झारखंड में शराब के व्यापार से छत्तीसगढ़ लॉबी बाहर की जायेगी. शराब का थोक व्यापार अब राज्य सरकार के उपक्रम झारखंड स्टेट बिवरेज कॉरपोरेशन लिमिटेड (जेएसबीसीएल) के माध्यम से किया जायेगा. उत्पाद विभाग ने जेएसबीसीएल को शराब के थोक कारोबार में उतारने के लिए टेंडर निकाल दिया है. राजस्व लक्ष्य हासिल करने में हो रही परेशानी और बाजार में समुचित मात्रा व ब्रांड की शराब की अनुपलब्धता के कारण जेएसबीसीएल के जरिये राज्य सरकार ने शराब का थोक व्यापार भी अपने हाथ में लेने की योजना बनायी है.
चालू वित्तीय वर्ष में 31 दिसंबर तक शराब से 1825 करोड़ रुपये राजस्व वसूली का लक्ष्य निर्धारित है. इसके विरुद्ध अब तक करीब 1250 करोड़ रुपये ही राजस्व अर्जित किया गया है. यानी अब तक 575 करोड़ कम वसूली हुई है. 31 मार्च तक 2500 करोड़ रुपये राजस्व वसूली का लक्ष्य निर्धारित किया गया है.
अभी राज्य में शराब का होलसेल कारोबार छत्तीसगढ़ की दो निजी कंपनियों के हाथ में है. इन कंपनियों के नाम ओम साईं बिवरेजेज प्रालि और दिशिता वेंचर्स प्रालि है. आश्चर्यजनक रूप से यह दोनों कंपनियां बिना किसी प्रॉफिट मार्जिन के ही शराब का होलसेल कारोबार कर रही हैं.
यानी, दोनों कंपनियां शराब उत्पादक से खरीदी गयी कीमत पर ही खुदरा बिक्री के लिए जेएसबीसीएल को शराब उपलब्ध करा रही है. दोनों ही कंपनियां सभी ब्रांड की समुचित मात्रा में शराब खुदरा बिक्री के लिए उपलब्ध कराने में सक्षम साबित नहीं हो रही हैं. राजस्व लक्ष्य से पीछे होने की बड़ी वजह छत्तीसगढ़ की उक्त दोनों होलसेलिंग कंपनियों की अक्षमता मानी जा रही है. इस वजह से पूर्व की तरह फिर से जेएसबीसीएल को शराब की होलसेलिंग का जिम्मा सौंपा जा रहा है. मालूम हो कि मई 2022 के पूर्व जेएसबीसीएल ही राज्य में शराब का थोक कारोबार करती थी.
शराब के होलसेल का काम कर रही कंपनी सरकार की शर्तों को पूरा नहीं कर रही है. इस कारण कार्रवाई भी की जा रही है. कंपनियों द्वारा शर्त पूरा नहीं करने के कारण ही जेएसबीसीएल के माध्यम से शराब की आपूर्ति का निर्णय लिया गया है.
जगरनाथ महतो,
मंत्री उत्पाद एवं मद्य निषेध
राज्य में शराब के कारोबार की नियमावली के मामले में राजस्व पर्षद राज्य सरकार के सलाहकार की योग्यता पर सवाल उठा चुका है. पर्षद ने कहा है कि नयी उत्पाद नीति बनाने के लिए छत्तीसगढ़ स्टेट मार्केटिंग कॉरपोरेशन लिमिटेड (सीएसएमसीएल) को सलाहकार नियुक्त किया था.
सलाहकार और उत्पाद विभाग के आंतरिक विचार-विमर्श के बाद एक मई 2022 से राज्य में नयी नीति लागू की गयी. राजस्व पर्षद ने राज्य सरकार की उत्पाद नीति की कई बिंदुओं पर असहमति जताते हुए पुनर्विचार करने का सुझाव दिया था. पर्षद ने नयी उत्पाद नीति से शराब से मिलने वाले राजस्व में घाटे की आशंका भी जतायी थी. हालांकि, राज्य सरकार ने पर्षद के सुझाव को नजरअंदाज करते हुए उत्पाद नीति लागू की थी.
झारखंड में शराब का होलसेल करनेवाली कंपनी को मुनाफा पहुंचाने वाले ब्रांड की ही शराब बिकती है. होलसेल कंपनियों को राज्य सरकार ने प्राफिट मार्जिन रखने की अनुमति नहीं दी है. ऐसे में कंपनियां शराब उत्पादकों के साथ तालमेल कर मुनाफा कमा रही हैं. कंपनियों को फायदा पहुंचानेवाली कंपनियों की शराब ही खुदरा दुकानों में बिक्री के लिए उपलब्ध करायी जाती है.
कंपनियां अपने मनपसंद ब्रांड की शराब की मार्केटिंग भी प्लेसमेंट एजेंसियों के माध्यम से सुनिश्चित कराती है. यही वजह है कि दुकानों में चुनिंदा ब्रांड की शराब और बीयर ही सुलभ होती है. बार के लिए भी दुकानों से ही शराब की उपलब्धता सुनिश्चित की जाती है. दुकानों में ब्रांड नहीं होने की वजह से बार में भी होलसेल कंपनियों को मुनाफा देनेवाले ब्रांड की ही शराब मिलती है.
राज्य में नयी उत्पाद नीति लागू करने के छह माह बाद ही उत्पाद विभाग देसी शराब की नियमावली में भी बदलाव कर रहा है. उत्पाद एक्ट में नियमावली लागू करने से पहले ड्राफ्ट पॉलिसी को सार्वजनिक कर उस पर स्टेक होल्डर का मंतव्य मांगने का प्रावधान है, लेकिन उत्पाद विभाग ने ड्राफ्ट पॉलिसी को बिना स्टेक होल्डर्स की राय लिये ही लागू कर दिया था.
उत्पाद विभाग द्वारा नीति निर्धारण के लिए नियुक्त सलाहकार छत्तीसगढ़ स्टेट मार्केटिंग कॉरपोरेशन लिमिटेड ने नयी नियमावली से शराब की बिक्री में 19 गुना से अधिक की बिक्री होने का दावा किया था. साथ ही बताया था कि छत्तीसगढ़ में देसी शराब से कुल राजस्व का 40 प्रतिशत प्राप्त होता है, जबकि झारखंड में यह केवल 10 प्रतिशत है. सलाहकार ने नयी नियमावली से देसी शराब से मिलनेवाला राजस्व कुल राजस्व का 15 प्रतिशत होने का दावा किया था. जो कि पूरी तरह से फेल हो चुका है.