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झारखंड के ये 4 विधायक- सरकार के कामकाज से कितने संतुष्ट?

झारखंड के 4 कांग्रेस विधायकों ने बताया कि किस तरह वे अपने विधानसभा क्षेत्र की समस्याओं से लेकर संजीदा हैं और मीडिया से लेकर सदन तक अलग-अलग फोरम में अपनी बातें प्रभावी तरीके से रखने का काम कर रही हैं.

प्रभात खबर संवाद कार्यक्रम में मंगलवार (01 अगस्त) को कांग्रेस की महगामा विधायक दीपिका पांडेय सिंह, झरिया विधायक पूर्णिमा नीरज सिंह, मांडर विधायक शिल्पी नेहा तिर्की व बड़कागांव विधायक अंबा प्रसाद ने शिरकत की और सरकार के कामकाज, नीतियों और योजनाओं पर खुल कर अपने विचार रखे. विधायकों ने बताया कि किस तरह वे अपने विधानसभा क्षेत्र की समस्याओं से लेकर संजीदा हैं और मीडिया से लेकर सदन तक अलग-अलग फोरम में अपनी बातें प्रभावी तरीके से रखने का काम कर रही हैं. संवाद में पूछे गये सवालों का इन विधायकों ने तर्क के साथ जवाब दिया और पार्टी व क्षेत्र के लोगों की बातों को पूरी कुशलता के साथ रखा. पेश है विधायकों के साथ बातचीत के प्रमुख अंश.

आपकी पारिवारिक पृष्ठभूमि राजनीतिक रही है. माता-पिता का लंबा राजनीतिक संघर्ष रहा है. आपकी राजनीतिक यात्रा ने एक मुकाम देखा है, आप कैसा महसूस करती हैं?

मेरे राजनीति में होने का बड़ा कारण माता-पिता ही हैं. मेरे मुकाम तक पहुंचने से उनके संरक्षण को पहचान मिली है. राजनीतिक परिवार में शादी होने की वजह से मुझे कैरियर च्वाइस में परेशानी नहीं हुई, लेकिन मैंने अपने हिस्से का पूरा संघर्ष किया है. 1999 में मैंने कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ली थी, लेकिन 2010 से मैं राजनीति में पूरी तरह से सक्रिय हुई. 10 साल यूथ कांग्रेस में राजनीति की. फिर जिलाध्यक्ष बन कर काम किया. आज मैं ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी में हूं. यह संगठन के सर्वोच्च पदों में से है.

पार्टी के अंदर माना जाता है कि आप महत्वाकांक्षी हैं. प्रदेश अध्यक्ष भी आपको बनना है, मंत्री की दौड़ में रहतीं हैं?

पार्टी ने मुझे जो भी काम दिया है, उसे मन लगा कर पूरा करने का प्रयास करती हूं. संगठन और चुनावी राजनीति, दोनों में ही पार्टी ने अवसर दिये. मैं हमेशा दिये गये मौकों पर खरी उतरने की कोशिश करती हूं. सौभाग्य से अब तक सफलता भी मिली है. मैं कुछ बनना नहीं चाहती, अध्यक्ष या मंत्री बनने की चाहत से मुझे मीडिया ही जोड़ती है. मैं पार्टी की समर्पित कार्यकर्ता हूं. पार्टी के निर्देशों पर काम करती रहूंगी.

गोड्डा से सांसद का चुनाव लड़ने की कोई योजना. पार्टी मौका देती है, तो चुनावी मैदान में जायेंगी?

देश में वर्तमान शक्तियां हावी रहीं, तो मणिपुर और हरियाणा देश की मौजूदा स्थिति की बानगी भर है. हम सभी 2024 का लक्ष्य लेकर चले हैं. देश से तानाशाही शक्तियों को भगाने के लिए काम कर रहे हैं. इसमें मेरा योगदान क्या होगा, यह पार्टी तय करेगी.

राज्य सरकार के कामकाज पर भी कई बार आप सवाल उठाती रहीं हैं. सरकार की फिलहाल क्या प्राथमिकता हो?

मैंने राहुल गांधी को काम करते देखा है. शुरू से ही उनके नेतृत्व में काम किया है. हमारा काम कमजोरों की आवाज उठा कर उनकी समस्याओं का समाधान करना है. मुझे लगता है कि झारखंड गठन करने का उद्देश्य बीते 23 सालों में भी पूरा नहीं हुआ है. पूर्व की सरकारों ने अपना काम नहीं किया. अब राज्य में संवेदनशील सरकार है. काम हो रहा है, लेकिन राज्य में सबकुछ ठीक है, ऐसा कहना पूरी तरह से गलत है. मैं बस जनता के मुद्दों को सरकार के सामने उठाती हूं. इसे खिलाफत नहीं कहा जा सकता है.

केंद्र सरकार झारखंड के साथ सौतेला व्यवहार करती है. लगातार दूसरे साल भयानक सुखाड़ से जूझते झारखंड को आर्थिक सहयोग देने से केंद्र मना कर रहा है. झारखंड में डायन-बिसाही और ट्रैफिकिंग जैसे मुद्दों पर तो बातें होती हैं, लेकिन बाल विवाह और शराबबंदी पर थोड़ा फोकस करने की भी जरूरत है.

महिलाओं की भागीदारी बढ़े तो और बेहतर करेंगे : अंबा

Qबड़कागांव में आपका परिवार बड़ी राजनीतिक ताकत है. पिता मंत्री रहे, मां विधायक बनीं और अब आपको मौका मिला है. विवादों से भी नाता रहा है, ऐसा क्यों?

संघर्ष मेरे पिता की पहचान है. वह शुरू से ही विस्थापितों की आवाज रहे हैं, उनके मुद्दे उठाते रहे हैं. जनता को महत्व देने की वजह से ही अधिकारी और कंपनियां उनसे नाराज रहती हैं. उनको टारगेट किया जाता रहा है. मेरे पिता के बाद मां को मौका मिला. वह भी विस्थापितों की आवाज बनीं. मेरे क्षेत्र में किसानों के साथ अन्याय होता रहा है. वहां जमीन के नीचे कोयला और ऊपर उपजाऊ खेत है, लेकिन किसानों को उनकी जमीन का उचित मुआवजा नहीं मिलता है. विस्थापितों को उनका वाजिब हक नहीं दिया जाता है. उनके लिए लड़ने की वजह से ही मेरे माता-पिता पर पचासों मामले दर्ज किये गये. अब विस्थापितों के लिए लड़ना मेरा संघर्ष है और यह उनका हक मिलने तक जारी रहेगा.

पार्टी में महिलाओं की भागीदारी पर्याप्त है या और अवसर मिलने चाहिए?

महिलाओं की भागीदारी निश्चित रूप से बढ़नी चाहिए. पार्टी भी यह जानती है. हम नये हैं. पार्टी हमें सीखने का मौका दे रही है. आगे हम और भी बेहतर करेंगे.

क्षेत्र से लेकर कई ऐसे मुद्दे रहे हैं, जिसे आप उठाती रही हैं. सरकार से आपकी क्या अपेक्षा है?

राजनीति में आने के बाद सरकार को करीब से देखा है. हमारी सरकार उन मुद्दों पर काम कर रही है, जिससे राज्य गठन के बाद से ही जूझ रहा है. सरकार विसंगतियों को दूर करने का प्रयास कर रही है. राज्य में ओबीसी समुदाय के लिए आरक्षण लागू करने का प्रयास आज तक नहीं हुआ. विस्थापितों को उनका वाजिब हक दिलाने का उचित प्रयास नहीं किया गया. हम सभी चीजों को ठीक करने पर काम कर रहे हैं. राज्य में निजी कंपनियों ने हमेशा मनमानी की. अब राज्य सरकार ने निजी कंपनियों में 75 प्रतिशत स्थानीय को रोजगार देने का कानून लागू किया है. हम उसे लागू भी करायेंगे. सरकार आपके द्वार कार्यक्रम चला कर हम समाज के अंतिम तबके पर बैठे व्यक्ति तक पहुंचे. उनको योजनाओं का लाभ दिया.

हजारीबाग से संसदीय चुनाव में आपकी दावेदारी की चर्चा है. लोकसभा चुनाव के लिए आप कितना तैयार हैं?

मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है. हां, हजारीबाग जाने पर कई लोग ऐसा बोलते हैं. हजारीबाग के कई लोगों ने मेरे पास आकर भी इस मुद्दे पर बात की है. यह लोगों का लगाव है. मुझे पता नहीं भविष्य में क्या होगा. मैं अपना काम कर रही हूं. आगे क्या करना है, यह पार्टी तय करेगी.

स्थानीय व नियोजन नीति में सबका समायोजन हो : पूर्णिमा

कोयलांचल के जिस इलाके से आप आती हैं, भाजपा बड़ी चुनौती है. लोकसभा या विधानसभा चुनाव कैसे निपटेंगी?

मेरी सीट पारंपरिक रूप से भाजपा की सीट रही है. मेरे जीतने से पहले 15 साल तक भाजपा जीती है. उसके बाद कुछ वर्षों को छोड़ दिया जाये, तो वह एक परिवार की सीट रही है. मैं परिस्थितिवश राजनीति में आयी. मेरे लिए काफी चुनौतीपूर्ण कार्य रहा. आगे पार्टी का जैसा निर्देश होगा, उसके अनुरूप आगे बढ़ेगे.

झरिया में कोयला चोरी परवान पर है. आपके साथियों पर भी आरोप लगते हैं. आपके प्रतिद्वंद्वी घराने भी आपके परिवार पर रंगदारी मांगने आरोप लगाते हैं, क्या कहेंगी?

आरोप तो लगेगा. आपको यह भी देखना होगा कि आरोप लगानेवाले कौन हैं. आरोप से घबरायेंगे, तो राजनीति नहीं कर पायेंगे. जहां तक कोयला चोरी का सवाल है, तो कौन कर रहा है यह भली भांति सबको पता है. अगर कोई आजीविका के लिए एक-दो बोरा ले जाता है, ताे हम क्या कर सकते हैं. 72 हजार परिवार ऐसे हैं, जिनके पास आजीविका का ठोस साधन नहीं है. ऐसे लोगों पर कार्रवाई की आवश्यकता है क्या? पर जब कोई संगठित रूप से कोयला का चोरी करता है, तो इसके खिलाफ दूसरों से अधिक हमने आवाज उठायी है.

झरिया में विस्थापन, प्रदूषण से लेकर पेयजल बड़ी समस्या है, सरकार से कितना सहयोग मिल पा रहा है?

झरिया में तीन सबसे बड़ी समस्या है. विस्थापन, पानी व प्रदूषण की समस्या यहां के लोग झेल रहे हैं. तीनों समस्या एक-दूसरे से जुड़ा है. विस्थापन को लेकर 20 साल पहले सर्वे हुआ, आज वह व्यावहारिक नहीं हो सकता. मेरे प्रयास से झरिया विस्थापन पुनर्वास समिति की पहली बार जन प्रतिनिधियों के साथ बैठक हुई. भारत सरकार ने इसके लिए 750 करोड़ रुपये स्वीकृत किये हैं. मुआवजा की राशि भी बढ़ा दी गयी है, रैयतो को जमीन भी दी जायेगी. पेयजल के लिए भी हमने काम किया. फाइलों में बंद पिछली सरकार की पेयजल योजना को जब हमारी सरकार बनी तो हमने शुरू करवाया. इससे पेयजल की समस्या 70 से 80 फीसदी तक दूर होगी. डीएफएमटी फंड का उपयोग भी पेयजल के लिए किया गया.

1932 के खतियान की नीति को लेकर क्या विचार है, नियोजन की नीति क्या हो?

झारखंड को अगर देखा जाये, तो वह दो भागों में बंटा हुआ है, एक तो हम जैसे लोग, जिसे बाहरी कहा जाता है, जन्मभूमि से बड़ी कर्म भूमि होती है. नीतियों में दोनों का समायोजन होना चाहिए. अगर आप 1932 को ही लेते हैं, तो कोल्हान की सांसद इसका विरोध कर रही हैं. कोल्हान का सर्वे कुछ और है. इस मामले में एकरूपता लानी होगी. आज मेरे पास जो लोग आते हैं, वे 1925, 1928 का खतियान लेकर आते हैं, तो क्या इनका मान्य नहीं होगा. हम केवल 1932 को क्यों मानेंगे. जो बाहर से आये हैं, उनका हक नहीं बनता है क्या.

सीएनटी-एसपीटी एक्ट के बाद भी जमीन की लूट : शिल्पी

Qआप परिस्थितियों के कारण राजनीति में आयीं, विधायक बनीं, बेहतर कैरियर छोड़ कर अब इस नयी जवाबदेही को किस रूप में देख रही हैं?

हां, यह बात सही है कि परिस्थिति ऐसी बनी कि मुझे चुनाव लड़ना पड़ा. नौकरी छोड़ कर राजनीति में आयी, जब मैं राजनीति में आयी, तो मुझे भी नहीं लगा कि मैं अपना सौ फीसदी दे पाऊंगी. शुरू में डर लग रहा था, यह 365 दिन का काम है. अपने वादा को पूरा करने के लिए दिन-रात काम करना होता है.

सिस्टम में गड़बड़ी, जमीन लूट और आदिवासी मुद्दों पर आप मुखर रहती हैं. सरकार को कितना संवेदनशील मान रही हैं?

जनता हमें कई कारणों से चुन कर भेजती है. हम सरकार में इस कारण किसी भी गलत काम को देख कर अनदेखा करना कहीं से सही नहीं है. मीडिया के माध्यम से हो या सदन के माध्यम से हम लोग इसे उजागर करते रहते हैं. हम सकारात्मक रूप से सरकार को भी आइना दिखाने का काम करते हैं. सरकार भी इसमें संवेदनशीलता दिखाती है. हम लोग जब कभी कोई मांग लेकर गये हैं, तो उस पर कार्रवाई हुई है.

कांग्रेस ने सरकार में एक भी महिला को मंत्री नहीं बनाया, इसे किस रूप में देख रही हैं. क्या महिला भागीदारी के साथ नाइंसाफी है?

मंत्री बनने की इच्छा तो सभी की होती है. महिला मंत्री होना चाहिए, पर जितनी काबिलियत, क्षमता कांग्रेस की महिला विधायकों में है, उसे भी अधिक दिनों तक छुपाया नहीं जा सकता है. दूसरी बात यह भी है कि आपमें अगर क्षमता है, तो आप मंत्री रहे या नहीं रहे, जहां जिस पद पर हैं अपनी जनता व राज्य की सेवा कर सकते हैं.

विधानसभा को लेकर क्या अनुभव हैं, सदन मुद्दों पर बहस का केंद्र बन पाया या नहीं?

जनता का मुद्दा सदन में आता है. सरकार का ध्यान उस ओर दिलाने का प्रयास करते हैं. इसके बाद भी अगर सही मायने में कहूं तो इस राज्य को काफी सुधार की आवश्यकता है. झारखंड में पहला मुद्दा है जमीन का मुद्दा. सीएनटी, एसपीटी एक्ट के होते हुए जमीन की लूट हो रही है. एक्ट के रहते हुए जमीन की लूट हुई, पर किसी भी सरकार या दल ने इसकी समीक्षा नहीं की. सीएनटी एक्ट के तहत आदिवासी ही आदिवासी की जमीन खरीद सकते हैं, पर इसमें भी थाना क्षेत्र का प्रावधान है. रांची से अलग होकर लोहरदगा अलग जिला बना, उस समय कुल 11 थाने थे, आज कितने है, ऐसे में अगर आदिवासी भी जमीन खरीद रहे हैं, तो यह गलत है. समय बदला, तो इसकी समीक्षा क्यों नहीं की गयी. सीएनटी, एसपीटी एक्ट में अच्छे संशोधन क्यों नहीं किये गये . इसे किसी सरकार ने नहीं देखा.

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