Jharkhand Assembly Election 2024: जब पिता को हराकर पुत्र बना विधायक, जयपाल सिंह मुंडा की पार्टी से ठोंकी थी ताल

Jharkhand Assembly Election 2024: साल 1951-52 के झारखंड विधानसभा चुनाव में एक पुत्र अपने पिता को हराकर विधायक बना था. कहानी कैलाश प्रसाद की है.

By Anuj Kumar Sinha | October 31, 2024 11:06 AM
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Jharkhand Assembly Election 2024, रांची : इस विधानसभा चुनाव में एक-दो सीटें ऐसी हैं, जहां पिता और पुत्र दोनों एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव मैदान में हैं. झारखंड क्षेत्र का चुनावी इतिहास बताता है कि इसी झारखंड में विधानसभा चुनाव में पिता को हरा कर एक पुत्र विधायक बन चुके हैं. ये कहानी पूर्व विधायक कैलाश प्रसाद की है. उन्होंने जयपाल सिंह मुंडा की झारखंड पार्टी से चुनाव लड़ा था. जबकि उनके पिता कांग्रेसी थे.

जयपाल सिंह ऐसे करते थे प्रत्याशी का चयन

बात 1951-52 के चुनाव की है. दक्षिण बिहार में ‘झारखंड पार्टी’ का प्रभाव था. जयपाल सिंह क्षेत्र में जाकर खुद प्रत्याशी तय करते थे. इसी क्रम में जयपाल सिंह चाईबासा गये थे और कांग्रेस के खिलाफ प्रत्याशी खोज रहे थे. यह जानकारी कैलाश प्रसाद को मिली. उन दिनों वे झींकपानी के एसीसी स्कूल में शिक्षक थे. उनका जन्म जमशेदपुर में हुआ था. जब उन्हें जयपाल सिंह से मिलने का मौका मिला, तो वे अपने साथ मुकुंद राम तांती और एक अन्य सहयोगी को ले गये थे. वहां उन्होंने जयपाल सिंह से चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर कर दी.

जयपाल सिंह को इस जवाब ने किया प्रभावित

कैलाश प्रसाद ने जयपाल सिंह से कहा था : कांग्रेसी का बेटा हूं, लेकिन कांग्रेस ने मुझे जन्म नहीं दिया – कुछ दिन पहले ही यह बात सामने आयी थी कि कैलाश प्रसाद के पिता फूलचंद भी चुनाव लड़ रहे हैं. वे पक्के कांग्रेसी थे और टाटा कंपनी में लैंड अफसर थे. वे स्वतंत्रता सेनानी भी थे और गांधीवादी नेता थे. क्षेत्र में उनका सम्मान था. वे कांग्रेस के उम्मीदवार होनेवाले थे. जयपाल सिंह को जब मालूम हुआ कि कैलाश प्रसाद तो पक्के कांग्रेसी फूलचंद के पुत्र हैं, तो उन्होंने कैलाश प्रसाद से पूछ लिया, ‘एक कांग्रेसी का बेटा कैसे झारखंड पार्टी से चुनाव लड़ सकता है?’ कैलाश प्रसाद ने जवाब दिया, ‘सर, यह सही है कि मैं कांग्रेसी फूलचंद का पुत्र हूं, लेकिन कांग्रेस ने मुझे जन्म नहीं दिया.’ इस जवाब का जयपाल सिंह पर अच्छा प्रभाव पड़ा और उन्होंने कैलाश प्रसाद को कहा, जाओ और पिता के खिलाफ चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी करो.

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पिता के रोकने के बावजूद चुनावी मैदान में कूद पड़े कैलाश

जयपाल सिंह ने कैलाश प्रसाद को जुगसलाई-पटमदा विधानसभा सीट से उतारने की घोषणा की थी. जब यह बात कैलाश प्रसाद के पिता फूलचंद को पता चली, तो उन्होंने पुत्र को चुनाव लड़ने से मना किया, लेकिन कैलाश नहीं माने. पिता ने यहां तक कह दिया कि ‘अगर तुम मेरे खिलाफ चुनाव लड़ोगे, तो मेरा-तुम्हारा संबंध खत्म हो जायेगा और हम तुम्हारे घर का पानी भी नहीं पीयेंगे.’ इतनी कड़ी शर्त रखने के बावजूद कैलाश प्रसाद नहीं माने और पिता फूलचंद के खिलाफ चुनाव लड़ गये. वे झारखंड पार्टी के प्रत्याशी थे और चुनाव चिह्न था ‘मुर्गा.’

पिता-पुत्र के द्वंद्व की वजह से कांग्रेस ने फूलचंद को नहीं दिया टिकट

जब यह जानकारी कांग्रेस के नेताओं को मिली, तो उन्होंने फूलचंद को कांग्रेस से टिकट देने से इनकार कर दिया. फूलचंद पहले चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुके थे, जुबान के पक्के थे, आदर्शवादी थे, इसलिए उन्होंने कहा, ‘भले ही कांग्रेस मुझे टिकट न दे, लेकिन जब मैंने चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है, तो चुनाव लडूंगा ही, भले ही निर्दलीय क्यों न लड़ना पड़े.’ फूलचंद निर्दलीय ही मैदान में उतरे. सामने थे उनके पुत्र कैलाश. युवा थे, जिसका उन्हें लाभ मिला. फूलचंद बुजुर्ग थे. कैलाश प्रसाद के सहयोगियों ने पूरे क्षेत्र में यही प्रचार किया कि युवा कैलाश को वोट दीजिए, बुजुर्ग फूलचंद की उम्र ज्यादा है, बहुत दिनों तक क्षेत्र की सेवा नहीं कर पायेंगे. हालांकि, खुद कैलाश प्रसाद ने पिता के बारे में ऐसा नारा लगाने का विरोध किया था. चुनाव में यह नारा चर्चित हो गया. लोगों ने कैलाश प्रसाद का साथ दिया. पिता को हरा कर कैलाश प्रसाद विधायक बन गये.

बेटे से चुनाव हारने के बाद अपनी शर्त नहीं भूले फूलचंद

जुगसलाई-पटमदा क्षेत्र से दो विधायक चुने जाने थे (एक आरक्षित). कुल 15 प्रत्याशी थे. झारखंड पार्टी के कैलाश प्रसाद और हरिपदो सिंह दोनों चुनाव जीत गये. कैलाश प्रसाद को 12,245 मत मिले, जबकि उनके पिता फूलचंद राम को सिर्फ 887 मत मिले थे. भले ही फूलचंद चुनाव हार गये, लेकिन मूल्यों की राजनीति करनेवाले और आदर्शवादी फूलचंद ने चुनाव पूर्व रखी शर्त को निभाया. पुत्र कैलाश को आशीर्वाद तो दिया, उनके घर भी जाते रहे, लेकिन पूरी उम्र पुत्र के घर पर अन्न ग्रहण नहीं किया. इस बात का मलाल कैलाश प्रसाद को भी था. उस चुनाव के बाद उन्होंने तय कर लिया था कि अब भविष्य में चुनाव नहीं लड़ेंगे. ऐसी जीत से क्या लाभ, जो रिश्ते को ही खराब कर दे और परिवार को तोड़ दे. अपने बाद का जीवन उन्होंने तांतनगर (पश्चिम सिंहभूम) के पास चिटीमिटी में बिताया.

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