झारखंड का राजकोषीय घाटा बढ़ा, 2 साल में घटी केंद्रीय मदद, जानें किन क्षेत्रों में कितना हुआ विकास
झारखंड आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट में ये बात सामने आयी है कि कोरोना के दौरान राज्य का विकास दर घट गया है. लेकिन चालू वित्तीय वर्ष में राज्य की विकास दर 8.8% रहने का अनुमान है. साथ ही साथ राजकोषीय घाटा भी बढ़ा है
रांची: कोविड-19 के दौरान राज्य की विकास दर में गिरावट दर्ज की गयी थी. यह खुलासा वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए झारखंड की आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट में किया गया है. इसमें बताया गया है कि चालू वित्तीय वर्ष (2021-22) में राज्य की विकास दर 8.8% रहने का अनुमान है. हालांकि चालू वित्तीय वर्ष के बजट के समय राज्य की विकास दर 13.6% रहने का अनुमान किया गया था.
राज्य के बैंकों में जमा राशि बजट आकार से कई गुना ज्यादा है और राजकोषीय घाटा बढ़ा. राज्य में बेरोजगारी दर गिर कर 4.2% तक पहुंच गयी है. 2019-21 तक की अवधि में राज्य में बिजली सरप्लस रही. राज्य गठन के बाद बजट का आकार 12 गुना बढ़ा. पिछले दो वर्षों में केंद्रीय सहायता में कमी दर्ज की गयी.
राज्य में ग्रामीण विकास, शहरी विकास सहित अन्य क्षेत्रों में बेहतर काम हुआ है. विधानसभा के बजट सत्र में वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव ने आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट पेश की. रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य गठन के वक्त आधी आबादी ही साक्षर थी. 20 वर्षों में साक्षरता में 36% की वृद्धि हुई है. 2019-20 में साक्षरता दर बढ़ कर 72.8% हो गयी है.
जीएसडीपी में 8.8% की वृद्धि होने का अनुमान :
रिपोर्ट में राज्य की विकास दर का आकलन करते हुए यह कहा गया है कि चालू वित्तीय वर्ष में राज्य के सकल घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) में 8.8% की वृद्धि होने का अनुमान है.
राज्य गठन के बाद से वित्तीय वर्ष 2004-05 तक जीएसडीपी में औसतन आठ प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई. 2004-5 से 2011-12 के बीच 6.6% की दर से वृद्धि हुई, इसके बाद 2018-19 तक इसमें 6.2% की दर से वृद्धि दर्ज की गयी. कोविड-19 की वजह से 2019-20 और 2020-21 में वृद्धि दर गिर कर चार प्रतिशत तक पहुंच गयी. कोविड महामारी के दौरान जीएसडीपी के प्राथमिक क्षेत्रों जैसे कृषि,वानिकी,मछली पालन आदि में 26 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गयी. हालांकि द्वितीयक क्षेत्र में में सात प्रतिशत और तृतीयक क्षेत्र में 18 प्रतिशत की कमी दर्ज की गयी. इसका कुप्रभाव राज्य की आर्थिक स्थिति पर पड़ा.
राज्य गठन के बाद बजट का आकार 12 गुना बढ़ा :
सर्वेक्षण रिपोर्ट में राज्य की आर्थिक स्थिति की चर्चा करते हुए कहा गया है कि राज्य गठन के बाद बजट का आकार 12 गुना बढ़ा है. राज्य गठन के पहले वित्तीय वर्ष में बजट का आकार 6000 करोड़ रुपये था. 2021-22 में यह बढ़ कर 91277 करोड़ रुपये हो गया है. यानी राज्य के बजट आकार में औसतन 14.1 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई है. 2019-20 में आर्थिक मंदी और उसके बाद कोविड की वजह से राज्य के राजस्व में कमी हुई.
इस अवधि में केंद्रीय करों में राज्य की हिस्सेदारी में 13.9 प्रतिशत तक की गिरावट दर्ज की गयी. हालांकि राज्य में कल्याणकारी योजनाएं निर्वाध रूप से चलती रहीं. वित्तीय वर्ष 2013-14 से 2020-21 तक की अवधि में स्थापना खर्च के मुकाबले विकास योजनाओं पर ज्यादा खर्च हुआ है.
इस अवधि में स्थापना खर्च औसतन 9.8 प्रतिशत की दर से और विकास योजनाओं का खर्च औसतन 18.5 प्रतिशत की दर से बढ़ा. आमदनी के मुकाबले खर्च में हो रही वृद्धि से राजकोषीय घाटा लगाता बढ़ता जा रहा है. 2013-14 में राजकोषीय घाटा 2306 करोड़ था. 2019-20 में यह 8034 करोड़ और 2020-21 में बढ़ कर 14910.5 करोड़ रुपये हो गया.
राष्ट्रीय औसत के मुकाबले राज्य मे सीडी रेशियो कम :
रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य के विकास में बैंकों को महत्वपूर्ण माना जाता है. जून 2021 तक राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में कुल 3193 बैंक शाखाएं कार्यरत थीं. हालांकि बैंकों की अधिकांश शाखाएं शहरीकृत क्षेत्रों में केंद्रित हैं. रांची, पूर्वी सिंहभूम, धनबाद और बोकारो में बैंकों की शाखाएं ज्यादा हैं.
लातेहार और लोहरदगा में बैंकों की शाखाएं कम हैं. वित्तीय वर्ष 2014-15 के अंत में बैंकों में कुल जमा राशि 1,39,956 करोड़ रुपये थी. 2020-21 के अंत तक जमा राशि 2,58,930 करोड़ रुपये हो गयी. सिंतबर 2021 तक यह 2,67,664.40 करोड़ रुपये थी. इसके मुकाबले सितंबर 2021 तक बैंकों द्वारा दी गयी कर्ज की रकम 83,473.78 करोड़ रुपये थी. यानी कर्ज के रूप में दी गयी राशि के मुकाबले दोगुनी से ज्यादा राशि बैंकों में जमा है. राष्ट्रीय औसत के मुकाबले राज्य मे सीडी रेशियो काफी कम है.
राज्य में 42.16 प्रतिशत गरीबी
रिपोर्ट में गरीबी की स्थिति की चर्चा करते हुए कहा गया है कि राज्य में 42.16 प्रतिशत गरीबी है. शहरी क्षेत्र में यह 24.8 प्रतिशत है. शहरी क्षेत्र में गरीबों को रोजगार देने के लिए मुख्यमंत्री शहरी रोजगार योजना चलायी जा रही है. स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए 88 अटल क्लिनिक बनाये गये थे.
इसमें से 80 चल रहे हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में मनरेगा के सहारे रोजगार उपलब्ध कराये जा रहे हैं. वित्तीय वर्ष 2002-21 के दौरान मनरेगा में मजदूरी मद में 2268.35 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया है. आर्थिक मंदी और कोविड-19 के दौरान राज्य में बेरोजगारी दर 8.7 प्रतिशत थी. सरकार द्वारा चलायी गयी कई योजनाओं की वजह से यह घट कर 4.2 प्रतिशत पर पहुंच गया है.
बिजली उत्पादन मे 37.26 प्रतिशत की वृद्धि हुई :
राज्य में बिजली उत्पादन के आंकड़ों से इसकी जानकारी मिली है कि 2019-20 और 2020-21 के बीच बिजली उत्पादन में 37.26 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. 2019-21 के दौरान राज्य में बिजली सरप्लस रही. 2020-21 में घरेलू बिजली की खपत 5886.49 एमयू और औद्योगिक खपत 2730 एमयू थी.
स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी काफी सुधार हुआ है :
स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी सरकार के प्रयास से काफी सुधार हुआ है. पिछले पांच वर्षों के दौरान कम वजनवाले,बौने और कमजोर बच्चों के अनुपात में कमी हुई है. संस्थागत प्रसव बढ़ा है.
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे चार और पांच के बीच तुलना करने पर यह पाया गया है कि पूर्ण टीकाकरण(9-11 साल के बच्चों) के मामले में गोड्डा और लातेहार जिलों ने बेहतर प्रदर्शन किया है. हालांकि साहिबगंज में सबसे कम 71 प्रतिशत ही टीकाकरण हुआ है. रिपोर्ट में महिला बाल विकास और एससी,एसटी व अल्पसंख्यक कल्याण की दिशा में किये गये कार्यों की वजह ने इसकी स्थिति में सुधार होने का उल्लेख किया गया है.
विकास दर
8.8% रहने का अनुमान है चालू वित्तीय वर्ष 2021-22 में
बेरोजगारी दर
4.2% तक पहुंची झारखंड में
साक्षरता
36% की वृद्धि हुई है 20 वर्षों में
बजट आकार
6000 करोड़ रुपये था राज्य गठन के पहले
91277 करोड़
रुपये हो गया 2021-22 में बढ़ कर
14.1% की दर से औसतन हुई वृद्धि
आनेवाला समय राज्य के लिए बेहतर व्यवस्था का संकेत : हेमंत
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने आर्थिक सर्वेक्षण पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि राज्य के लिए आने वाला समय बेहतर व्यवस्था की ओर संकेत कर रहा है. हमने पहले उद्योग नीति, खेल नीति, पर्यटन नीति अथवा अन्य नीति को बनाया है. कई लोगों ने सराहा है. इससे आने वाले समय में राज्य को बेहतर व्यवस्था मिलेगी.
Posted By: Sameer Oraon