झारखंड में स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार हो रहा है. पिछले 23 वर्षों में राज्य में मेडिकल कॉलेजों की संख्या तीन से बढ़ कर सात हो गयी है. लेकिन, डॉक्टरों की कमी अब भी बरकरार है. लगातार डॉक्टर घट रहे हैं. वर्तमान में डॉक्टरों के लगभग 55 प्रतिशत पद रिक्त हैं. इसका असर स्वास्थ्य व्यवस्था पर भी पड़ रहा है. झारखंड में डॉक्टरों के 3,691 पद स्वीकृत हैं.
इनमें से 2,028 पद खाली पड़े हैं. फिलहाल राज्य में 1,663 डॉक्टर ही कार्यरत हैं. इधर, सरकार की ओर से रिक्त पदों को भरने की कवायद शुरू की गयी है. स्वास्थ्य विभाग ने अप्रैल माह में 771 नन टीचिंग डॉक्टर व 71 बैकलॉग पदों पर नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू की है. इसको लेकर आवेदन मंगाये गये हैं. अप्रैल माह में सरकार की ओर से 172 आयुष डॉक्टरों को नियुक्ति पत्र दिया गया था.
हेमंत सरकार ने डॉक्टरों की कमी दूर करने के लिए कदम उठाया है. इसके तहत झारखंड के मेडिकल कालेजों में एमबीबीएस की पढ़ाई करने वाले छात्र-छात्राओं को तीन साल तक राज्य में सेवा देना अनिवार्य किया गया है. विद्यार्थियों को नामांकन के समय ही इसका बांड भरना होता है. इसके अलावा जो छात्र स्वेच्छा से 10 वर्ष तक की सेवा झारखंड में देने का बांड भरेंगे, उन्हें मेडिकल पीजी कोर्स में एडमिशन में आरक्षण की सुविधा देने का प्रावधान किया गया. इनके लिए 15 प्रतिशत सीटें आरक्षित की जायेंगी.
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झारखंड में शिशु और मातृत्व मृत्यु दर केंद्रीय औसत से बेहतर है. एसआरएस 2020 के तहत झारखंड में शिशु मृत्यु दर प्रति हजार पर 25 है, जबकि केंद्रीय सूचकांक 28 है. झारखंड में मातृत्व मृत्यु दर 56 है, जबकि केंद्रीय स्वास्थ्य सूचकांक 97 है. झारखंड में नवजात शिशु मृत्यु दर 17 है, जबकि केंद्रीय सूचकांक में यह आंकड़ा 20 है.