झारखंड हाइकोर्ट ने रिम्स की लचर व्यवस्था और विभिन्न संवर्गों में रिक्त पदों पर नियुक्ति को लेकर स्वत: संज्ञान से दर्ज जनहित याचिका पर मंगलवार को सुनवाई की. इस दौरान चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन और जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की खंडपीठ ने रिम्स प्रशासन को कड़ी फटकार लगायी. साथ ही रिम्स निदेशक की ओर से दायर शोकॉज के जवाब को खारिज कर दिया. सुनवाई के दौरान स्वास्थ्य विभाग के अपर मुख्य सचिव अरुण कुमार सिंह सशरीर उपस्थित थे. अगली सुनवाई छह दिसंबर को होगी.
इससे पूर्व खंडपीठ ने रिम्स प्रशासन की कार्यशैली को लेकर मौखिक रूप से कहा : रिम्स में कई कमियां व खामियां हैं. दो साल से व्यवस्था में सुधार के लिए बार-बार आदेश पारित किया जा रहा है. इसके बावजूद स्थिति बदतर होती जा रही है. रिम्स प्रशासन पर इसका कोई असर नहीं पड़ रहा है. डॉक्टरों की आपस में नहीं बनती है. डॉक्टर अच्छे हैं, लेकिन उनके बीच लड़ाई-झगड़े होते हैं. मरीजों का ठीक से और निष्ठापूर्वक इलाज नहीं हो रहा है.
रिम्स के डॉक्टर प्राइवेट प्रैक्टिस करते हैं, साथ में नॉन प्रैक्टिसिंग एलाउंस (एनपीए) भी लेते हैं. इसे देखनेवाला कोई नहीं है. रिम्स के निदेशक का यहां नहीं रहना इसका मुख्य कारण है. वह रांची के बजाय दिल्ली या विदेश में ज्यादा वक्त बिताना चाहते हैं. ऐसे में रिम्स की हालत कैसे सुधरेगी? रिम्स निदेशक यदि काम नहीं करना चाहते हैं, तो उन्हें रिजाइन कर देना चाहिए. रिम्स की ओर से अधिवक्ता डॉ अशोक कुमार सिंह ने पैरवी की.
सुनवाई के दौरान सशरीर उपस्थित स्वास्थ्य विभाग के अपर मुख्य सचिव अरुण कुमार सिंह से खंडपीठ ने पूछा : रिम्स की व्यवस्था में सुधार क्यों नहीं हो रहा है? उसकी हालत बदतर होती जा रही है. रिम्स ने सरकार को 45 प्रशासनिक पदों का प्रस्ताव भेजा है, उस पर क्या हुआ? हमने रिम्स में स्वीकृत व रिक्त पदों पर नियमित नियुक्ति का आदेश दिया था. इसके बावजूद आउटसोर्सिंग पर नियुक्ति क्यों की गयी? इसके अलावा चतुर्थ वर्गीय पदों पर नियुक्ति के लिए पहले झारखंड के नागरिकों से आवेदन क्यों मांगा गया?
नागरिक भारत का होता है, झारखंड का नहीं. खंडपीठ ने यह भी कहा कि राज्य सरकार ने आउटसोर्सिंग से नियुक्ति के लिए रिम्स को जो संकल्प भेजा था, क्या वह सही निर्णय नहीं था? जबकि, इससे संबंधित मामला अभी कोर्ट में चल रहा है. संकल्प में सरकार की ओर से रिम्स में रेगुलर नियुक्ति व आउटसोर्सिंग दोनों तरीके से नियुक्ति की बात कही गयी थी. इस पर सरकार की ओर से पुनर्विचार करने की बात कही गयी. खंडपीठ ने सेवा नियमितीकरण की मांगवाली याचिकाओं पर आगे सुनवाई करने की बात कही.