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रांची नगर निगम समेत 35 निकायों के बोर्ड अप्रैल में हो जायेंगे भंग, 13 नगर निकायों में 3 साल से लंबित है चुनाव

नगर निकायों का कार्यकाल खत्म होने के बाद आगामी मई महीने से राज्य भर के शहरों में सरकारी बाबुओं का राज होगा. आम लोगों को साफ-सफाई, स्ट्रीट लाइट व नाली, सड़क की मरम्मत, वृद्धा पेंशन जैसे कार्यों के लिए पार्षद को फोन करने की जगह नगर निगम के चक्कर लगाने पड़ेंगे. शहरों में पानी दिक्कत संभावित है.

रांची नगर निगम समेत राज्य के 35 नगर निकायों का बोर्ड अप्रैल माह के अंत तक भंग हो जायेगा. 13 नगर निकायों के चुनाव वर्ष 2020 से ही लंबित हैं. उसके बाद पूरे राज्य के नगर निकाय जनप्रतिनिधियों के हाथ से निकल जायेंगे. राज्य सरकार ने साफ कर दिया है कि ट्रिपल टेस्ट की प्रक्रिया पूरी कर ओबीसी आरक्षण तय करने के बाद ही नगर निकायों का चुनाव कराया जायेगा. ऐसे में अगले एक वर्ष तक राज्य में निकाय चुनाव संभव नजर नहीं आ रहा है.

नगर निकाय चुनाव नहीं होने के कारण वित्त आयोग की अनुशंसा पर मिलने वाली केंद्रीय सहायता में परेशानी होने के साथ शहरों में निवास करने वाले लोगों को भी काफी परेशानी होगी. झारखंड में गर्मी में होने वाली पानी की किल्लत लोगों की समस्याओं को कई गुणा बढ़ा सकती है.

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होगा बाबुओं का राज, लोगों को लगाने होंगे नगर निगम के चक्कर

नगर निकायों का कार्यकाल खत्म होने के बाद आगामी मई महीने से राज्य भर के शहरों में सरकारी बाबुओं का राज होगा. आम लोगों को साफ-सफाई, स्ट्रीट लाइट व नाली, सड़क की मरम्मत, वृद्धा पेंशन जैसे कार्यों के लिए पार्षद को फोन करने की जगह नगर निगम के चक्कर लगाने पड़ेंगे. शहरों में पानी दिक्कत संभावित है. मोहल्लों में पानी की किल्लत दूर करने के लिए सबसे ज्यादा मेहनत करने वाले पार्षदों की जनप्रतिनिधि के रूप में कमी खलेगी. वर्तमान में पार्षदों के माध्यम से लोगों को टैंकर से पेयजल सुलभ कराया जाता है. पार्षदों के नहीं होने से लोगों को निगम कार्यालय से संपर्क कर पेयजल उपलब्ध कराने की मिन्नत करनी पड़ेगी.

योजनाओं में खत्म हो जायेगी जनता की भागीदारी

नगर निकायों का बोर्ड भंग होने से शहरों में चलने वाली विकास योजनाओं से जनता की भागीदारी समाप्त हो जायेगी. फिलहाल, पार्षदों की अनुशंसा पर शहर के विकास की योजनाएं तैयार की जाती है. नाली, सड़क, स्ट्रीट लाइट, सार्वजनिक शौचालय जैसी सुविधाएं लोगों की जरूरत के मुताबिक बनायी जाती है. निगम बोर्ड स्थानीय जरूरतों का ध्यान रखते हुए योजनाओं को स्वीकृति प्रदान करता है, लेकिन बोर्ड के नहीं रहने पर अफसर अपने मन-मुताबिक योजना तैयार कर उसकी स्वीकृति प्राप्त कर सकेंगे. जनता की आवश्यकता का आकलन किये बिना भी योजनाओं को लागू किया जा सकता है.

सहायता राशि पर लग सकती है रोक

राज्य में नगर निकायों का चुनाव नहीं होने से राज्य सरकार को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ सकता है. शहरी निकायों के विकास के लिए 15वें वित्त आयोग से लगभग 1600 करोड़ रुपये पर राज्य का दावा है. संविधान के 74वें संशोधन पर स्पष्ट किया गया है कि नियमित चुनाव कराने में विफलता और लंबे समय तक शक्तियों व कार्यों के अपर्याप्त हस्तांतरण होने की स्थिति में राज्य वित्त आयोग की अनुशंसा पर मिलने वाली वित्तीय सहायता से वंचित हो सकते हैं.

माना गया है कि चुनाव नहीं कराने या शक्तियों का हस्तांतरण नहीं करने की वजह से स्थानीय निकाय कमजोर और अप्रभावी हो जाते हैं. पहले ही राज्य के 13 निकायों में पिछले तीन वर्षों से चुनाव लंबित हैं. अब शेष 35 निकायों का भी तय समय में चुनाव नहीं होने पर वित्त आयोग की अनुशंसा पर मिलने वाली सहायता राशि पर रोक लगायी जा सकती है.

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