अवकाश के बावजूद तीन बार बैठी खंडपीठ, सभी इंटरनेट सेवा बंद करने पर झारखंड हाइकोर्ट ने लगायी फटकार
Jharkhand High Court: रविवार को अवकाश होने के बावजूद हाईकोर्ट की बेंच तीन बार बैठी और इंटरनेट बंद को लेकर सुनवाई की. इस दौरान अदालत ने सरकार को जमकर फटकार लगाई.
Jharkhand High Court, रांची : झारखंड सामान्य स्नातक योग्यताधारी संयुक्त प्रतियोगिता परीक्षा के दूसरे दिन 22 सितंबर को सुबह चार बजे से दोपहर साढ़े तीन बजे तक इंटरनेट सर्विस पूरी तरह से बंद करने से जुड़े मैसेज को झारखंड हाइकोर्ट ने गंभीरता से लिया. मामले को लेकर रविवार को अवकाश के बावजूद सुबह नाै बजे जस्टिस आनंद सेन व जस्टिस अनुभा रावत चाैधरी की खंडपीठ बैठी. खंडपीठ ने नाराजगी जताते हुए संबंधित मोबाइल कंपनियों के प्रतिनिधियों को उपस्थित होने का निर्देश दिया. कोर्ट ने कहा कि कल मोबाइल डाटा बंद रहने की बात कही गयी थी, लेकिन रविवार को सुबह से ही इंटरनेट सेवा पूरी तरह से बंद करने का मैसेज मोबाइल कंपनियों की ओर से लोगों को भेजा गया, ऐसा क्यों किया गया?
हाईकोर्ट के निर्देश पर शुरू किया गया इंटरनेट
खंडपीठ दूसरी बार दिन के दस बजे बैठी. मोबाइल कंपनियों की ओर से अधिवक्ताओं ने बताया कि झारखंड सरकार से रात लगभग 1.30 बजे इंटरनेट सेवा बंद करने का निर्देश मिला था. इसके बाद मैसेज जारी कर उपभोक्ताओं को आगाह किया गया. इस पर खंडपीठ ने सुनवाई करते हुए कहा कि 15 मिनट के अंदर इंटरनेट सर्विस शुरू करें. खंडपीठ के निर्देश के बाद इंटरनेट सर्विस चालू कर दिया गया. खंडपीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि इस रिट याचिका के लंबित रहने तक इस कोर्ट की अनुमति के बिना किसी भी परीक्षा के आयोजन के आधार पर झारखंड राज्य में किसी भी रूप में इंटरनेट सुविधा को निलंबित नहीं किया जायेगा. मामले की अगली सुनवाई के लिए खंडपीठ ने 14 नवंबर की तिथि निर्धारित की.
प्रधान सचिव वंदना डाडेल सशरीर उपस्थित होने का दिया था निर्देश
इससे पहले खंडपीठ ने गृह विभाग के प्रधान सचिव वंदना डाडेल को संबंधित फाइल के साथ सशरीर उपस्थित होने का निर्देश दिया. फाइल के साथ प्रधान सचिव वंदना डाडेल के कोर्ट में पहुंचने के बाद फिर मामले की सुनवाई शुरू हुई. खंडपीठ ने कहा कि 21 सितंबर को मामले की सुनवाई के दाैरान राज्य सरकार के जवाब सुनने के बाद विस्तृत आदेश दिया गया था. आदेश के बाद भी राज्य सरकार ने संपूर्ण इंटरनेट सुविधा को निलंबित कर दिया. सरकार की यह कार्रवाई इस न्यायालय द्वारा 21 सितंबर को पारित न्यायिक आदेश का उल्लंघन है.
अदालत ने सरकार की कार्रवाई को बताया कपटपूर्ण कार्रवाई
खास कर तब जब रिट याचिका अभी भी लंबित है. यह इस कोर्ट के साथ किया गया धोखा है और एक कपटपूर्ण कार्रवाई है. जब कोर्ट ने शनिवार 21 सितंबर को समग्र स्थिति पर विचार करते हुए अंतरिम आदेश देने से इनकार कर दिया था, तो कोई आकस्मिक स्थिति होने पर भी सरकार सहित अन्य पक्षों को आदेश में संशोधन के लिए इस कोर्ट से संपर्क करना चाहिए था. 21 सितंबर के आदेश के बाद इंटरनेट की पूरी सेवा बंद करने के लिए राज्य प्राधिकरण द्वारा दिया गया निर्देश वास्तव में इस कोर्ट द्वारा पारित न्यायिक आदेश को निरस्त और संशोधित करता है.
अदालत ने पूछा- कोर्ट के आदेश का बदलाव सरकार द्वारा क्यों किया गया
यह प्रथमदृष्टया आपराधिक अवमानना के बराबर है. खंडपीठ ने मौखिक रूप से पूछा कि कोर्ट के आदेश में बदलाव सरकार द्वारा क्यों किया गया. खंडपीठ ने मामले में बीएसएनएल भवन, भारती एयरटेल, रिलायंस जियो इन्फोकॉम लिमिटेड, वोडाफोन-आइडिया को मामले में प्रतिवादी बनाया. मामले में जोड़े गये सभी नये प्रतिवादियों को शपथ पत्र दायर करने का निर्देश दिया. निर्देश दिया गया कि वे झारखंड सरकार से इंटरनेट सुविधा के निलंबन के संबंध में प्राप्त सभी संचार और निर्देशों को रिकॉर्ड पर लायेंगे. इससे पूर्व प्रार्थी अधिवक्ता राजेंद्र कृष्ण ने सर्विस पूरी तरह से बंद करने का मामला उठाया. वहीं राज्य सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता सचिन कुमार ने पैरवी की. उल्लेखनीय है कि प्रार्थी झारखंड स्टेट बार काउंसिल के अध्यक्ष राजेंद्र कृष्ण ने जनहित याचिका दायर की है.
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