Coronavirus Update in Jharkhand, Jharkhand News, Ranchi News रांची : पिछले साल के दिसंबर महीने में जब कोरोना के केस कम मिलने लगे, तो राज्य सरकार का स्वास्थ्य विभाग अलर्ट नहीं रहा. कोरोना नियंत्रण के लिए बनी टीम खत्म कर दी गयी और केवल कुछ लोगों की रूटीन जांच के भरोसे पूरा सिस्टम रह गया. इधर, 16 जनवरी से टीकाकरण शुरू होते ही विभाग का फोकस उधर शिफ्ट हो गया. ऐसे में कोरोना संक्रमण में हाल के दिनों में आयी अप्रत्याशित तेजी के बाद उत्पन्न इमरजेंसी की स्थिति को विभाग और राज्य के अस्पताल संभाल ही नहीं पाये.
18 मार्च के पहले विभाग को यह अनुमान तक नहीं था कि संक्रमण को लेकर इतनी गंभीर स्थिति हो जायेगी. अब तो हालत यह है कि मरीजों को बेड नहीं मिल रहा है. जरूरी दवाएं नहीं हैं. 18 मार्च के बाद औसतन 900 से अधिक मिलने लगे. रांची में वर्तमान में 15 से लेकर 10 प्रतिशत तक संक्रमित मिल रहे हैं. अॉक्सीजन की उपलब्धता पर भी संकट हो रहा है. मरीज दम तोड़ रहे हैं. वहीं, कोरोना की पहली लहर में यही विभाग सारी व्यवस्था कर चुका था, वह भी तब जब राज्य में जांच के लिए एक आरटीपीसीआर मशीन तक नहीं थी.
सितंबर 2020 में जब कोरोना पीक पर था. नौ-10 सितंबर को पूरे राज्य में एक्टिव केस की संख्या 16 हजार के करीब थी. तब रांची में ही एक्टिव केस 3500 के करीब थे. उस समय भी रांची या राज्य के अन्य हिस्सों में बेड का संकट हुआ.
दूसरी ओर 16 अप्रैल को सुबह 10 बजे तक पूरे राज्य में एक्टिव केस की संख्या 20651 हो गयी है. वहीं राजधानी रांची में 8661 एक्टिव केस हो गये हैं. रांची में बड़ी संख्या में लोग बेड के लिए परेशान हैं. इलाज नहीं हो पा रहा है. राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स में बेड फुल है. निजी अस्पतालों में भी यही स्थिति है.
कोरोना संक्रमित मिल रहे हैं, पर अभी कांटैक्ट ट्रैसिंग का काम पूरी लगन से नहीं किया जाता. जिसके कारण संक्रमण फैलता जा रहा है. हाल ही में रेलवे स्टेशन में मिले संक्रमितों को आइसोलेट करने की जगह उन्हें छोड़ दिया गया. जाहिर वे जहां जायेंगे, वहां संक्रमण फैलायेंगे ही.
जानकार बताते हैं कि दिसंबर में रोज 50 से 60 संक्रमित मिल ही रहे थे. रांची में भी 20 से 25 संक्रमित मिल रहे थे. ऐसे में जिलों में कांटैक्ट ट्रैसिंग का काम लगभग बंद कर दिया गया. जो लोग स्वेच्छा से सैंपल देने आते थे, उन्हीं का सैंपल लिया जाता था और जांच की जाती थी. निजी अस्पतालों को डेडिकेटड कोविड बेड से मुक्त कर दिया गया. रिम्स में भी डेडिकेटेड कोविड वार्ड में बेड की संख्या कम कर दी गयी.
सदर अस्पताल में 60 वेंटिलेटर पड़े हुए थे, पर उसे चालू करने की कभी पहल ही नहीं की गयी. खेलगांव, पिस्का मोड़ आदि में बने आइसोलेशन सेंटर को भी बंद कर दिया गया. हालांकि मार्च माह में रांची में केस बढ़ने के संकेत मिलने लगे थे. इसके बावजूद न तो विभाग ने और न ही जिला प्रशासन ने इसका अनुमान लगाया. नतीजा हुआ कि केस अचानक बढ़ने लगे. आनन-फानन में रिम्स कोविड वार्ड को दोबारा शुरू किया गया.
पूर्व में लगे चिकित्सकों को पुन: ड्यूटी पर लगाया गया. लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी. रिम्स में अभी कोविड वार्ड को पूरी तरह एक्टिवेट करने का काम चल ही रहा है. सदर अस्पताल में वेंटिलेटर्स बेड हैं, पर उन्हें चालू करने के लिए टेक्निशियन नहीं थे. उन्हें लाया गया, पर अभी भी पूर्ण रूप से वेंटिलेटर्स चालू नहीं हो सके. अब आनन-फानन में निजी अस्पतालों में 50 प्रतिशत बेड आरक्षित किया, जबकि सामान्य तौर पर नियम होता है कि जितने एक्टिव केस होते हैं, उसका तीन गुना बेड रखने की तैयारी नियमित रूप से की जाती है.
लेकिन बेड बढ़ाने की दिशा में ज्यादा पहल नहीं हो रही है. अप्रैल से लेकर सितंबर 20 तक विभाग द्वारा लगातार उपायुक्तों को यह निर्देश दिया जाता रहा था कि एक्टिव केस की तुलना में तीन गुना अधिक बेड की व्यवस्था सुनिश्चित करते रहें.
कोरोना नियंत्रण के लिए बनी टीम खत्म कर दी गयी
रूटीन जांच के भरोसे पूरा सिस्टम रह गया
20 से 25 संक्रमित मिल रहे थे 18 मार्च तक रांची में प्रतिदिन औसतन
900 से अधिक मिलने लगे 18 मार्च के बाद औसतन
15% से लेकर 10% तक मिल रहे हैं संक्रमित रांची में वर्तमान में
Posted By : Sameer Oraon