है. अब बाजार समिति के माध्यम से होनेवाले कारोबार में बाजार शुल्क भी लगेगा. इसके अनुसार, नष्ट होनेवाले उत्पाद पर एक और नहीं नष्ट होनेवाले उत्पादों पर दो फीसदी तक की दर से बाजार शुल्क लगेगा.

यह शुल्क बाजार समिति प्रांगण या उप प्रांगण में होनेवाले कारोबार पर लगेगा. बाजार शुल्क बाजार समिति वसूलेगी. बाजार समिति में इलेक्ट्रॉनिक व्यापार प्लेटफॉर्म में बाजार शुल्क नहीं लगेगा. इन उत्पादों में सेस, उपयोगिता शुल्क आदि लगाया जाता है. बाजार शुल्क भुगतान की जिम्मेदारी कमीशन एजेंट की होगी. यह क्रेता से बाजार शुल्क वसूल कर बाजार समिति में जमा करेगा. बाजार समिति में प्रवेश करने वाले वाहनों पर प्रवेश शुल्क लगाया जायेगा. बाजार समिति के अंदर फल और सब्जियों की बिक्री और लेन देन पर ना ही कोई कर लगेगा ना ही बाजार शुल्क लगेगा.

व्यापारियों ने किया था आंदोलन, आश्वासन के बाद स्थगित किया आंदोलन :

व्यापारियों ने पिछले सप्ताह इसी मामले में आंदोलन किया था. आंदोलन के दौरान व्यापारियों ने खाद्यान्न व्यापार को ठप भी करा दिया था. कृषि मंत्री का आवास भी घेरा था. बाद में व्यापारियों की मुख्यमंत्री के सचिव विनय चौबे से वार्ता हुई थी. वार्ता के बाद व्यापारियों ने आंदोलन स्थगित कर दिया था. सरकार ने व्यापारियों की मांगों पर विचार करने का आश्वासन दिया था. सरकार का कहना था कि केंद्र सरकार के दिशा-निर्देश के आलोक में इस अधिनियम को बनाया गया है. देश के करीब 20 राज्य में यह अधिनियम लागू है. अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग दर से टैक्स लगाया जा रहा है.

2015 से बंद था बाजार शुल्क, मौजूदा सरकार नये सिरे से लायी विधेयक

झारखंड में 2015 से बाजार शुल्क बंद था. तत्कालीन रघुवर दास की सरकार ने बाजार समिति के माध्यम से होनेवाले कारोबार से बाजार शुल्क लेना बंद कर दिया था. हेमंत सोरेन के नेतृत्व में नयी सरकार बनने के बाद नये सिरे से विधेयक लाया गया था. इसको लेकर खाद्यान्न व्यापारी विरोध भी कर रहे थे. विरोध के कारण तत्कालीन राज्यपाल रमेश बैस ने अधिनियम की जानकारी लेने के लिए कृषि मंत्री बादल को राजभवन बुलाया था. बादल द्वारा तथ्यों से अवगत कराने के बाद श्री बैस ने विधेयक का अनुमोदन कर दिया था. इसके बाद विधि विभाग ने इसे गजट के रूप में प्रकाशित किया है.

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