शकील अख्तर/ आनंद मोहनरांची: विधानसभा में नियुक्ति, प्रोन्नति में घोटाले का आरोप लगने के बाद राष्ट्रपति शासन के दौरान सेवानिवृत्त न्यायाधीश विक्रमादित्य प्रसाद की अध्यक्षता में एक सदस्यीय आयोग का गठन किया गया था. इस आयोग ने जांच पूरी करने के बाद अपनी रिपोर्ट (अनुलग्नक सहित) राज्यपाल को सौंपी थी. रिपोर्ट में अनियमितता की पुष्टि की गयी थी. साथ ही विधानसभा के उन अध्यक्षों को भी दोषी माना गया था, जिनके कार्यकाल में नियुक्ति और प्रोन्नति हुई थी.
विधानसभा ने विक्रमादित्य आयोग की रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई करने के बदले इसकी समीक्षा के लिए सेवानिवृत्त न्यायाधीश एसजे मुखोपाध्याय की अध्यक्षता में दूसरे आयोग का गठन किया. दूसरे आयोग ने अपनी रिपोर्ट में विक्रमादित्य आयोग की अधिकांश अनुशंसाओं को कानूनी उदाहरणों के सहारे अमान्य कर दिया है.यहां यह बात उल्लेखनीय है कि न्यायाधीश एसजे मुखोपाध्याय आयोग को मामले की समीक्षा के लिए विक्रमादित्य प्रसाद आयोग की मूल रिपोर्ट उपलब्ध नहीं करायी गयी. उन्हें सिर्फ रिपोर्ट की कॉपी उपलब्ध करायी गयी.
अनुलग्नक की कॉपी भी उन्हें नहीं मिली. इसलिए समीक्षा के लिए गठित आयोग ने विक्रमादित्य प्रसाद आयोग की अधूरी रिपोर्ट के आधार पर अपनी कानूनी राय सरकार को दी. विधानसभा ने एसजे मुखोपाध्याय आयोग की रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया है. साथ ही किसी के खिलाफ किसी तरह की कार्रवाई नहीं करने का फैसला किया है. हालांकि पर्याप्त स्पीड नहीं होने के बावजूद नियुक्त किये गये स्टेनो टाइपिस्ट, कंप्यूटर ऑपरेटर आदि का छह महीने के अंदर टाइपिंग टेस्ट करा कर उनकी योग्यता की जांच करने का फैसला किया है. इससे अब 10 साल से नौकरी करने के बाद संबंधित लोग 10 साल पहले निर्धारित योग्यता की जांच करायेंगे.
जांच के बिंदु :
विधानसभा भर्ती एवं सेवा शर्त नियमावली में राज्यपाल के अनुमोदन के बिना किया संशोधन कानून सम्मत है या नहीं. अगर विधिसम्मत नहीं है, तो इसके आलोक में की गयी नियुक्ति-प्रोन्नति की कानूनी स्थिति क्या होगी?
विक्रमादित्य आयोग की राय :
भर्ती एवं सेवा शर्त नियमावली पर राज्यपाल का अनुमोदन नहीं लिया गया था. पदवर्ग समिति का गठन नियमानुसार नहीं किया गया था. सभी नियुक्तियां नियम सम्मत नहीं है.
एसजे मुखोपाध्याय आयोग की राय :
विक्रमादित्य आयोग का गठन कमिशन ऑफ इनक्वायरी एक्ट 1952 की धारा तीन के तहत किया गया था. इस धारा के तहत गठित आयोग को संविधान के अनुच्छेद 187(पार्ट-थ्री) के तहत बनाये गये कानून को गैर कानूनी करार देने का अधिकार नहीं है. यह अधिकार सिर्फ सक्षम न्यायालय को है. पदवर्ग समिति के नियानुसार नहीं होने के कारणों को उल्लेख नहीं किया गया है. इसलिए राज्य सरकार द्वारा विक्रमादित्य प्रसाद आयोग की रिपोर्ट को सरकार द्वारा स्वीकार नहीं किया जा सकता है.
2. जांच के बिंदु 3,4 भी इसी सवाल से संबंधित-
गुरुत्तर दायित्व भत्ता (Post-gravity responsibility allowance) देने के फैसले पर राज्यपाल की सहमति थी या नहीं. फैसले से संबंधित आदेश में अवर सचिव शब्द को बदल कर सचिव लिख दिया गया और सचिव, विशेष सचिव सहित अन्य ने इसका लाभ लिया?–
विक्रमादित्य आयोग की राय :
गुरुत्तर भत्ता से संबंधित आदेश में गड़बड़ी कर बदलाव किया गया. कुल 80 लोगों ने इसका गलत लाभ लिया. उन्होंने कुल 93.05 लाख रुपये का भुगतान लिया. इसकी वसूली की जानी चाहिए.–
एसजे मुखोपाध्याय आयोग की राय :
विक्रमादित्य आयोग की रिपोर्ट से सहमत. गुरुत्तर भत्ता लेने वाले अधिकारियों से वसूली की जानी चाहिए.