झारखंड हाईकोर्ट का आदेश, बिना नक्शे वाले न तोड़ें, कार्रवाई करने पहले दे 30 दिनों का समय
रांची में बिना नक्शे के बने घरों को तोड़ने पर लगी रोक. राज्य सरकार को एक सप्ताह में अपीलीय ट्रिब्यूनल गठित करने का दिया गया निर्देश. ट्रिब्यूनल बिना पूर्वाग्रह के सुनवाई करे और हाइकोर्ट के आदेश को उदाहरण नहीं माना जाये
Ranchi News रांची : झारखंड हाइकोर्ट ने जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए रांची में बिना नक्शे के बने मकानों को तोड़ने पर अंतरिम आदेश देते हुए फिलहाल आगे की कार्रवाई नहीं करने का निर्देश दिया. कोर्ट ने कहा कि जब तक अपीलीय ट्रिब्यूनल का गठन नहीं हो जाता है, तब तक नगर आयुक्त के आदेश पर आगे की कार्रवाई नहीं होगी. नागरमल मोदी सेवा सदन अस्पताल, अपर बाजार के मकानों सहित जिन मामलों में नगर निगम के नगर आयुक्त ने मकान तोड़ने का आदेश पारित किया है, उन सभी पर अपीलीय प्राधिकार के गठन होने तक फिलहाल आगे की कार्रवाई नहीं होगी.
वहीं राज्य सरकार को एक सप्ताह के अंदर अपीलीय ट्रिब्यूनल का गठन कर उसे फंक्शनल बनाने का निर्देश दिया. मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन व जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की खंडपीठ में हुई. सुनवाई के दाैरान नगर विकास सचिव विनय चौबे, रांची एसएसपी सुरेंद्र झा, नगर आयुक्त मुकेश कुमार वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से वर्चुअल उपस्थित थे.
खंडपीठ ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से मामले की सुनवाई के दाैरान नगर विकास सचिव से अपीलीय ट्रिब्यूनल के नहीं होने पर सवाल किया. उन्होंने शीघ्र कदम उठाने की बात कही. खंडपीठ ने चेंबर की दलील को सुनने के बाद नाराजगी जताते हुए रांची नगर निगम के अधिवक्ता से पूछा कि क्या कोर्ट ने भवन तोड़ने का आदेश दिया है. कोर्ट के आदेश का रेफरेंस देकर लोगों को नोटिस क्यों भेजा जा रहा है. नगर निगम को कार्रवाई करने के लिए कोर्ट के आदेश की बैशाखी की जरूरत क्यों पड़ रही है.
कोर्ट ने सर्वे करने काे कहा था. नगर निगम की गलतियों का खामियाजा हमारे पास आ रहा है. हमारे ऊपर बर्डेन बढ़ रहा है. खंडपीठ ने कहा कि वह प्रोसिडिंग में हस्तक्षेप नहीं करेगा. नगर आयुक्त निर्णय ले रहे हैं. कुछ कमी दिख रही है. अॉब्जेक्शन को अच्छी तरह से डील किया जाना चाहिए. नेचुरल जस्टिस का उल्लंघन नहीं होना चाहिए.
अपीलीय ट्रिब्यूनल बिना पूर्वाग्रह के सुनवाई करे आैर हाइकोर्ट के आदेश को उदाहरण नहीं माना जाये. कोई भी निर्णय पूरी प्रक्रिया का पालन करते हुए विधिसम्मत लिया जाये. नोटिस में 15 दिन के बदले 30 दिन का समय दिया जाये. खंडपीठ ने कहा कि कोर्ट स्टेट के हित में काम कर रहा है. रांची में पहले पंखे की जरूरत नहीं थी, लेकिन आज स्थिति दूसरी है. आनेवाले समय को देख रहे हैं. पर्यावरण बचे. जंगल बचे, ताकि आनेवाली पीढ़ी का भविष्य सुरक्षित रहे.
इससे पूर्व हस्तक्षेपकर्ता झारखंड चेंबर अॉफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज (चेंबर) की अोर से वरीय अधिवक्ता अनिल कुमार सिन्हा ने खंडपीठ को बताया कि नगर निगम हाइकोर्ट के अादेश का हवाला देकर बिना नक्शे के बने भवनों को तोड़ने का आदेश पारित कर रहा है. भवन कई दशक पुराने बने है. सेवा सदन अस्पताल 1970 के पहले का है. नगर निगम की कार्रवाई से रांची में बिना नक्शे के बने लगभग 1.80 लाख मकानों पर खतरा पैदा हो गया है. रेगुलराइजेशन एक्ट के आलोक में जिन भवन मालिकों ने नगर निगम में आवेदन दिया था, उनका भी भवन अब तक नियमित नहीं किया गया है.
वहीं अधिवक्ता सुमित गाड़ोदिया ने खंडपीठ को बताया कि 1974 से पहले बना हुआ बिल्डिंग है. नेशनल बिल्डिंग कोड को देखते हुए बिहार रीजनल डेवलपमेंट अथॉरिटी एक्ट-1981 लागू किया गया था. बायलॉज 1993 में आया था, जिसमें कहा गया था कि जो भवन बने हुए है, उसे नहीं तोड़ा जायेगा. झारखंड बनने के बाद वर्ष 2002 में भी बायलॉज लाया गया था. इसमें वर्ष 1974 के पहले बने भवनों को नहीं तोड़ने की बात कही गयी है.
नगर निगम की ओर से अधिवक्ता एलसीएन शाहदेव ने पक्ष रखते हुए बताया कि रांची में पहली बार कोई नगर आयुक्त कार्रवाई कर रहा है. कार्रवाई भेदभाव रहित है. राज्य सरकार की अोर से अपर महाधिवक्ता सचिन कुमार ने पक्ष रखा. उल्लेखनीय है कि जलस्रोतों व नदियों की जमीन पर अतिक्रमण को हाइकोर्ट ने गंभीरता से लेते हुए उसे जनहित याचिका में तब्दील किया था. इसी मामले में चेंबर की अोर से हस्तक्षेप याचिका दायर की गयी है.