नामकुम के पुगडू मौजा जमीन खरीद बिक्री मामले में झारखंड सरकार ने SIT की रिपोर्ट खारिज की, जानें क्या है वजह
डीसी छविरंजन ने इस खरीद-बिक्री को गलत बताते हुए एलआरडीसी और सब रजिस्ट्रार को शोकॉज जारी करते हुए उन पर विभागीय कार्रवाई की अनुशंसा की थी.
विवेक चंद्र, रांची :
नामकुम अंचल के पुगडू मौजा में 9.30 एकड़ जमीन की खरीद-बिक्री मामले में गठित एसआइटी की रिपोर्ट को राज्य सरकार ने खारिज कर दिया है. आइएएस अधिकारी ए मुत्थुकुमार की अध्यक्षता में गठित एसआइटी ने उक्त भूमि की रजिस्ट्री को सही करार दिया था. लेकिन, सुप्रीम कोर्ट में चल रहे मामले में राज्य सरकार की ओर से शपथपत्र दाखिल कर एसआइटी की रिपोर्ट को नकार दिया है. कहा है कि भू-राजस्व विभाग के पास उपलब्ध दस्तावेजों के मुताबिक उक्त भूमि खासमहाल प्रकृति की है. इस वजह से उसका रजिस्ट्री या म्यूटेशन नहीं किया जा सकता है.
छविरंजन की भी इस खेल में रही भूमिका :
वर्ष 2019 में पुगडू मौजा की खाता संख्या 93, प्लॉट संख्या-543, 544, 545 और 546 की कुल 9.30 एकड़ जमीन की रजिस्ट्री व्यवसायी विष्णु अग्रवाल के नाम से करायी गयी थी. तत्कालीन डीसी छविरंजन ने इस खरीद-बिक्री को गलत बताते हुए एलआरडीसी और सब रजिस्ट्रार को शोकॉज जारी करते हुए उन पर विभागीय कार्रवाई की अनुशंसा की थी. लेकिन, जब खासमहाल भूमि की अवैध खरीद-बिक्री को आधार बनाते हुए रजिस्टर्ड डीड रद्द करने का केस उपायुक्त के न्यायालय में किया गया, तो छवि रंजन ने केस ही खारिज कर दिया था.
टाइटल सूट वापस लेकर अग्रवाल को बेची गयी थी जमीन
विष्णु अग्रवाल ने पुगड़ू में आशीष कुमार गांगुली और मुबारक हुसैन के पारिवारिक सदस्यों से संयुक्त रूप से जमीन खरीदी थी. दोनों परिवार जमीन बेचने के पूर्व जमीन के मालिकाना हक को लेकर लंबे समय से कानूनी लड़ाई लड़ रहे थे. हालांकि, अग्रवाल को जमीन बेचने के लिए दोनों ने टाइटल सूट वापस ले लिया. जमीन की रजिस्ट्री के बाद अग्रवाल ने म्यूटेशन के लिए आवेदन दिया. परंतु, नामकुम के तत्कालीन सीओ ने आवेदन रिजेक्ट करते हुए जमीन को खास महाल प्रकृति का बताया. इसके बाद राज्य सरकार ने गड़बड़ी की जांच के एसआइटी का गठन किया था.
खासमहाल जमीन का हस्तांतरण नहीं हो सकता
खासमहाल जमीन का मालिकाना हक भारत सरकार के पास होता है. जमींदारी प्रथा समाप्त होने के बाद जब्त जमीन खासमहाल सूची में दर्ज की गयी. वर्ष 1960 से 1980 के बीच सरकार ने हजारों लोगों को जीविकोपार्जन व शैक्षणिक संस्थानों को खासमहाल भूमि लीज पर दी थी. लीज की अनिवार्य इस प्रकृति की जमीन का हस्तांतरण नहीं हो सकता है.