रांची: झारखंड की साढ़े तीन करोड़ आबादी ने आज यानी 31 मार्च को कोरोना महामारी से जूझते हुए दो साल का सफर पूरा कर लिया है. दो साल में राज्य के 4,35,143 लोग इस महामारी की चपेट में आये, लेकिन सुखद बात यह रही कि 4,29,771 लोगों ने कोरोना महामारी को हराकर जिंदगी की जंग जीत ली.
राज्य में सबसे ज्यादा रांची जिले के 1,12,105 और पूर्वी सिंहभूम के 68,636 लोगों ने कोरोना को हराया. हालांकि दुखद यह रहा है कि कोरोना से जूझते हुए राज्य के 5,315 लोगों को हमने खोया भी. सबसे ज्यादा रांची जिले के 1,606 और पूर्वी सिंहभूम के 1,118 अपनों को हमने खो दिया है. रांची में बुधवार को कोई नया काेरोना मरीज नहीं मिला. फिलहाल कोरोना की पाबंदियां खत्म कर दी गयी हैं और पूर्व की स्थिति बहाल कर दी गयी है, लेकिन विशेषज्ञ सतर्कता की सलाह दे रहें हैं.
राज्य में कोरोना का पहला केस 31 मार्च 2020 को रांची के हिंदपीढ़ी में मिला था, जहां मलेशिया से आयी युवती कोरोना संक्रमित पायी गयी थी. इसके बाद से घटते-बढ़ते कोरोना संक्रमण आज भी जारी है. लेकिन कोरोना काल में राज्य सरकार के स्वास्थ्य विभाग ने चुनौतियों का सामना करते हुए स्वास्थ्य सेवाओं को भी बेहतर किया और इंफ्रास्ट्रक्चर में बढ़ोतरी की.
कोरोना के इस दौर में राज्य में अभी तक 2,15,46,560 लोगों ने कोरोना की जांच करायी है, जिसमें से 2,11,11,423 लोगों की रिपोर्ट निगेटिव हुई है. विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना अभी गया नहीं है, इसलिए कोरोना गाइडलाइन का पालन करते रहना होगा. सुरक्षा के साथ जीने की आदत डालनी होगी. कोरोना गाइडलाइन के तहत मास्क, सामाजिक दूरी, हाथों की सफाई और टीका का पालन करते रहना होगा.
16 जनवरी 2021 को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने रांची सदर अस्पताल से 18 प्लस, स्वास्थ्य कर्मियों और फ्रंट लाइन वर्कर के टीकाकरण का शुभारंभ किया. स्वास्थ्य विभाग ने 18 प्लस के 70 फीसदी यानी 1,46,75,976 को दोनों डोज का टीका लग चुका है. 10% को बूस्टर डोज लगा है.
राज्य में 12 साल से ऊपर के किशोरों का टीकाकरण चल रहा है. स्वास्थ्य विभाग के अनुसार 12 से 14 साल के 2,85,274 किशोरों को पहला डोज का टीका लगा है. वहीं, 15 से 17 साल के 13,60,446 किशोरों को पहला और 6,85,158 किशोरों को दूसरा डोज का टीका लगाया जा चुका है.
कोरोना जब झारखंड आया था, उस समय सबकुछ नया था. ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल और दवाओं के उपयोग पर फूंक-फूंक कर कदम उठाया जा रहा था. ऐसे में उस समय इलाज करना और मरीजों को स्वस्थ कर घर भेजना चुनौती भरा था, लेकिन राहत की बात यह रही कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को हम स्वस्थ कर पाये. हालांकि दूसरी लहर सबसे खतरनाक थी.
डॉ प्रदीप भट्टाचार्या, क्रिटिकल केयर विशेषज्ञ
Posted By: Sameer Oraon