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झारखंड में बेटियों की स्थिति चुनौतीपूर्ण, 1000 बेटों पर 899 बेटियां लेती हैं जन्म

राज्य की किशोरियों की बड़ी आबादी एनीमिया से पीड़ित हैं. सरकारी प्रयास के बावजूद इनकी स्थिति में सुधार नहीं हो रहा है. एनएफएचएस-5 के आंकड़े बताते है कि 15 से 19 वर्ष की 65.08 फीसदी किशेारी एनीमिया से ग्रसित हैं.

रांची, राजीव पांडेय : बेटियों को बचाने के लिए भले ही तरह-तरह के स्लोगन और निबंध लिखे जाते हों, लेकिन झारखंड में बेटियों की स्थिति चुनौतीपूर्ण है. झारखंड में प्रमुख रूप से दो चुनौतियां हैं. एक तो बेटों की तुलना में कम लिंगानुपात और दूसरी एनीमिया की. किशोरियों की बड़ी आबादी एनिमिया से पीड़ित है. एनएफएचएस-5 की रिपोर्ट के अनुसार, झारखंड में वर्ष 2020-21 में 1000 बेटों पर 899 बेटियाें का जन्म हुआ,जो एनएफएचएस-4 की तुलना में खराब है. यानी वर्ष 2015-16 में 1000 बेटों पर 919 बेटियां का जन्म हुआ था. चिंता की बात यह है कि शहरों में ज्यादा शिक्षित लोग हाेने के बावजूद बेटियों के लिंगानुपात की स्थिति नहीं सुधरी है. शहरों में बेटियों के लिंगानुपात का आंकड़ा ज्यादा खराब है. एनएफएचएस-5 की रिपोर्ट में शहरी क्षेत्र में 1000 बेटों पर मात्र 781 बेटियों ने जन्म लिया. वहीं, ग्रामीण इलाकों में यह आंकड़ा 926 है. इसके अलावा राज्य में 15 वर्ष से नीचे की आबादी भी सुधरी नहीं है. वर्ष 2015-16 में इनकी आबादी 32.09% थी,जो घटकर 31.03% हो गयी है.

दूसरी तरफ राज्य की किशोरियों की बड़ी आबादी एनीमिया से पीड़ित हैं. सरकारी प्रयास के बावजूद इनकी स्थिति में सुधार नहीं हो रहा है. एनएफएचएस-5 के आंकड़े बताते है कि 15 से 19 वर्ष की 65.08 फीसदी किशेारी एनीमिया से ग्रसित हैं. जबकि एनएफएचएस-4 में यह आंकड़ा 65 फीसदी ही था. ग्रामीण इलाकों में 66.05 फीसदी किशोरी एनीमिया से पीड़ित पायी गयी हैं.

किशोरावस्था में टीकाकरण हो जाये तो सर्वाइकल कैंसर से होगा बचाव

महिलाओं में सर्वाइकल कैंसर की बीमारी तेजी से हो रही है. बेटियों को किशोरावस्था में ही इसका टीका लगा दिया जाये तो इस गंभीर बीमारी से बचाया जा सकता है. महिला रोग विशेषज्ञ डॉ पुष्पा पांडेय ने बताया कि सर्वाइकल कैंसर का टीका नौ से 14 साल की उम्र में लगाया जाता है, जिसका खर्च मात्र दो हजार रुपये ही आता है.

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