रांची : विधानसभा नियुक्ति-प्रोन्नति मामले में कार्रवाई को लेकर लंबे समय से पेंच फंसता रहा है. विधानसभा में नियुक्ति-प्रोन्नति घोटाले की जांच सेवानिवृत्त न्यायाधीश जस्टिस विक्रमादित्य ने की थी. हाइकोर्ट में भी इस मामले में सुनवाई चल रही है. पिछले बुधवार को इस मामले की सुनवाई करते हुए हाइकोर्ट ने विधानसभा सचिव को सात दिनों के अंदर जस्टिस विक्रमादित्य आयोग की रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया था. 12 अक्तूबर को हाइकोई इस मामले में फिर से सुनवाई करेगा. इधर, विधानसभा ने विक्रमादित्य आयोग की रिपोर्ट के लिए सरकार के मंत्रिमंडलीय सचिवालय को पत्र भेजा है. विधानसभा ने सरकार से विक्रमादित्य आयोग की रिपोर्ट उपलब्ध कराने को कहा था. पूरे मामले में सरकार ने अपना पल्ला झाड़ लिया है.
मंत्रिमंडलीय सचिवालय ने विधानसभा को पत्र भेज कर कहा है कि यह विधानसभा का मामला है. विक्रमादित्य आयोग की जांच रिपोर्ट हमारे पास नहीं है. यह हम नहीं दे सकते हैं. विधानसभा ही इसे न्यायिक आयोग से मांगे. उल्लेखनीय है कि विक्रमादित्य आयोग की जांच के बाद उनकी रिपोर्ट के विधि व अन्य कानूनी तथ्यों के अध्ययन के लिए एक सदस्यीय सेवानिवृत्त न्यायाधीश जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय की अध्यक्षता में न्यायिक आयोग का गठन किया गया था. दरअसल विधानसभा नियुक्ति-प्रोन्नति घोटाले में जस्टिस विक्रमादित्य आयोग की अनुशंसा लागू करने के लिए यह रिपोर्ट सरकार के ही माध्यम से न्यायिक आयोग को भेजी गयी थी. विक्रमादित्य आयोग की जांच रिपोर्ट के अध्ययन के लिए राज्य सरकार ने एसजे मुखोपाध्याय आयोग को 22 दिसंबर तक अवधि विस्तार दिया है.
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नियुक्ति प्रोन्नति घोटाले की जांच जस्टिस विक्रमादित्य ने 2018 में ही पूरी कर ली थी. तत्कालीन राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू को आयोग ने रिपोर्ट सौंप दी थी. इस रिपोर्ट को तत्कालीन राज्यपाल ने विधानसभा को कार्रवाई करने के लिए भेज दिया था. तत्कालीन स्पीकर दिनेश उरांव ने इस रिपोर्ट पर कार्रवाई के लिए महाधिवक्ता से राय मांगी थी. इसके बाद यह मामला ठंडे बस्ते में ही रहा. स्पीकर रहे इंदर सिंह नामधारी और आलमगीर आलम के कार्यकाल में अवैध नियुक्ति का मामला सामने आया था. वहीं शंशाक शेखर भोक्ता के कार्यकाल में गलत तरीके से प्रोन्नति दी गयी थी. इंदर सिंह नामधारी के कार्यकाल में 150 और आलमगीर आलम के कार्यकाल में 374 नियुक्तियां हुई थी.