रांची के दिउड़ी मंदिर में विराजमान हैं सोलहभुजी मां दुर्गा, जानें इसके निर्माण के पीछे का इतिहास
कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 10वीं से 12वीं शताब्दी के बीच हुआ था. मुख्य मंदिर की दीवार और खंभे बलुआ पत्थर से बने हैं. पुराने मंदिर के ऊपर एक नयी संरचना का निर्माण किया गया है
शुभम हल्दार, तमाड़ :
तमाड़ में रांची-टाटा राजमार्ग (एनएच-33) के किनारे स्थित ‘दिउड़ी माता’ के मंदिर में भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. इस वजह से यहां न सिर्फ रांची व आसपास, बल्कि पूरे झारखंड और देश के विभिन्न हिस्सों से श्रद्धालु पूजा-अर्चना के लिए पहुंचते हैं. नवरात्र और अन्य विशेष अवसरों पर यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है. अमूमन मंदिरों में मां दुर्गा की आठ या 10 भुजाओं वाली प्रतिमाएं ही होती हैं. जबकि, यहां शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा की 16 भुजाओं वाली प्रतिमा स्थापित है. साढ़े तीन फीट ऊंची यह प्रतिमा ओडिशा की मूर्ति कला पर आधारित है. स्थानीय लोग मां को ‘सोलहभुजी देवी’ के नाम से भी पुकारते हैं. दिउड़ी माता के नाम से स्थानीय गांव को भी दिउड़ी के नाम से जाना जाता है. ‘दिउड़ी माता’ को तमाड़ राजपरिवार की कुलदेवी के रूप में पूजा जाता है. मंदिर और यहां स्थापित मां दुर्गा की प्रतिमा का इतिहास करीब 700 साल पुराना है.
कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 10वीं से 12वीं शताब्दी के बीच हुआ था. मुख्य मंदिर की दीवार और खंभे बलुआ पत्थर से बने हैं. पुराने मंदिर के ऊपर एक नयी संरचना का निर्माण किया गया है, जिसमें कुछ गुंबद शामिल हैं. जिन पर देवी-देवताओं की रंगीन छवियां उकेरी गयी हैं.
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मनोकामना पूरी होने पर भक्त लगाते हैं खिचड़ी या खीर का भोग
दिउड़ी माता के मंदिर के पट रोजाना सुबह 5:00 बजे खुलते हैं और रात 8:00 बजे बंद हो जाते हैं. मनोकामना पूर्ण होने पर भक्त यहां खीर या खिचड़ी का भोग लगाते हैं. रोजाना दोपहर 12:00 बजे माता को भोग चढ़ाया जाता है. उसके बाद पुजारियों द्वारा महाआरती की जाती है. मंदिर में प्रतिदिन सुबह 5:00 बजे, दोपहर 12:00 बजे और शाम 6:00 बजे आरती की जाती है. मंदिर में पंडा, पाहन, ब्राह्मण पुजारियों के साथ अनुष्ठान करते हैं.
रांची से दूरी 70 किमी, सड़क से ही नजर आने लगता है मंदिर
दिउड़ी माता की महिमा के कारण आज इसका नाम हर किसी की जुबान पर रहता है. भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धौनी भी समय-समय पर यहां पूजा-अर्चना के लिए आते रहते हैं. रांची-टाटा मार्ग से गुजरते समय दिउड़ी माता का मंदिर दूर से ही नजर आने लगता है. रांची से इस मंदिर की दूरी लगभग 70 किमी है. यहां आने-जाने के लिए बसें और कैब उपलब्ध हैं.
मंदिर को लेकर दो तरह की लोक कथाएं प्रचलित
पहली लोक कथा :
कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण होते किसी ने नहीं देखा. मंदिर के पुजारी की मानें तो एक रात एक भक्त को सपना आया. सुबह उठकर उसने जंगलों में मंदिर की खोज शुरू कर दी. काफी मेहनत के बाद उसे घने जंगल के बीच एक मंदिर नजर आया. वह देखकर दंग रह गया. इसके बाद उसने ग्रामीणों को इस मंदिर की जानकारी दी.
दूसरी लोक कथा :
कहा जाता है कि झारखंड के तमाड़ में एक राजा हुआ करते थे. नाम था ‘केरा’. वह युद्ध में अपना राज्य हार गये थे. एक दिन मां दुर्गा राजा के स्वप्न में आयीं और आदेश दिया : मेरा मंदिर बनवाओ. राजा ने अपने सेवकों को मंदिर निर्माण कराने का आदेश दिया. मंदिर का निर्माण कराने के बाद राजा को दोबारा उनका राज्य मिल गया.