हस्तकला को आज भी जिंदा रखे हुए हैं रांची के अतुल, ‘शिल्पकारी’ नामक स्टार्टअप के जरिये दिला रहे राष्ट्रीय पहचान
अतुल ने बताया कि 25 हजार रुपये के बजट में स्टार्टअप को बिजनेस-टू-बिजनेस (बी-टू-बी) मॉडल पर लांच किया. डिमांड को समय पर पूरा करने के लिए ग्रामीण इलाकों के कारीगरों को प्रशिक्षित कर एकजुट किया
रांची, अभिषेक रॉय:
रोजगार के अभाव में लोक हस्तशिल्प के कारीगर अपने मूल पेशे से कट रहे हैं. इन कारीगरों को नियमित रोजगार देने और इनके जरिये राज्य की हस्तकला जीवित रखने के उद्देश्य से सिमलिया रांची के अतुल कुमार ने 2017 में स्टार्टअप ‘शिल्पकारी’ शुरू की. वे अपने स्टार्टअप के जरिये राज्य के डोकरा आर्ट, टेराकोटा, आदिवासी लोक चित्रकला, मड और बैंबू आर्ट को राष्ट्रीय पहचान देने में जुटे हैं.
नतीजतन 2018 से राज्य के विभिन्न आयोजनों में इनका प्रचलन बढ़ा. अतुल ने बताया कि 25 हजार रुपये के बजट में स्टार्टअप को बिजनेस-टू-बिजनेस (बी-टू-बी) मॉडल पर लांच किया. डिमांड को समय पर पूरा करने के लिए ग्रामीण इलाकों के कारीगरों को प्रशिक्षित कर एकजुट किया. बड़े ऑर्डर पूरा कर कारीगर अपने हुनर से जीविकोपार्जन कर रहे हैं. साथ ही कंपनी कराेड़ों का टर्नओवर हासिल कर रही है.
स्टार्टअप शिल्पकारी दो आइडिया ‘आर्ट एंड क्राफ्ट’ और ‘रूरल कनेक्शन’ को लेकर आगे बढ़ रही है. इससे बाजार में मौजूद प्लास्टिक और मीडियम डेनसिटी फाइबरबोर्ड से बने शो पीस की मांग को स्थानीय लोक हस्तशिल्प से बदला जा रहा है. साथ ही रूरल कनेक्शन के तहत कारीगर खासकर महिला वर्ग को स्व-रोजगार से जोड़ा जा रहा है. कंपनी की डिजाइनिंग और क्वालिटी टीम देख रहे विकास कुमार और निशिका सिंघी कारीगरों के लिए नियमित प्रशिक्षण सत्र का आयोजन कर रहे हैं.
इससे कारीगर अब इको फ्रेंडली इंटीरियर से जुड़कर बेहतर रोजगार हासिल कर रहे हैं. अतुल ने बताया कि स्टार्टअप के जरिये हुए बदलाव से डोकरा व टेराकोटा आर्ट की मांग अब मुंबई, दिल्ली, इंदौर, उदयपुर समेत राजस्थान के अन्य शहरों में होने लगी है.
पॉकेट कारीगरों को किया एकजुट
अतुल ने बताया कि स्टार्टअप के असली हीरो राज्य के हस्तशिल्प से जुड़े कारीगर ही हैं. बीते छह वर्षों में 4000 से अधिक कारीगरों को रोजगार से जोड़ा गया है. इसमें 60% पुरुष और 40% महिलाएं हैं. इनमें मांडर, लोहरदगा, मसानजाेर दुमका और गोला इलाके के कारीगर डोकरा व टेराकोटा आर्ट से जुड़े हैं. बैंबू आर्ट के कारीगरों को चौपारण, जगदीशपुर, करमा, पड़रिया, अनगढ़ा से. ट्राइबल आर्ट के कारीगर हजारीबाग (बड़कागांव), रांची, खूंटी (मुरहू) और लोहरदगा (हिरीह) जैसे ग्रामीण क्षेत्रों से जुड़े हैं.
इन इलाकों में छोटे-छोटे समूह में फैले कारीगरों को प्रशिक्षण सत्र के जरिये एकजुट किया है. इससे स्टार्टअप को मिलने वाले बड़े ऑर्डर कम समय में पूरे किये जा रहे हैं. कई इलाकों में महिलाओं का स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) तैयार किया गया है, जिससे लोगों को काम करने में सुविधा हो रही हैं. नियमित काम से जुड़ रहे कारीगर एक दिन में 550 रुपये और 15 हजार से 18 हजार रुपये से अधिक कमा रहे हैं. अब इन कारीगरों को सस्टेनेबल (टिकाऊ) आर्किटेक्चर से जोड़ा जा रहा है. इससे लोगों के घर और कॉमर्शियल साइट पर होनेवाले फसार्ड और इंटीरियर के काम भी पूरे किये जा रहे हैं.
लोकमंथन 2018 से मिली पहचान
मूल रूप से ब्लॉक कॉलोनी लोहरदगा निवासी अतुल ने बताया कि स्टार्टअप का आइडिया मांडर के डोकरा कारीगरों के पारंपरिक काम को छोड़ अन्य पेशे से जुड़ने से मिला. इसके बाद वे कारीगरों के उत्थान में जुट गये. सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ झारखंड में नैनो टेक्नोलॉजी की पढ़ाई करते हुए स्टार्टअप की नींव रखी. इसे पहचान राजकीय आयोजन लोकमंथन-2018 से मिली. इसके बाद झारखंड आइटी कॉनक्लेव से जुड़कर आइडिया का विस्तार किया.