Loading election data...

झारखंड सरकार ने केंद्र के इस बिल को आदिवासियों व मूलवासियों के खिलाफ दिया करार, विधानसभा से पारित हुई आपत्ति

झारखंड सरकार ने कोल बियरिंग एक्ट संशोधन बिल-2023 को कोल बियरिंग एक्ट की मूल भावना के विपरीत करार दिया है. एक्ट का मूल उद्देश्य केंद्र, राज्य व रैयत का आर्थिक हित है.

By Sameer Oraon | August 2, 2024 11:39 AM
an image

रांची : झारखंड सरकार ने ‘कोल बियरिंग एक्ट संशोधन बिल-2023’ को राज्य और आदिवासी व मूलवासियों के हितों के खिलाफ मानते हुए इस पर अपनी आपत्ति दर्ज करा दी है. विधानसभा से गुरुवार को इन आपत्तियों को पारित किया गया. सरकार ने बिल में कोयला खनन पट्टे की अवधि आजीवन (खनिज के रहने तक) करने, कोयला कंपनियों के कार्यालय और आवासीय कॉलोनियों के लिए भू-अर्जन अधिनियम के बदले कोल बियरिंग एक्ट के तहत जमीन अधिग्रहण करने के मुद्दे पर आपत्ति की है. इसके अलावा कोयला कंपनियों के लिए अधिग्रहित जमीन को निजी कंपनियों के देने के प्रावधान का विरोध किया है. सरकार का मानना है कि संशोधन बिल 2023 में किये गये इन प्रावधानों के राज्य के अलावा रैयतों को भारी आर्थिक नुकसान होगा.

कोल बियरिंग एक्ट संशोधन बिल-2023 मूल भावना के विपरीत

झारखंड सरकार ने कोल बियरिंग एक्ट संशोधन बिल-2023 को कोल बियरिंग एक्ट की मूल भावना के विपरीत करार दिया है. एक्ट का मूल उद्देश्य केंद्र, राज्य व रैयत का आर्थिक हित है. लेकिन संशोधन बिल 2023 के प्रावधानों से राज्य और रैयतों का हित प्रभावित होगा. राज्य सरकार की ओर से संशोधन बिल पर आपत्ति दर्ज कराते हुए कहा गया है कि एमएडीआर एक्ट-1957 की धारा-8 और खनिज समनुदान नियमावली में सरकारी कोयला कंपनियों को खनन पट्टा लीज की अवधि 50 साल निर्धारित है. कोल बियरिंग एक्ट संशोधन बिल 2023 में खनन पट्टा की अवधि को 50 साल से बढ़ा कर आजीवन करने का प्रावधान किया गया है. यह संशोधन खनिज समनुदान नियमावली के अनुकूल नहीं है. संशोधित एमएमडीआर एक्ट में खनन पट्टा की अवधि बढ़ाने की स्थिति में अतिरिक्त राशि के भुगतान का प्रावधान है. लेकिन संशोधन बिल 2023 में किये गये प्रावधान से राज्य सरकार को अतिरिक्त राशि नहीं मिलेगी.

जमीन अधिग्रहण का प्रावधान बदलने पर जताया एतराज

सरकार द्वारा दर्ज करायी गयी आपत्ति में कहा गया है कि सरकारी कोयला कंपनियों के लिए खनन, वाशरी के लिए ही कोल बियरिंग एक्ट के तहत जमीन अधिग्रहण का प्रावधान है. कोयला कंपनियों की शेष जरूरतें जैसे कार्यालय, आवासीय कॉलोनी आदि के लिए जमीन की अधिग्रहण भू-अर्जन अधिनियम के तहत किया जाता है. लेकिन संशोधन में कार्यालय और कॉलोनी के लिए भी जमीन का अधिग्रहण कोल बियरिंग एक्ट के तहत ही करने का प्रावधान किया गया है. इससे रैयतों को मुआवजा के रूप में काफी कम राशि मिलेगी. सरकार ने संशोधन बिल की धारा पर भी आपत्ति दर्ज करायी है. इस धारा में सरकारी कंपनियों के लिए अधिग्रहित जमीन को निजी कंपनियों को देने का प्रावधान किया गया है. सरकार ने 13 अप्रैल 2022 को मंत्रिमंडल की बैठक में प्रस्ताव पारित कर खनन पट्टा की अवधि समाप्त होने के बाद पुन: पट्टा पर देने का अधिकार कंपनी बोर्ड को देने का फैसला किया. इस फैसले के अनुरूप 22 अप्रैल 2024 को गजट प्रकाशित कर इसे लागू कर दिया गया.

निजी कंपनियों को इन कामों के लिए पट्टे पर दी जा सकेगी जमीन, इस पर भी राज्य ने की आपत्ति

1- कोल वाशरी की स्थापना के लिए अधिकतम 30 वर्ष के लिए
2- कंवेयर प्रणाली की स्थापना के लिए अधिकतम 30 वर्ष के लिए
3- कोल हैंडलिंग प्लांट की स्थापना के लिए अधिकतम 30 वर्ष के लिए
4- रेलवे साइडिंग के निर्माण के लिए अधिकतम 30 वर्ष के लिए
5- कोल परियोजना के प्रभावित परिवारों के पुनर्वास के लिए अधिकतम 99 वर्षों के लिए
6- थर्मल व रिन्यूएबल पावर प्लांट की स्थापना के लिए अधिकतम 35 वर्ष के लिए
7- कोयला विकास से संबंधित आधारभूत संरचना और वन रोपण के लिए अधिकतम 99 वर्ष के लिए
8- रास्ता का अधिकार प्रदान करने के लिए रेलवे, हाइवे के लिए अधिकतम 99 वर्ष के लिए
9- कोल केमिकल प्लांट के लिए अधिकतम 35 वर्ष के लिए
10- कोल बेड मिथेन के लिए अधिकतम 30 वर्ष के लिए
11- ऊर्जा संबंधित आधारभूत संरचना के लिए

Also Read: ‘झारखंड में आदिवासियों को नहीं मिल रहा न्याय’, पाकुड़ में हिमंता बिस्वा सरमा ने हेमंत सोरेन पर बोला हमला

Exit mobile version