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‘चेक ईयरली, सी क्लियरली’ थीम पर झारखंड आई सोसाइटी का डायबिटिक रेटिनोपैथी स्क्रीनिंग अभियान

डायबीटिक रेटिनोपैथी की समस्या उन मरीजों में 77.8 फीसदी थी, जिन्हें 15 वर्ष से अधिक समय से मधुमेह है. गुर्दे की बीमारी से ग्रसित और सेरेब्रो वैस्कुलर एक्सीडेंट से प्रभावित डायबिटीज के मरीजों में डायबिटिक रेटिनोपैथी का असर ज्यादा था.

वर्ल्ड डायबिटीक वीक में ऑल इंडिया आई सोसाइटी की पहल पर ‘चेक ईयरली सी क्लियरली’ अभियान की शुरुआत झारखंड में भी की गई है. इसके तहत डायबिटिक आई स्क्रीनिंग की जा रही है. राजधानी रांची में नेत्र सोसाइटी और रिसर्च सोसाइटी फॉर द स्टडी ऑफ डायबिटीज इन इंडिया, रांची चैप्टर ने मिलकर गुरुवार (16 नवंबर) को डायबिटीज केयर सेंटर शीतल कुंज और कश्यप मेमोरियल आई हॉस्पिटल के सहयोग से रांची में डायबिटीज के मरीजों की आंखों की जांच के लिए कैंप लगाया गया. इसमें लोगों की आंख की मुफ्त में जांच की गई. झारखंड आई सोसाइटी की साइंटिफिक कमेटी की चेयरमैन डॉ भारती कश्यप ने बताया की झारखंड के सुदूरवर्ती इलाकों में 14 नवंबर से ही शिविर लगाए जा रहे हैं. यह अभियान 20 नवंबर तक चलेगा. उन्होंने कहा कि डायबिटीज की वजह से बड़ी संख्या में लोगों की आंखों की रोशनी चली जाती है. उन्होंने कहा कि दृष्टिहीनता के बड़े तीन कारण हैं- आंखों के बीच में मैक्युला में सूजन या विट्रियस हेमरेज या आंखों के पर्दे का अपनी जगह से खिसक जाना.

डायबिटिक रेटिनोपैथी का शुरू में नहीं दिखता लक्षण

डॉ भारती कश्यप ने कहा कि AIOS डायबीटिक रेटिनोपैथी स्क्रीनिंग अध्ययन 2019 का एक संदेश यह भी था कि डायबिटीज के शुरुआती दौर में 6/18 या उससे बेहतर रोशनी वाले 22 प्रतिशत मरीजों में डायबिटिक रेटिनोपैथी शुरू हो जाता है, लेकिन मरीज में इसका कोई लक्षण नहीं दिखता है. इसी वजह से मधुमेह वाले सभी लोगों को साल में एक बार रेटिना या व्यापक पूर्ण नेत्र जांच जरूर करवाना चाहिए. उन्होंने कहा कि डायबीटिक रेटिनोपैथी की समस्या उन मरीजों में 77.8 फीसदी थी, जिन्हें 15 वर्ष से अधिक समय से मधुमेह है. गुर्दे की बीमारी से ग्रसित और सेरेब्रो वैस्कुलर एक्सीडेंट से प्रभावित डायबिटीज के मरीजों में डायबिटिक रेटिनोपैथी का असर ज्यादा था.

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आंखों की इन समस्याओं का हो सकता है इलाज

उन्होंने बताया कि डायबिटीज से होने वाले मोतियाबिंद का ऑपरेशन करने के बाद मरीज के आंखों की रोशनी वापस आ जाती है. ग्लूकोमा को भी दवा से या सर्जरी से ठीक किया जा सकता है. लेकिन, डायबिटिक रेटिनोपैथी का इलाज समय पर नहीं हुआ, तो आंखों की रोशनी हमेशा के लिए जा सकती है. डायबिटिक रेटिनोपैथी में रोशनी जाने का मुख्य कारण आंखों के परदे के बीच के भाग, जिसे मैक्यूला कहते हैं, उसमें सूजन होना या विट्रियस हेमरेज होना या आंखों के पर्दे का अपने जगह से खिसक जाना होता है.

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  • भारत में ऑल इंडिया आई सोसाइटी की पहल पर 14 से 20 नवंबर तक डायबिटिक आई स्क्रीनिंग का हो रहा है आयोजन

  • विश्व के 37 मिलियन दृष्टिहीन लोगों में 4.8 फीसदी में दृष्टिहीनता का कारण डायबिटिक रेटिनोपैथी

  • डायबिटीज से पीड़ित 50 साल से अधिक उम्र का हर छठा आदमी डायबिटिक रेटिनोपैथी से गंवा रहा आंखों की रोशनी

  • देश में 101 मिलियन डायबिटीज के रोगी हैं, पांच वयस्क लोगों में एक व्यक्ति डायबिटीज से पीड़ित

डायबिटीज रेटिनोपैथी से ऐसे पा सकते हैं निजात

वहीं, डॉ विनय ढांढनिया ने कहा कि शुरुआती दौर में डायबिटीज रेटिनोपैथी को ब्लड शुगर, ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड को कंट्रोल करके रोका जा सकता है. उन्होंने कहा कि आंखों के पर्दे के बीच के भाग में सूजन होने से आंखों के अंदर एंटी-वेजएफ इंजेक्शन लगवाने पड़ते हैं. आंखों के अंदर खून की छोटी-छोटी कमजोर नलियों के उग जाने पर इंजेक्शन के साथ-साथ लेजर भी करवाना पड़ता है. उन्होंने कहा कि अगर आंखों के अंदर खून आ गया है या रेटिनल डिटैचमेंट हो गया है, तो विट्रीक्टोमी या रेटिना की सर्जरी कराने की जरूरत पड़ती है.

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