झारखंड हाइकोर्ट के जस्टिस डॉ एसएन पाठक की अदालत ने सिद्धो-कान्हो विश्वविद्यालय दुमका में संविदा पर कार्यरत शिक्षकों को हटाने को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई की. मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने प्रार्थी का पक्ष सुना. प्रतिवादी राज्य सरकार, झारखंड लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) व सिद्धो-कान्हो विश्वविद्यालय दुमका की ओर से जवाब दायर नहीं करने पर अदालत ने नाराजगी जतायी.
साथ ही चांसलर ऑफ यूनिवर्सिटी व राज्य के सभी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को प्रतिवादी बनाने का निर्देश देते हुए शपथ पत्र दायर करने को कहा. अदालत ने मौखिक रूप से कहा कि संविदा पर कब तक बहाली होगी? नियमित बहाली क्यों नहीं हो रही है? अदालत ने यह भी पूछा कि असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति के लिए क्या जेपीएससी को अधियाचना भेजी गयी है? जेपीएससी को अधियाचना मिली है. मामले की अगली सुनवाई के लिए अदालत ने 10 सितंबर की तिथि निर्धारित की.
इससे पूर्व प्रार्थी की ओर से वरीय अधिवक्ता अजीत कुमार व अधिवक्ता अपराजिता भारद्वाज ने पक्ष रखते हुए अदालत को बताया कि प्रार्थीगण सिद्धो-कान्हो विश्वविद्यालय दुमका में संविदा पर कार्य कर रहे थे. विश्वविद्यालय की ओर से आगे भी संविदा पर नियुक्ति की गयी. जब वे लोग कार्यरत थे, तो उन्हें यह कहते हुए हटा दिया गया कि अब स्थायी नियुक्ति की जायेगी. बाद में संविदा पर नियुक्त शिक्षकों को नहीं हटाया गया.
यदि स्थायी नियुक्ति के लिए संविदा पर कार्यरत शिक्षकों को हटाया जाना जरूरी थी, तो संविदा पर काम कर रहे सभी शिक्षकों को हटाया जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया. विश्वविद्यालय की कार्रवाई गलत है. उस आदेश को निरस्त करने का आग्रह किया गया. वहीं, जेपीएससी की ओर से अधिवक्ता संजय पिपरावाल व अधिवक्ता प्रिंस कुमार ने मौखिक रूप से अदालत को बताया कि विश्वविद्यालय ने रोस्टर क्लियर कर भेजा था, जिसका विज्ञापन वर्ष 2018 में निकाला गया था. वहीं, सिद्धो-कान्हो विश्वविद्यालय की ओर से अधिवक्ता सुभाशीष रसिक सोरेन ने पैरवी की. उल्लेखनीय है कि प्रार्थी प्रसिला सोरेन सहित सात अन्य की ओर से याचिका दायर की गयी है.