झारखंड वनोपज नियमावली 2020 : जंगल में जलावन लकड़ी लेने पर नहीं लगेगा शुल्क
झारखंड के जंगलों से जलावन लकड़ी लेने पर परिवहन शुल्क नहीं देना होगा
रांची : अब झारखंड के जंगलों से जलावन लकड़ी लेने पर परिवहन शुल्क नहीं देना होगा. इसके लिए झारखंड वनोपज (अभिवहन का विनियमन) नियमावली-2020 में संशोधन कर दिया गया है. राज्यपाल के हस्ताक्षर के बाद इसका गजट भी प्रकाशित हो गया है. एक अक्तूबर से यह नियमावली पूरे राज्य में लागू हो गयी.
पूर्व में जलावन लकड़ी लेने पर 25 रुपये प्रति घनमीटर के हिसाब से शुल्क देना पड़ता था. इसका कई सामाजिक और राजनीतिक संगठनों ने विरोध किया था. इसके बाद सरकार ने इसे वापस ले लिया है. अब जंगल के अंदर रहनेवाले लोग अगर जलावन लकड़ी का संग्रहण करेंगे, तो इस पर कोई शुल्क नहीं लिया जायेगा.
वन विभाग ने नयी संशोधित नियमावली में बांस पर लगनेवाले परिवहन शुल्क को वापस ले लिया है. बांस को विभाग ने वन उपज नहीं माना है. पूर्व में बनायी गयी नियमावली में बांस पर शुल्क लगाने का प्रावधान था.
खान विभाग के पोर्टल से दी जायेगी सुविधा : विभागीय सचिव के अनुसार, अभी खनन करनेवाली कंपनियां खान विभाग के पोर्टल के माध्यम से टैक्स या अन्य शुल्क देती हैं. इसी पोर्टल का उपयोग वन विभाग कर सकता है.
इसी में एक वन विभाग के परिवहन शुल्क का भी प्रावधान रहेगा. इससे खनन कंपनियों को परेशानी नहीं होगी. एक ही पोर्टल से सभी प्रकार के शुल्क का ऑनलाइन भुगतान कर सहमति पत्र प्राप्त कर सकेंगे.
खनन कंपनियों को देना होगा शुल्क
वन विभाग ने पहली बार अपने संसाधन का उपयोग करनेवाली एजेंसियों पर परिवहन शुल्क लगाने का प्रावधान किया है. खनन का काम सबसे अधिक वन क्षेत्र में ही होता है. इस कारण वन विभाग को इससे अच्छा-खासा राजस्व प्राप्त होने की उम्मीद है. सबसे अधिक शुल्क कोयला और आयरनओर निकालनेवाली कंपनियों को देना होगा.
कोयला कंपनियों को गैर वन भूमि में भी खनन करने पर शुल्क का प्रावधान किया गया है. विभागीय सचिव ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने कोयले को वन का ही बाई प्रोडक्ट माना है. तर्क है कि कोयले का निर्माण कहीं न कहीं वन से हुआ है.
इस कारण कोयला खनन करनेवाली कंपनियों को अधिक शुल्क देना होगा. झारखंड में सीसीएल, बीसीसीएल और इसीएल के साथ-साथ कुछ निजी कंपनियों पर खनन का काम करती है.
posted by : sameer oraon