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Jharkhand News: झारखंड के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स पर हर साल 400 करोड़ का खर्च, फिर भी रोज लौट रहे मरीज

बेहतर चिकित्सा सुविधा मुहैया कराने के लिए रिम्स को हर साल 400 करोड़ से अधिक का फंड मिलता है. लेकिन रिम्स में अव्यवस्था के कारण दूर-दूराज से बेहतर इलाज की उम्मीद लेकर आये मरीजों व उनके परिजनों को परेशानी का सामना करना पड़ता है.

रांची: बेहतर चिकित्सा सुविधा मुहैया कराने के लिए रिम्स को हर साल 400 करोड़ से अधिक का फंड मिलता है. लेकिन रिम्स में अव्यवस्था के कारण दूर-दूराज से बेहतर इलाज की उम्मीद लेकर आये मरीजों व उनके परिजनों को परेशानी का सामना करना पड़ता है. रोजाना 150 से 200 मरीजों को बिना परामर्श निराश लौटना पड़ता है.

राज्य के विभिन्न जिलों से रिम्स में प्रतिदिन करीब 2500 मरीज ओपीडी में परामर्श लेने आते हैं. वहीं, 1,600 से 1,700 मरीजों को विभिन्न वार्डों में भर्ती कर इलाज किया जाता है. रिम्स के डॉक्टर-कर्मचारियों पर लगे आरोपों से संस्थान की छवि खराब हो रही है. डॉक्टरों पर मरीजों से पैसा लेकर जांच करने, भर्ती कराने, बेड उपलब्ध कराने और ऑपरेशन कराने तक का आरोप लग चुका है. हाल ही में सीटीवीएस विभाग के मरीजों ने डाॅक्टर पर इलाज के एवज में पैसा मांगने का आरोप लगाया था. मामले में एक डॉक्टर को निलंबित भी किया गया है.

बुधवार को प्रभात खबर की टीम ने सुबह साढ़े आठ से 10:30 बजे तक और दोपहर ढाई से चार बजे तक रिम्स के विभिन्न ओपीडी का जायजा लिया. टीम ने ओपीडी की दोनों पालियों का जायजा लेने के साथ वार्डों का भ्रमण कर वहां भर्ती मरीजों की स्थिति और परेशानियों को नजदीक से देखा. ओपीडी का कमरा और पंजीयन काउंटर तो समय पर खुल गया था, लेकिन निर्धारित समय ( सुबह नौ बजे ) से आधा घंटा से 45 मिनट बाद तक सीनियर और जूनियर डाॅक्टर आते दिखे. कई विभाग में जूनियर डॉक्टर मरीजों को परामर्श देते दिखे.

पंजीयन काउंटर से शुरू होती है परेशानी : रिम्स में इलाज कराने आये मरीजों को पंजीयन पर्ची कटाने के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता है. छह काउंटर भी मरीजों के लिए कम पड़ जाते हैं. ऐसे में दोपहर बाद दूसरी पाली में मरीज की ओपीडी पर्ची बन पाती है.

कई मरीजों को दूसरी पाली में भी डॉक्टर का परामर्श नहीं मिल पाता है. मेडिसिन ओपीडी में सबसे ज्यादा रोजाना 250 से 300 मरीजों को परामर्श दिया जाता है. इसके बाद सर्जरी, गाइनी और शिशु विभाग के ओपीडी में मरीजों का दबाव रहता है.

फायर फाइटिंग पाइप व तार के सहारे चढ़ाया जाता है स्लाइन

न्यूरो सर्जरी के वार्ड की स्थिति ऐसी है कि कतार में फर्श पर भर्ती मरीजों को स्लाइन चढ़ाने के लिए स्टैंड तक नहीं मिल पाता है. फायर फाइटिंग पाइप लाइन या लोहे के तार के सहारे स्लाइन चढ़ाया जाता है. स्लाइन बांधने के लिए परिजनों को रस्सी भी खुद खरीद कर लानी पड़ती है. वहीं, कॉरिडोर में भर्ती मरीजों को ठंड से बचने के लिए कॉरिडोर में लगे ग्रिल में प्लास्टिक बांधना पड़ता है.

250 रुपये तक की जांच फ्री, लेकिन कई जांच बंद

रिम्स में 250 रुपये तक की जांच फ्री है, जिसमें रेडियोलॉजी के साथ-साथ ब्लड जांच भी शामिल है. जांच तो मुफ्त है, लेकिन रिम्स में कई सामान्य जांच प्रभावित रहती है. ऐसे में मरीजाें को परेशानी का सामना करना पड़ता है. रिम्स में फिलहाल सीबीसी सहित कई जांच नहीं हो रही है. इस कारण मरीजों को दोगुना पैसा खर्च कर निजी लैब में जांच करानी पड़ती है.

सीनियर व जूनियर डॉक्टर को मिलता है मोटा वेतन

प्रोफेसर 2.50 लाख

एसोसिएट प्रोफेसर दो लाख

असिस्टेंट प्रोफेसर 1.50 लाख

सीनियर रेजीडेंट एक लाख

रिम्स अधीक्षक डॉ हिरेंद्र बिरुआ बोले

एम्स से तुलना तो की जाती है, लेकिन उसकी तुलना में हमें सुविधा प्रदान नहीं की जाती है. वहां मरीजों को भर्ती करने के लिए सीट तय है, उससे ज्यादा भर्ती नहीं लिया जाता है. यही कारण है कि रिम्स में फर्श पर मरीजों को इलाज कराना पड़ता है. जब क्षमता से ज्यादा मरीज हाेंगे, तो अव्यवस्थाएं दिखेंगी ही. सीनियर लेवल पर डॉक्टर हैं, लेकिन जूनियर लेवल पर इनकी संख्या काफी कम है.

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