बैंकों का मूल काम बैकिंग का है. लेकिन, वे अपना मूल काम छोड़ कर अन्य सभी कामों यानी थर्ड पार्टी प्रोडक्ट (म्यूचुअल फंड, इंश्योरेंस) की बिक्री करने में ज्यादा व्यस्त रहते हैं. इस पर बैंक के अधिकारियों और कर्मचारियों का अधिक जोर रहता है. इस कारण बैंकों का मूल काम प्रभावित हो रहा है. इसका खमियाजा ग्राहकों को भी भुगतना पड़ता है.
बैंक शाखाओं में सामान्य पैसों की जमा-निकासी के लिए भी ग्राहकों को काफी मशक्कत करनी पड़ती है. बैंक द्वारा वैसे ग्राहकों को टारगेट किया जाता है, जिन्हें किसी न किसी प्रकार के ऋण की आवश्यकता होती है. मजबूरन ग्राहकों को बैंक द्वारा दिये गये थर्ड पार्टी प्रोडक्ट को लेना पड़ता है. इससे बैंकों का टारगेट भी पूरा हो जाता है. ज्ञात हो कि सार्वजनिक बैंकों का किसी न किसी दूसरी कंपनियों से टाइअप होता है. उस पर बढ़िया कमीशन मिलता है. यही कारण है कि बैंक प्रबंधक इस पर जोर देते हैं.
एनपीए बढ़ने की मुख्य वजह : ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स एसोसिएशन के संयुक्त सचिव डीएन त्रिवेदी ने कहा कि बैंक प्रबंधन द्वारा हर शाखाओं को टारगेट दिया जाता है. शाखाओं के अधिकारियों और कर्मचारियों को न चाहते हुए भी म्यूचुअल फंड, इंश्योरेंस आदि प्रोडक्ट बेचने पड़ते हैं. यही कारण है कि मूल कामों से उनका ध्यान भटक रहा है. नतीजा यह हो रहा है कि बैंकों में डिपॉजिट घट रहा है और एनपीए लगातार बढ़ रहा है.
बैंकों के अधिकारियों का कहना है कि म्यूचुअल फंड, लाइफ इंश्योरेंस सहित अन्य प्रोडक्ट की बिक्री करने के लिए सीनियर का काफी दबाव रहता है. वे लक्ष्य को लेकर बैंक शाखाओं पर लगातार दबाव बनाते हैं. बैंक शाखाओं में जाने पर बैंक अधिकारी ग्राहकों से तरह-तरह के प्रोडक्ट लेने के लिए इतना दबाव बनाते हैं कि कई ग्राहक न चाहते हुए भी इसे लेने के लिए मजबूर होते हैं.