Jharkhand Foundation Day: रांची के रंगकर्मी दीपक चौधरी की रंग यात्रा का आगाज ही प्रशिक्षण से हुआ. झारखंड की प्रख्यात नाट्य संस्था ‘युवा रंगमंच’ ने फरवरी 1995 में एक महीने की नाट्य कार्यशाला आयोजित की थी. अपने मित्र अवधेश के कहने पर दीपक चौधरी कार्यशाला में शामिल हुए. कार्यशाला में उन्हें नाट्य कला एवं अभिनय की पहली जानकारी अजय मलकानी से मिली. इसी नाट्य कार्यशाला में अजय मलकानी के साथ संजय लाल और सुनील राय ने भी उन्हें तराशा, निखारा.
चूंकि कार्यशाला प्रस्तुतिपरक थी, तो नाटक ‘होली’ में अभिनय करने का भी मौका मिला. कार्यशाला के बाद वह युवा रंगमंच में शामिल हो गये. इसके साथ ही दीपक चौधरी की कला यात्रा में गति आ गयी. उन्होंने ‘कोर्ट मार्शल’, ‘अंधेर नगरी चौपट राजा’, ‘उलगुलान का अंत नहीं’, ‘क्या छूट रहा है’, ‘प्रमोशन’, ‘सैयां भए कोतवाल’, ‘नाटक नहीं’, ‘10 दिन का अनशन’, ‘रियल लव स्टोरी’, ‘बहाने’, ‘साकार होता सपना’, ‘चरणदास चोर’ और ‘रक्त अभिषेक’ जैसे नाटकों में अभिनय किया.
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इसी बीच दीपक चौधरी रांची की एक और सुविख्यात नाट्य संस्था ‘वसुंधरा आर्ट्स’ से जुड़े. वहां भी कई अच्छे नाटकों में अभिनय किया. वर्ष 1999 के अंत में ‘राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय’ की गहन नाट्य कार्यशाला का आयोजन रांची में हुआ, तो उसमें चौधरी का भी चयन किया गया. कार्यशाला में एनएसडी के प्रशिक्षक के तौर पर आलोक चटर्जी, संजय उपाध्याय और सत्यव्रत रावत जैसे देश के प्रख्यात रंगकर्मियों से सीखने और काम करने का मौका मिला.
इस कार्यशाला के बाद लगातार दो वर्ष श्री मलकानी के निर्देशन में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय द्वारा दिल्ली में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय नाट्य महोत्सव ‘भारंगम’ में परफॉर्म करने का मौका मिला. इस कला यात्रा के दौरान उन्हें शहर के कई नाट्य निर्देशकों के साथ काम करने का मौका मिला, जिसमें अनिल ठाकुर, कमल बोस, सूरज खन्ना और संजय लाल शामिल हैं. इनसे भी अभिनय और अन्य कला के बारे में उन्हें बहुत कुछ सीखने को मिला.
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अभिनय और निर्देशन के साथ-साथ उन्होंने रंगमंच की अन्य विधाओं का भी प्रशिक्षण लिया. एनएसडी के प्रशिक्षक सुधीर कुलकर्णी को मेकअप की कक्षा लेने के लिए आमंत्रित किया गया था. मेकअप प्रशिक्षण के बाद दीपक चौधरी ने कई नाटकों और स्थानीय अलबम में बतौर मेकअप आर्टिस्ट काम किया. इसके बाद उन्हों स्टेज लाइटिंग का भी प्रशिक्षण लिया. लाइट डिजाइनिंग में उनकी रुचि होने के कारण उन्होंने कई नाटकों में लाइट डिजाइन का भी काम किया.
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रीजनल अलबम और फिल्मों में भी काम किया. ‘हमर झारखंड’ और ‘झारखंड का छैला’, ‘कर्मा’ जैसी फिल्मों में अभिनय किया. इसके अलावा दूरदर्शन के सीरियल के साथ बॉलीवुड फिल्मों में अनुपम खेर की ‘रांची डायरीज’ और प्रकाश झा की ‘परीक्षा’ उन्हें अभिनय करने का मौका मिला.
दीपक चौधरी कहते हैं कि अभिनय के मामले में वह खुद को फिल्मों से ज्यादा नाटकों में सहज पाते हैं. वह कहते हैं, ‘मुझे अभिनय के साथ-साथ नाटकों में लाइट डिजाइन करना और मेकअप करना अच्छा लगता है. साथ ही मुझे संगीत का भी शौक है. इसलिए मैंने शास्त्रीय संगीत की भी शिक्षा ली. सीखने-सिखाने में मुझे बहुत आनंद आता है. बच्चों की कई नाट्य कार्यशाला में बतौर प्रशिक्षक काम कर चुका हूं. इसके अलावा भारत सरकार के ‘गीत एवं नाटक प्रभाग’ से भी जुड़कर कई वर्षों तक काम किया.’ अभी वह वसुंधरा आर्ट्स के सचिव और युवा रंगमंच में अभिनेता के तौर पर काम कर रहे हैं.
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दीपक चौधरी कहते हैं कि वह खुद को केवल अभिनेता नहीं मानते. वह खुद को कलाकार मानते हैं. इसलिए अभिनय के अलावा कला क्षेत्र में जहां भी फिट हो सकते हैं, वहां कार्य करते हैं. युवाओं को संदेश देते हुए दीपक चौधरी कहते हैं कि अभिनय के क्षेत्र में, नाटक हो या फिल्म, बहुत भीड़ होती है. वहां धैर्य की बहुत आवश्यकता होती है. अभिनेता ही बनना है, तो अभिनेता बने. एक्टिंग करें, सीखकर एक्टिंग करें. साथ ही कला के अन्य विधाओं में, जिसमें भी रुचि हो, उसमें भी पारंगत होने की कोशिश करें. अभी जमाना मल्टी टैलेंटेड लोगों का है. इससे आप हमेशा व्यस्त रहेंगे.
रंगमंच के क्षेत्र में इतने समय तक काम करने के बाद उन्हें लगता है कि रांची शहर को रंगमंच के क्षेत्र में जितना आगे होना चाहिए था, उतना नहीं हो पाया है. इसकी प्रमुख वजह यह है कि यहां पर नाटकों के लिए ऑडिटोरियम का अभाव है. राजधानी रांची में नाट्य कला को समर्पित एक ऑडिटोरियम हो, तो निश्चित तौर पर यहां के रंगकर्म को बढ़ावा मिलेगा. हमारी सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए.