Jharkhand Foundation Day: पर्यटकों को पसंद आता है बेतला नेशनल पार्क, तस्वीरों में करें खूबसूरती का दीदार
Jharkhand Foundation Day: 15 नवंबर को झारखंड अपना 22वां स्थापना दिवस मनाने जा रहा है. राज्य की प्रकृति की गोद में कई पर्यटन स्थल हैं, उन्हीं में से एक है पलामू टाइगर रिजर्व में बेतला नेशनल पार्क. ये पार्क पर्टयकों के लिए पसंदीदा जगह है. यहां ठहर कर लोग वन्य जीवों को नजदीक से देखने का आनंद लेते है.
पलामू टाइगर रिजर्व (Palamu Tiger Reserve) देश के उन नौ अभयारण्य में से पहला है, जिन्हे 1974 में आरक्षित वन होने का तमगा मिला था. 1026 वर्ग किलोमीटर में फैले इस अभयारण्य में ही पहली बार बाघों की गिनती की गयी थी. बाघ यहां के प्रमुख वन्य जीव है, कभी 40 से 45 बाघों के विचरण क्षेत्र में फिलहाल सात से आठ बाघ होने के अपुष्ट जानकारी मिलती है. पर्यटकों के लिए अब बाघ मिलना काफी मुश्किल है. पलामू टाइगर रिजर्व का बेतला नेशनल पार्क (Betla National Park) कभी बाघों का डेरा हुआ करता था जो अब नहीं है, अब बाघ पलामू टाइगर रिजर्व के घने जंगलों की और अपना आशियाना बना लिया है.
बाघ के बाद हाथी पलामू टाइगर रिजर्व का सबसे अधिक चर्चित जानवर है. पलामू में टस्कर (दांत वाला) और मकना ( बिना दांत के ) दोनों हाथी पाए जाते है. आमतौर पर हाथी सामाजिक प्राणी है और झुंड में ही रहते है. इन्हे अपने परिवार से काफी लगाव होता है. ये अपने झुंड के बच्चों को लेकर काफी सावधान रहते है और इनकी सुरक्षा के लिए ये किसी भी हद तक जा सकते है. झुंड में अगर बच्चा है तो पर्यटकों को उनसे दूरी बनाकर रखना चाहिए.
अकेला हाथी को काफी खतरनाक माना जाता है. ऐसा समझा जाता है की किसी मादा हाथी को पाने के लिए दो नर हाथी के बिच हुए टकराव में जिसे हार का सामना करता पड़ता है वो स्वाभिमान से झुंड छोड़ देता है. कभी अपने शरारत के कारण भी हाथी को अपने झुंड से अलग रहने का सजा दिया जाता है. ऐसा भी होता है की कभी हाथी अपने झुण्ड से बिछड़ कर अकेला हो जाता है, कारण चाहे जो भी हो अकेला हाथी ज्यादा आक्रमक होते है इसीलिए इससे बचके चलना चाहिए.
जंगल के चतुर और दावं -पेंच में माहिर शिकारी हायना ( लकड़बघ्घा) भी पलामू टाइगर रिजर्व में अपना क्षेत्र विशेष में दबदबा बनाये हुए है. रात और अहले सुबह इनका विचरण समय होने के कारण पर्यटकों से इनकी मुलाकात कम ही होता है. झुंड में रहने वाले इन प्राणियों को कभी कभार अकेले भी देखा जा सकता है. झुंड में रहकर शिकार को घेर कर मारना इनकी विशेषता है.
पलामू टाइगर रिजर्व में बाइसन बहुतायत में पाया जाता है, घास के मैदान के आसपास ये रहना पसंद करते है. बेतला नेशनल पार्क में इन्हे हमेशा देखा जा सकता है. ये अपने परिवार के साथ रहते है. एक परिवार में तीन से 10 तक सदस्य रहते है जिसका नेतृत्व बलशाली नर करता है. बच्चे युवा होने के बाद अपना अलग परिवार बना लेते है. ये इतने ताकतवर होते है की बाघ और हाथी भी इनसे टकराना नहीं चाहते. पिछले दिनों बेतला में एक बाघिन और बाइसन के बीच हुए टकराव में बाघिन की मौत हो गयी थी. आम तौर पर तो ये शांत रहते है लेकिन गुस्सा आ जाने पर ये आक्रमण भी कर सकते है. इन्हे कभी उसकाना नहीं चाहिए.
हिरण भी पलामू टाइगर रिजर्व के लगभग हर हिस्से में पाया जाता है. बेतला में इनकी काफी संख्या है और आसानी से देखे जा सकते है. ये भी झुण्ड में रहते है, जिसमे कई परिवार शामिल होता है, मादा के ऊपर वर्चस्व को लेकर कभी कभी अलग अलग परिवार के नर आपस में लड़ते भी है. सिंह वाले नर हिरण काफी खूबसूरत लगता है. हिरण की चंचलता इसे पर्यटकों के लिए खास बनाती है.
कभी पलामू टाइगर रिजर्व में सांभर की संख्या अच्छी खासी थी पर अब ये नगण्य हो गयी है. गारू में इनका एक प्रजनन केंद्र बनाया गया है जहां बाहर से सांभर लेकर उनके बच्चे होने पर जंगल में छोड़ा जा रहा है. गारू के जंगल में इन्हे देखा जा सकता है.
गांव के इर्द गिर्द मंडराने वाला यह धूर्त शिकारी सियार बेतला के जंगल में भी दिख जाता है. ये अलग ही दिखते है. प्रजनन के समय जोड़े में भी दिख जाते है. बच्चों की परवरिश की जिम्मेवारी मां पर ही रहता है. आम तौर पर छुप के रहने वाला ये जानवर घास मैदान या झाड़ियों के बिच दिख जाता है
बेतला की बात हो और बंदरों की जिक्र न हो तो बात अधूरी रहती है, बंदर तो शहर में भी देखने को मिल जाते है लेकिन बेतला के जंगलों में बंदरों की उछल कूद, शरारत, अठखेलियां उन्हें खास बनाती है. हिरणों की तरह अपने समाज में रहते है और झुंड में कई परिवार साथ होते है. पारिवारिक वर्चस्व को लेकर ये आपस में भीड़ भी जाते है. बच्चे अपने माँ रहते है. खेल-खेल परिवार के बड़े अपने बच्चो को लड़ाई के दांव भी सिखाते रहते है. बेतला में ये बहुतायत में पाए जाते है.
सांपों का जानी दुश्मन नेवला भी पलामू टाइगर रिजर्व में काफी संख्या में पाया जाता है. जहां सापों का विचरण है उसके आसपास ये भी मंडराते है. नेवला का नर प्रजनन काल में तो जोड़े के साथ दिखता है पर बाकि समय एकेला रहना ही अधिक पसंद करता है. अपनी फुर्तीले गतिविधि के कारण ये जल्दी नजर नहीं आते.
रिपोर्ट : सैकत चटर्जी, पलामू