रांची : झारखंड गठन के 23 साल में 12 सरकारी विवि और 371 कॉलेज खुल गये. दूसरी ओर राज्य में अब तक 20 प्राइवेट विवि की भी स्थापना हो चुकी है. 371 कॉलेज में 89 अंगीभूत कॉलेज तथा 285 संबद्ध कॉलेज संचालित हैं. विवि में वर्तमान में ग्रास इनरॉलमेंट दर झारखंड में 17 है, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह 27.3 है. विवि व उच्च शिक्षण संस्थानों की बात करें, तो यहां एक केंद्रीय विवि, एक कृषि विवि सहित एक तकनीकी विवि, आइआइएम, ट्रिपल आइटी, लॉ यूनिवर्सिटी भी हैं.
लेकिन अब भी उच्च शिक्षा हासिल करनेवाले विद्यार्थी बाहरी राज्यों की ओर ही जा रहे हैं, जो चिंता का विषय है. इसके कारणों को जानना होगा. जितने भी सरकारी विवि हैं. शिक्षकों व कर्मचारियों की भारी कमी है. प्रत्येक वर्ष शिक्षक व कर्मचारी सेवानिवृत्त हो रहे हैं, लेकिन उस अनुपात में नयी नियुक्ति नहीं हो रही है. दूसरी तरफ विद्यार्थियों की संख्या बढ़ती जा रही है. यूजीसी मानक के अनुसार 25 विद्यार्थी पर एक शिक्षक होना चाहिए, लेकिन राज्य के विवि में वर्तमान में 100 से अधिक विद्यार्थी पर एक शिक्षक हैं.
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वर्ष 2018-19 के आंकड़ों के मुताबिक 73 विद्यार्थी पर मात्र एक शिक्षक थे. अभी भी झारखंड में 18 से 30 वर्ष आयु वर्ग के विद्यार्थियों के लिए एक लाख पर आठ कॉलेज ही उपलब्ध हैं. जबकि राष्ट्रीय स्तर पर 30 कॉलेज उपलब्ध हैं. उच्च व तकनीकी शिक्षा विभाग ने वर्ष 2035 तक सकल नामांकन अनुपात 50 प्रतिशत लाने का लक्ष्य रखा है. लेकिन इस चुनौती को पूरा करने के लिए शहर व ग्रामीण इलाके के संस्थानों के बीच की असमानता को दूर करना होगा.
वर्तमान में अवस्थित संस्थानों के आधारभूत संरचना को दुरूस्त करने होंगे. शिक्षकों व कर्मचारियों के रिक्त पदों को भरना होगा, जबकि नये कोर्स के लिए नये पदों का भी सृजन करना होगा. हालांकि विवि एवं कॉलेजों में असिस्टेंट प्रोफेसर के 2404 रिक्त पदों पर नियुक्ति के लिए विवि के माध्यम से जेपीएससी के पास अधियाचना भेजी गयी है.
दूसरी तरफ विवि के महत्वपूर्ण पद मसलन वीसी, प्रोवीसी, रजिस्ट्रार सहित अन्य पदों पर नियमित नियुक्ति करनी होगी. एक तरफ राज्य सरकार द्वारा प्रति वर्ष 600 करोड़ रुपये से अधिक खर्च करने के बावजूद एक भी सरकारी विवि व कॉलेज राष्ट्रीय मानक पर खरे नहीं उतर पाये हैं. उच्च शिक्षा का हाल सुधारने व विद्यार्थियों का पलायन रोकने के लिए विवि के क्षेत्र को छोटा भी किया गया. काफी प्रयास के बाद 2008 में 750 असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति के बाद अब 2021-22 में जेपीएससी द्वारा शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया शुरू हो पायी है.
शिक्षक नियुक्ति के लिए एक्ट में संशोधन भी किया गया. विवि को यूनिट मान कर आरक्षण रोस्टर तैयार कराया गया. 23 साल में सिर्फ एक बार ही झारखंड पात्रता परीक्षा का आयोजन हो सका है. तकनीकी शिक्षा पर गौर करें, तो स्थिति यह है कि 15 इंजीनियरिंग कॉलेज प्राइवेट व पीपीपी मोड पर चल रहे हैं.
17 से अधिक सरकारी पॉलिटेक्निक कॉलेज बिना स्थायी प्राचार्य के चल रहे हैं. पॉलिटेक्निक कॉलेज में शिक्षकों के 432 स्वीकृत पद में 80 शिक्षक ही कार्यरत हैं. उच्च शिक्षा प्रदान करनेवाले शिक्षण संस्थानों की कमी दूर करनी होगी. झारखंड सरकार ने विद्यार्थियों का उच्च शिक्षा के प्रति रूझान लाने के लिए कई स्कीम भी लाये हैं. इसके तहत गुरुजी स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड, एकलव्य प्रशिक्षण योजना, सीएम शिक्षा प्रोत्साहन योजना आदि शामिल हैं.
विदेश में उच्च शिक्षा ग्रहण करने के लिए भी सरकार ने स्कीम चला रखी है. युवाओं का पलायन का मुख्य कारण रोजगार है. यहां के संस्थानों के विद्यार्थियों को मन मुताबिक अच्छे पैकेज के साथ प्लेसमेंट नहीं होना, रोजगार को अवसर का पैदा नहीं होना, बड़े प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी के लिए अच्छे संस्थानों की कमी भी पलायन का एक कारण है. उच्च व तकनीकी शिक्षा विभाग के आंकड़ों को मानें, तो राज्य में अब तक सात विवि व 145 कॉलेज ही नैक से मान्यता प्राप्त हैं. लेकिन झारखंड में आइएसएम, (आइआइटी) धनबाद, बीआइटी मेसरा, आइआइएम को छोड़ कर कोई सरकारी संस्थान राष्ट्रीय स्तर की रैंकिंग में शामिल नहीं हो सका है.