झारखंड के DGP अनुराग गुप्ता और साइंटिस्ट गुंजन कुमार को गृह मंत्री अमित शाह ने किया सम्मानित, जानें वजह

Jharkhand Cyber Crime News: झारखंड के डीजीपी अनुराग गुप्ता और साइंटिस्ट गुंजन कुमार को गृह मंत्री अमित शाह ने सम्मानित किया है. प्रतिबिंब ऐप के जरिये साइबर अपराधियों पर लगाम लगाने के लिए ये पुरस्कार दिया गया.

By Sameer Oraon | September 10, 2024 2:22 PM

Jharkhand Cyber Crime News, रांची : झारखंड के डीजीपी अनुराग गुप्ता (Anurag Gupta) और डाटा साइंटिस्ट गुंजन कुमार को गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) ने मंगलवार को सम्मानित किया है. दिल्ली में आयोजित विज्ञान भवन के स्थापना दिवस पर ये पुरस्कार दिया गया. प्रतिबिंब एप के जरिये साइबर अपराधियों पर नकेल कसने की वजह से ये सम्मान दिया गया. ऐप लॉन्च होने के बाद से ही ये पुलिस सबसे बड़ा हथियार बन गया है. उल्लेखनीय है साइबर अपराधियों को ट्रैक करने के लिए सीआइडी डीजी अनुराग गुप्ता ने प्रतिबिंब ऐप तैयार कराया था.

दूसरे राज्यों के फ्रॉड केस भी हो रहा खुलासा

प्रतिबिंब ऐप के लॉन्च होने के बाद न सिर्फ झारखंड के साइबर अपराधी फंस रहे हैं बल्कि दूसरे राज्य के फ्रॉड भी खुलासा हो रहा है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण कुछ माह पूर्व गिरिडीह से अपराधियों का पकड़ा जाना है. उस वक्त जांच के दौरान ये खुलासा हुआ था कि साइबर अपराधियों ने रांची में रहने वाले बंगाल कैडर के एक आइएएस अधिकारी से ठगी की घटना को अंजाम दिया था. साइबर अपराधियों को ट्रैक करने में इस ऐप की सुविधा दूसरे राज्यों की पुलिस को भी दी जा रही है.

कैसे करता है काम

1. दरअसल झारखंड सीआईडी द्वारा लॉन्च प्रतिबिंब ऐप देश में हो रहे साइबर अपराध के उपयोग में आने वाले मोबाइल नंबरों की मैपिंग करता है.

2. अगर किसी भी मोबाइल नंबर को इस ऐप में डाला जाए तो उसका लोकेशन ऐप में दिखाई देने लगेगा. जिससे पुलिस आसानी से अपराधियों के काम करने के इलाकों का पता लगा सकती है

कैसे पता चलता है साइबर अपराध में उपयोग हो रहे नंबरों का

प्रतिबिंब ऐप को लॉन्च करने वाले उस वक्त सीआईडी डीजी ने मीडिया को जानकारी देते हुए बताया था कि सभी राज्यों की पुलिस को जिन जिन नंबरों के खिलाफ शिकायत मिलती है. उन सभी की जानकारी आईफॉरसी को दी जा जाती है. झारखंड पुलिस इन नंबर को आईफॉरसी से लेकर एक डेटा बेस तैयार करती है. इसके बाद जिन नंबरों का इस्तेमाल झारखंड में हो रहा है उन नंबरों को इकठ्ठा कर संबंधित जिलों के एसपी और सर्विस प्रोवाइडर को दिया जाता है, ताकी इन नंबरों का उपयोग फिर से न हो सकें और समय रहते उन अपराधियों पर लगाम लगाया जा सके.

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