Jharkhand News: गड़बड़ी होने पर घटों बिजली के गायब रहने की ये है वजह, JBVNL के पास इन चीजों की है कमी
जेबीवीएनएल के पास भूमिगत केबल को ठीक करने के लिए न तो आधुनिक मशीन है और न ही पावर. जिसका नतीजा ये हो रहा है कि बिजली खराब होने पर कई कई घंटे बिजली गायब रह रही है. अब जेबीवीएनएल को आउटसोर्स कर्मचारियों पर निर्भर रहना पड़ता है
Jharkhand News रांची: राजधानी में 500 करोड़ की लागत से बिछाये गये भूमिगत केबल को दुरुस्त करने के लिए जेबीवीएनएल के पास तकनीशियन और आधुनिक मशीनें नहीं हैं. ऐसे में तकनीकी गड़बड़ी के बाद कई घंटे बिजली गायब रह रही है. बिजली खराब होने, केबल कटने, जलने या पंक्चर होने के बाद बिजली आपूर्ति शुरू करने में अभियंताओं को आउटसोर्स कर्मचारियों के भरोसे रहना पड़ रहा है.
सेंट्रल डिवीजन, पुंदाग-कटहल मोड़, पहाड़ी-मधुकम और कोकर फीडर में पिछले तीन महीने में केबल फॉल्ट के कई मामले दर्ज हुए हैं. हाल ही में नामकुम के महिलौंग इलाके में राज्य वन प्रशिक्षण संस्थान में हाइ वोल्टेज लाइन ब्रेकडाउन कर गयी थी. अभियंताओं ने काफी देर तक मशक्कत की, लेकिन तकनीशियन नहीं होने से लाइन ठीक नहीं हो सकी. राजधानी में 470 किमी का बिजली का अंडरग्राउंड एरियल बंच केबल (कवर्ड तारों) का जाल बिछा है. वहीं, नयी योजना में तकरीबन 1000 किमी तक 11 हजार वोल्ट के तारों को भी भूमिगत करने पर काम चल रहा है.
तूफान, मूसलाधार बारिश से भूमिगत लाइनें प्रभावित हो रही हैं. ऐसी लाइनों में कोई खराबी होती है तो जमीन के नीचे बिछे केबल में खराबी का पता लगाना मुश्किल हो रहा है. आउटसोर्स के कारण कर्मियों की जिम्मेदारियां तय नहीं हो रही.
भानु कुमार
झारखंड विद्युत सप्लाई तकनीकी श्रमिक संघ
बिना स्कैनर मशीन नहीं चलता है गलती का पता
अंडरग्राउंड केबल में कई तरह के दोष होते हैं. बिना स्कैनर मशीन से इस गलती के स्रोत का पता लगाना मुश्किल है. डिस्प्ले व साउंड वेबवाली आधुनिक मशीन से मरम्मत करनेवाले को ठीक-ठीक पता होता है कि जमीन के नीचे केबल के किस हिस्से में और कहां खराबी आयी है. दोष के स्रोत का पता लगाने के लिए केवल उस क्षेत्र को खोदा जाता है और पूरे इलाके का शटडाउन नहीं लेने की जरूरत नहीं पड़ती.
निजी कंपनियों से बुलाते हैं तकनीशियन
शहर में बिजली निगम के पास भूमिगत केबल को सही करने के लिए तकनीशियन नहीं है. जब भी केबल में खराबी आती है, तो बिजली निगम को पॉलीकैब या फिर मेसर्स केइआइ से तकनीशियनों को बुलाना पड़ता है. ऐसे में आपूर्ति बहाल होने में सामान्य से कहीं ज्यादा समय लग रहा है. इतना ही नहीं कई बार रात के वक्त बिजली ठीक करने के लिए अधिकारियों को घंटों इंतजार करना पड़ता है.
ठेका के सहारे राजधानी की बिजली व्यवस्था
पहले ऊर्जा विभाग आइटीआइ पास ट्रेंड तकनीकी कर्मचारी को खुद की निगरानी में रखता था. नयी व्यवस्था के तहत डेली वेजवाले कर्मचारियों को हटाकर इसे आउटसोर्स कर दिया गया. पहले सरकार सीधे पैसा देती थी और अब ठेका कंपनियों को कर्मियों को उपलब्ध कराने के लिए आठ प्रतिशत का कमीशन दिया जाता है.
कुशल कर्मियों की हर स्तर पर किल्लत
रांची सर्किल में करीब 650 अधिकारी के साथ करीब एक हजार निचले स्तर पर कर्मचारी काम कर रहे हैं. हालांकि, अभी भी राज्य में टेक्निकल और नॉन टेक्निकल के 17000 से ज्यादा पद रिक्त हैं. 2016 में निगम में 493 स्विच बोर्ड ऑपरेटर और लाइनमैन की नियुक्ति हुई थी. फिलहाल निचले क्रम में महज 33 प्रतिशत मैन पावर के सहारे शहर की बिजली व्यवस्था है. हालांकि, हाल ही में कुछ अहम पदों पर नियुक्तियों के प्रयास चल रहे हैं.
Posted By: Sameer Oraon