Jharkhand Election: जेपी ने दिया था झारखंड पार्टी व सोशलिस्ट पार्टी के तालमेल का प्रस्ताव, नहीं माने जायपाल सिंह

Jharkhand Election: जयप्रकाश नारायण ने जयपाल सिंह की अगुवाई वाली पार्टी को प्रस्ताव दिया था कि चुनाव में वह सोशलिस्ट पार्टी का साथ दे और मिल कर चुनाव लड़े. लेकिन यह बात नहीं बन सकी.

By Anuj Kumar Sinha | November 2, 2024 9:30 AM
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रांची : जयप्रकाश नारायण (जेपी) ने झारखंड अलग राज्य का समर्थन कई मंचों से किया था. वे छोटानागपुर-संथालपरगना में झारखंड पार्टी की ताकत को भी समझते थे. इसलिए 1951-52 में जब पहली बार बिहार विधानसभा के लिए चुनाव हुआ था, उसके कई माह पहले ही जेपी ने जयपाल सिंह की अगुवाई वाली झारखंड पार्टी को प्रस्ताव दिया था कि चुनाव में वह सोशलिस्ट पार्टी का साथ दे और मिल कर चुनाव लड़े. ऐसा कर कांग्रेस को बिहार में रोका जा सकता है. हालांकि जेपी का यह प्रयास सफल नहीं हो सका और झारखंड पार्टी ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया था.

सोशलिस्ट पार्टी में बहुत ज्यादा सक्रिय थे जेपी

उन दिनों जेपी सोशलिस्ट पार्टी में बहुत ज्यादा सक्रिय थे. रांची में जून 1951 में सोशलिस्ट पार्टी की कार्यकारिणी की बैठक हुई थी. उसी दौरान 26 जून, 1951 को रांची के अब्दुल बारी पार्क मैदान में सोशलिस्ट पार्टी की आम सभा हुई थी जिसमें जेपी ने कहा था कि अगर बिहार में झारखंड पार्टी का समर्थन सोशलिस्ट पार्टी काे मिल जाये तो कांग्रेस को सत्ता में आने से रोका जा सकता है. उसी समय जेपी ने अलग राज्य का भी समर्थन किया था. बाद में वे झारखंड पार्टी के नेता जुएल लकड़ा से इसी प्रस्ताव पर बात करने उनके घर भी गये थे लेकिन बात नहीं बनी थी. इसके बाद 1951-52 का चुनाव दोनों ने अलग-अलग लड़ा. उन दिनों दक्षिण बिहार में झारखंड पार्टी और जयपाल सिंह का बोलबाला था, इसलिए झारखंड पार्टी ने अलग लड़ने का फैसला किया था. झारखंड पार्टी ने बिहार की 53 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 32 में जीत हासिल कर विधानसभा में मुख्य विपक्षी पार्टी बनी थी. जिन सीटों पर उसने चुनाव लड़ा था, वहां औसतन 38.57 प्रतिशत वोट लाया था. जेपी की सोशलिस्ट पार्टी पूरे बिहार में 266 सीटों पर लड़ी थी और 23 सीट जीती थी. वोट प्रतिशत 22.18 था. अगर झारखंड पार्टी और सोशलिस्ट पार्टी मिल कर लड़ते, तो दोनों की सीटें काफी बढ़ सकती थीं. हालांकि समझौता नहीं होने के बावजूद कई ऐसी सीटें थीं जहां दोनों में से एक ही पार्टी ने चुनाव लड़ा था.

दक्षिण बिहार में आदिवासियों की आरक्षित सीट पर झारखंड पार्टी का था शानदार प्रदर्शन

दक्षिण बिहार में आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों पर झारखंड पार्टी ने बहुत ही अच्छा प्रदर्शन किया था. इसके विपरीत सोशलिस्ट पार्टी के प्रत्याशियों ने दक्षिण बिहार में कुछ ही सीटों पर अच्छा प्रदर्शन किया था. छोटानागपुर-संथालपरगना में सोशलिस्ट पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली थी. जिन सीटों पर सोशलिस्ट पार्टी ने अच्छा किया था, उनमें गोड्डा सीट भी एक थी. वहां सोशलिस्ट पार्टी के रत्नेवर झा को 8268 और झारखंड पार्टी के किरकू जुगरा को 8158 वोट मिले थे जबकि सीट जीतनेवाले कांग्रेस के बुद्धिनाथ कैरव झा को 10849 वोट मिले थे.

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दक्षिण बिहार की इन सीटों पर सोशलिस्ट पार्टी ने उतारा था उम्मीदवार

झारखंड पार्टी से तालमेल नहीं होने के बाद दक्षिण बिहार की जिन सीटों पर सोशलिस्ट पार्टी ने अपने प्रत्याशी उतारे थे, वे थे- शीतल प्रसाद सिंह (महगामा), रत्नेश्वर झा (गोड्डा), चंद्रभूषण प्रसाद (पोड़ैयाहाट-जरमुंडी), कालीदास गुप्त (पाकुड़), मधुसूदन राय (राजमहल), भगवान राजहंस (देवघर), कामदेव प्रसाद सिंह (मधुपुर-सारठ), यशराज सिंह (कोडरमा), नारायण प्रसाद (धनवार), राघवन गोपाल, चंद्रिका माझी (गिरिडीह-डुमरी), तिवारी चंद्रेश्वर (बगोदर), बिंदेश्वरी सिंह (पेटरवार), चुनचुन प्रसाद सिंह( रामगढ़-हजारीबाग), विश्वनाथ मोदी (बरही), सूर्य नारायण सिंह (चौपारण), गंगा विशुन सिंह (चतरा), पोली उरांव (मांडर), नागेश्वर प्रसाद (रांची), हृदयनाथ सिंह (सोनाहातू), शंकर भगत (लोहरदगा), भरत राम और महावीर प्रसाद (हुसैनाबाद-गढ़वा), हजारीलाल (नगर उंटारी), उमेश्वरी चरण (डलटेनगंज), मालदेव राम, राजेश्वर प्रसाद अग्रवाल (लेसलीगंज), शिव कुमार शर्मा (तोपचांची), गोपाल चंद्र बनिक (कतरास), महेश देसाई (धनबाद), ब्रजनंदन शर्मा (बलियापुर), मंगल सिंह मुंडारी (मनोहरपुर) राम प्रसाद सोरेन (चक्रधरपुर), श्रीसिंह मुरमू (खरसावां), मंगल प्रसाद गुप्त (सरायकेला), अहमुद्दीन (जमशेदपुर), माखन लाल मुखर्जी (जुगसलाई-पोटका). इतने प्रत्याशियों को समाजवादी पार्टी के टिकट पर उतारने का एक कारण था कि दक्षिण बिहार में समाजवादियों का अच्छा खासा प्रभाव था लेकिन यह चुनाव परिणाम में नहीं दिखा. तालमेल नहीं करने का दोनों दलों को नुकसान हुआ था. लेस्लीगंज सीट पर झारखंड पार्टी के नागेश्वर सिंह चुनाव जीत सकते थे. डाल्टेनगंज सीट पर अगर झारखंड पार्टी के सुभाष सिंह और सोशलिस्ट पार्टी के उमेश्वरी चरण में कोई एक लड़ते तो वे कांग्रेस के अमिय कुमार घोष (विजेता) को कड़ी टक्कर दे सकते थे.

जेपी ने अलग झारखंड राज्य का किया था समर्थन

1951-52 मेें जेपी का प्रस्ताव भले ही झारखंड पार्टी ने ठुकरा दिया था लेकिन जेपी ने अलग राज्य पर अपना स्टैंड नहीं बदला था. जब 1977 में जनता पार्टी सत्ता में आयी तब भी जेपी ने बड़े राज्यों के विभाजन की बात कहते हुए अलग झारखंड राज्य का समर्थन किया था.

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