झारखंड हाइकोर्ट के जस्टिस सुभाषचंद्र की अदालत ने क्रिमिनल रिवीजन याचिका पर सुनवाई के बाद फैसला सुनाया. हाइकोर्ट ने निचली अदालत द्वारा डिस्चार्ज पिटीशन खारिज करने के आदेश सहित न्यायिक कार्यवाही को भी निरस्त कर दिया. अपने फैसले में कहा कि शिकायतकर्ता (पीड़िता) पहले से विवाहित थी. वह दूसरे पुरुष के साथ शारीरिक संबंध बनाने के परिणामों से परिचित थी. कोर्ट ने यह स्वीकार करने से इनकार किया कि आरोपी अभिषेक कुमार पाल ने गुमराह कर महिला को सहमत किया था.
कोर्ट ने कहा कि वास्तव में सूचना देनेवाली पीड़िता, जिसकी शादी वर्ष 2018 में हुई थी, ने अपने पूर्व पति से कोई न्यायिक तलाक नहीं लिया था. सक्षम न्यायालय द्वारा इस विवाह को न्यायिक रूप से भंग नहीं किया गया था. विवाह विच्छेद के संबंध में यह समझौता रद्दी कागज के अलावा और कुछ नहीं है, जिसका कानून की नजर में कोई साक्ष्यीय मूल्य नहीं है. चूंकि पीड़िता की शादी 26 अप्रैल 2018 को संपन्न हुई थी, लेकिन विवाह संपन्न होने के बाद भी पीड़िता ने संपर्क जारी रखा और आरोपी के साथ संबंध स्थापित किया.
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इसलिए एफआइआर में लगाये गये आरोपों और जांच अधिकारी द्वारा एकत्र किये गये सबूतों के मद्देनजर अदालत ने कहा कि आरोपी के खिलाफ आइपीसी की धारा-376 के तहत अपराध बनाने के लिए पर्याप्त आधार नहीं है. प्रार्थी का डिस्चार्ज पिटीशन खारिज करने में निचली अदालत द्वारा पारित आदेश अवैध है और इसमें हस्तक्षेप की आवश्यकता है. कोर्ट ने क्रिमिनल रीविजन याचिका को स्वीकार कर लिया.
साथ ही डिस्चार्ज पिटीशन को खारिज करने संबंधी निचली अदालत के आदेश व न्यायिक कार्यवाही को निरस्त कर दिया. इससे पूर्व प्रार्थी की अोर से वरीय अधिवक्ता राजीव शर्मा व अधिवक्ता सुनील कुमार महतो ने पैरवी की. उन्होंने निचली अदालत के आदेश को निरस्त करने का आग्रह किया. उल्लेखनीय है कि एक शादीशुदा पीड़िता ने प्रार्थी अभिषेक कुमार पाल पर बलात्कार का आरोप लगाया था. उसने कहा था कि आरोपी ने शादी का झूठा वादा करके उसके साथ रेप किया है. इस मामले में निचली अदालत ने प्रार्थी की डिस्चार्ज पिटीशन को खारिज कर दिया था.