झारखंड विधानसभा में नियुक्तियों में हुई गड़बड़ी पर हाइकोर्ट ने सरकार से पूछा ये सवाल
जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद आयोग की रिपोर्ट का अध्ययन करने के लिए एक और आयोग जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय की अध्यक्षता में बना दिया गया.
झारखंड हाइकोर्ट ने झारखंड विधानसभा में हुई नियुक्ति में गड़बड़ी को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की. जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद व जस्टिस अरुण कुमार राय की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई के दाैरान पक्ष सुनने के बाद माैखिक रूप से राज्य सरकार से जानना चाहा कि जस्टिस विक्रमादित्य आयोग की रिपोर्ट मिलने के बाद जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय आयोग क्यों बनाया गया. हाइकोर्ट ने सवाल किया कि यह किस प्रावधान के तहत और किस कारण से किया गया. एक सदस्यीय जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय आयोग की रिपोर्ट पर क्या प्रगति हुई है. खंडपीठ ने राज्य सरकार को बिंदुवार विस्तृत जवाब दायर करने का निर्देश दिया है. वहीं खंडपीठ ने झारखंड विधानसभा से नियुक्ति नियमावली पेश करने को कहा. मामले की अगली सुनवाई के लिए खंडपीठ ने 20 मार्च की तिथि निर्धारित की. इससे पूर्व झारखंड विधानसभा की ओर से अधिवक्ता अनिल कुमार ने पैरवी की. वहीं राज्य सरकार की ओर से बताया गया कि जो रिपोर्ट आयी है, उसे कैबिनेट के समक्ष पेश किया गया है. उस पर कैबिनेट की ओर से कोई निर्णय नहीं लिया गया है. उल्लेखनीय है कि प्रार्थी शिवशंकर शर्मा ने जनहित याचिका दायर की है. प्रार्थी ने मामले में आयोग की रिपोर्ट पर कार्रवाई व सीबीआइ जांच की मांग की है. इसमें कहा गया है कि झारखंड विधानसभा में हुई अवैध नियुक्ति की जांच के लिए जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद की अध्यक्षता में एक सदस्यीय आयोग बना था. आयोग ने मामले की जांच कर वर्ष 2018 में राज्यपाल को रिपोर्ट सौंपी थी. रिपोर्ट के आधार पर राज्यपाल ने विधानसभा अध्यक्ष को कार्रवाई करने का निर्देश दिया था. वर्ष 2021 के बाद से कोई कार्रवाई नहीं की गयी. बाद में जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद आयोग की रिपोर्ट का अध्ययन करने के लिए एक और आयोग जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय की अध्यक्षता में बना दिया गया.
सैपकर्मियों के 60 वर्ष में सेवानिवृत्त करने संबंधी आदेश पर हाइकोर्ट की रोक
झारखंड हाइकोर्ट के जस्टिस डॉ एसएन पाठक की अदालत ने सैप (स्पेशल ऑग्जीलियरी पुलिस) कर्मियों को 60 वर्ष की उम्र में सेवा समाप्त करने संबंधी आदेश को चुनाैती देनेवाली याचिका पर सुनवाई की. इस दाैरान अदालत ने प्रार्थी का पक्ष सुना. इसके बाद अदालत ने 60 वर्ष में सेवानिवृत्त करने संबंधी आदेश पर रोक लगा दी. साथ ही राज्य सरकार को शपथ पत्र के माध्यम से जवाब दायर करने का निर्देश दिया. मामले की अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद होगी. इससे पूर्व प्रार्थी की ओर से अधिवक्ता अपराजिता भारद्वाज ने अदालत को बताया कि सैप की ओर से एक पत्र जारी किया गया है. इसमें 60 वर्ष पूरी करनेवाले कुछ सैपकर्मियों को सेवानिवृत्त करने को कहा गया है. जबकि डीआइजी सैप व समादेष्टा ने स्वयं आदेश निकाला है कि सैपकर्मियों की सेवा अवधि 62 वर्ष तक बढ़ायी जायेगी. ऐसे में सैपकर्मियों को 60 वर्ष में सेवानिवृत्ति करना उचित नहीं है. उन्होंने सेवानिवृत्ति की उम्र सीमा 62 वर्ष करने का आग्रह किया. उल्लेखनीय है कि प्रार्थी सैप के सूबेदार जगदेव नाग व चमरा मिंज ने याचिका दायर की है.