Jharkhand Chunav: कौन थे झारखंड के पहले कुड़मी नेता, जानें उनका चुनावी सफर
Jharkhand Chunav: जगन्नाथ महतो झारखंड के पहले कुड़मी नेता थे. उन्हें 1952 के विधानसभा चुनाव में जयपाल सिंह ने सोनाहातु प्रत्याशी बनाया था. उन्होंने कांग्रेस के प्रताप चंद्र मित्र को हराया था.
रांची : झारखंड की राजनीति में आदिवासियों के साथ-साथ कुड़मी (महतो) का बहुत ज्यादा प्रभाव रहा है. राजनीतिक दल भी टिकट के बंटवारे में जातीय समीकरण का ख्याल रखते हैं. यह प्रभाव 1952 के पहले चुनाव से ही दिखता है. 1950 में झारखंड पार्टी बनी थी और जयपाल सिंह ने गैर-आदिवासियाें को झारखंड आंदोलन से जोड़ने का प्रस्ताव पारित किया था. उसके बाद पहले चुनाव में जब टिकट का बंटवारा हुआ तो उसमें भी उन्होंने कुड़मी (महतो) पर भरोसा किया और टिकट दिया. झारखंड का एक बड़ा इलाका कुड़मी बहुल है. तब पुरुलिया-मानबाजार आदि कुड़मी बहुल क्षेत्र बंगाल में शामिल नहीं हुआ था और वह बिहार का ही हिस्सा था.जयपाल सिंह ने अपनी टीम में जगन्नाथ महतो और विष्णु चरण महतो जैसे प्रबुद्ध लोगों को रखा था, जो महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते थे. वे दोनों पर बहुत भरोसा करते थे. जगन्नाथ महतो तो झारखंड पार्टी के महासचिव भी थे. 1952 के पहले विधानसभा चुनाव में जयपाल सिंह ने सोनाहातु से जगन्नाथ महतो कुड़मी को प्रत्याशी बनाया था. जगन्नाथ महतो अपने नाम के साथ ही कुड़मी लिखते थे. झारखंड पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ कर उन्होंने कांग्रेस के प्रताप चंद्र मित्र को हराया था.
बिहार विधानसभा में पहुंचने वाले पहले कुड़मी विधायक थे जगन्नाथ महतो
बिहार विधानसभा में पहुंचनेवाले पहले कुड़मी विधायक जगन्नाथ महतो ही थे. 1957 में साेनाहातु सीट का नाम बदल गया और रांची (दो सीट थी) हो गया. जगन्नाथ महतो दुबारा झारखंड पार्टी से चुनाव लड़े और जीत गये. लेकिन 1962 में सोनाहातु सुरक्षित हो गया जिसके कारण उन्हें सिल्ली से लड़ना पड़ा और वे चुनाव हार गये. उन्होंने झारखंड पार्टी के कांग्रेस में विलय का विरोध किया था और एनई होरो को आगे बढ़ा दिया था. उन्होंने 1955 में कांची सिंचाई परियोजना शुरू की थी. आजसू के पूर्व अध्यक्ष ललित महतो के वे नाना थे.
कुड़मी नेताओं का चुनावी सफर
1952 के चुनाव में ही झारखंड पार्टी ने सिल्ली से विष्णु चरण महतो को प्रत्याशी बनाया था लेकिन वे चुनाव नहीं जीत सके थे. वे प्रसिद्ध अधिवक्ता थे, लॉ कॉलेज के संस्थापक थे. वे जयपाल सिंह को आवश्यक दस्तावेज-ज्ञापन तैयार करने में बड़ी भूमिका अदा करते थे. 1957 में विष्णु महतो ने झारखंड पार्टी से ही सिल्ली से चुनाव लड़ा और सिर्फ 223 मत से हार गये. ऐसी बात नहीं कि सिर्फ झारखंड पार्टी ने ही कुड़मियों को मैदान में उतारा था. कांग्रेस और लोक सेवक समिति ने भी कुड़मियों को टिकट दिया था और वे जीते भी थे. तब झालदा, बड़ा बाजार,मान बाजार आदि बंगाल में नहीं गया था. 1952 के बिहार विधानसभा चुनाव में झालदा से देवेंद्रनाथ महतो ने जीत हासिल की थी. उन्होंने लोक सेवक संघ के सागर चंद्र महतो को हराया था. उस क्षेत्र में लोक सेवक संघ का अच्छा प्रभाव था. मानबाजार-पटमदा विधानसभा से लोक सेवक संघ के सत्य किंकर महतो और बड़ा बाजार-चांडिल से भीम चंद्र महतो भी चुनाव जीत गये थे. ये सभी कुड़मी थे लेकिन ये इलाके बाद में बंगाल में शामिल हो गये.
विनोद बिहारी महतो को जीत के लिए करना पड़ा था इंतजार
बाद के दिनों में भी राजनीतिक दलों ने टिकट बांटने में कुड़मी का ध्यान रखा. 1957 से बहरागोड़ा (घाटशिला नाम से सीट) से शिशिर कुमार महतो झारखंड पार्टी से चुनाव जीते थे. कांग्रेस से चांडिल से धनंजय महतो विधायक बने. 1962 में चास से स्वतंत्र पार्टी के टिकट पर प्रभात चरण महतो चुनाव जीते. विनोद बिहारी महतो झारखंड मुक्ति मोरचा के संस्थापकों में थे लेकिन आरंभ के दिनों में उ्न्हें भी जीत के लिए काफी इंतजार करना पड़ा.
1952 में विनोद बिहारी महतो ने पहली बार लड़ा चुनाव
1952 में विनोद बाबू ने बलियापुर से निर्दलीय लड़ा लेकिन हार गये.1957 में विनोद बाबू निरसा से निर्दलीय लड़े, 1962 में वे जोड़ा पोखर से चुनाव मैदान में उतरे लेकिन सफल नहीं हो सके. उन्हें 1980 तक इंतजार करना पड़ा. इसी प्रकार निर्मल महतो इतने बड़े नेता होने का बावजूद चुनाव नहीं जीत सके थे. एक और प्रभावशाली नेता शक्ति महतो (धनबाद) ने भी टुंडी से 1977 में चुनाव लड़ा लेकिन वे भी जीत नहीं सके.
कई कुड़मी नेताओं जीतते रहे हैं चुनाव
1962 के बाद कई कुड़मी नेता चुनाव जीतते रहे. इनमें रामटहल चौधरी (कांके, 1969, 1972), छत्रु महतो (जरीडीह 1972 और गोमिया 1977), घनश्याम महतो, (फारवर्ड ब्लाक), घनश्याम महतो (कांग्रेस), वन बिहारी महतो (सरायकेला, 1969), टेकलाल महतो (मांडू), केशव महतो कमलेश, शिवा महतो, आनंद महतो (सिंदरी, 1977), लालचंद महतो (डुमरी,1977), विद्युत महतो (बहरागोड़ा), सुदेश महतो (सिल्ली), जगन्नाथ महतो (डुमरी), चंद्र प्रकाश चौधरी (रामगढ़) आदि प्रमुख हैं. रामटहल चौधरी पहले कांके से दो बार यानी 1969 और 1972 में विधायक बने थे. लेकिन 1977 के चुनाव में यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हो गयी और उन्हें सिल्ली से लड़ना पड़ा, जहां वे जीत नहीं सके थे. बाद में वे कई बार रांची लोकसभा क्षेत्र से चुनाव जीतते रहे.
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