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बिजली विभाग के अस्थायी कर्मियों के मुद्दे पर झारखंड हाईकोर्ट सरकार से नाराज, जानें क्या है मामला

झारखंड हाइकोर्ट ने बिजली बिभाग में कार्यरत अस्थायी कर्मियों के नियमितीकरण को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई की. उन्होंने कहा कि 2006 में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने उमा देवी के मामले में फैसला सुनाया था. छह माह के अंदर नियमितीकरण का स्कीम लाने को कहा था

रांची : झारखंड हाइकोर्ट ने राज्य ऊर्जा विकास निगम लिमिटेड में 20 वर्षों से अधिक समय से काम कर रहे अस्थायी कर्मियों के नियमितीकरण को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए कड़ी नाराजगी जतायी. चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन व जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की खंडपीठ ने मौखिक रूप से कहा कि वर्ष 2006 में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने उमा देवी के मामले में फैसला सुनाया था. छह माह के अंदर नियमितीकरण का स्कीम लाने को कहा था,

लेकिन अब तक प्रतिवादी ने नियमितीकरण का फार्मूला तय नहीं किया है. राज्य सरकार द्वारा वर्ष 2016 में बनायी गयी नियमावली व 2019 में संशोधित सेवा नियमितीकरण नियमावली को अंगीकृत करने के लिए ऊर्जा विकास निगम ने अब तक सिर्फ समिति बनाने की दिशा में काम करना शुरू किया है. समिति में राज्य सरकार के अधिकारियों के सदस्य के रूप में मनोनयन का इंतजार किया जा रहा है.

खंडपीठ ने स्थिति पर नाराजगी जताते हुए कहा कि ऐसी स्थिति रही, तो नियमितीकरण के लिए जो वर्ष 2003 से कोर्ट में मुकदमा लड़ रहे हैं, वह अब सेवानिवृत्ति की दहलीज पर पहुंच चुके होंगे. कई कर्मी को रिटायर भी हो गये होंगे. खंडपीठ के रूख को देखते हुए सुनवाई के दौरान उपस्थित राज्य ऊर्जा विकास निगम लिमिटेड के सीएमडी अविनाश कुमार उपस्थित थे.

पिछली सुनवाई के दाैरान कोर्ट ने उपस्थित होने का निर्देश दिया था. उनकी ओर से खंडपीठ को आश्वस्त किया गया कि जुलाई के प्रथम सप्ताह में बोर्ड की बैठक झारखंड ऊर्जा विकास निगम बोर्ड की बैठक बुला कर निर्णय लिया जायेगा. सीएमडी के जवाब को देखते हुए खंडपीठ ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 20 जुलाई की तिथि निर्धारित की.

Posted By: Sameer Oraon

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