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झारखंड: निकाय चुनाव की अधिसूचना तीन सप्ताह में करें जारी, हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को दिया आदेश

झारखंड में निकाय चुनाव जल्द कराने को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गयी थी. अदालत ने निकाय चुनाव की अधिसूचना तीन सप्ताह में जारी करने का आदेश दिया. इस संबंध में निवर्तमान पार्षद रोशनी खलखो और अरुण झा ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी. उनकी ओर से अधिवक्ता विनोद सिंह ने बहस की.

रांची, राणा प्रताप: झारखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को तीन सप्ताह में निकाय चुनाव की अधिसूचना जारी करने का आदेश दिया है. हाईकोर्ट के जस्टिस आनंद सेन की अदालत ने गुरुवार को ये आदेश दिया. झारखंड हाईकोर्ट में निकाय चुनाव जल्द कराने की मांग को लेकर याचिका दाखिल की गयी थी. याचिका की सुनवाई के बाद अदालत ने राज्य सरकार को ये आदेश दिया और निकाय चुनाव को लेकर दाखिल याचिका निष्पादित कर दी. इस संबंध में निवर्तमान पार्षद रोशनी खलखो और अरुण झा ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी. उनकी ओर से अधिवक्ता विनोद सिंह ने बहस की.

पार्षद रोशनी खलखो ने दायर की थी याचिका

निकाय चुनाव कराने को लेकर पार्षद रोशनी खलखो vs झारखंड सरकार मामले में उच्च न्यायालय में दाखिल की गयी याचिका पर जस्टिस आनंद सेन की अदालत ने सुनवाई की. इस मामले में सरकार की ओर से जवाब दाखिल किया गया. जवाब में सरकार द्वारा विकास किशन राव गवली vs महाराष्ट्र सरकार की रिट याचिका संख्या 980/2019 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए कहा गया है कि उस केस में सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि ट्रिपल टेस्ट कराकर ही निकाय/पंचायत चुनाव कराए जाए. इस जवाब पर याचिकाकर्ता के अधिवक्ता विनोद सिंह ने सरकार के जवाब पर जवाब दाखिल किया. उन्होंने कहा कि यह सरकार 74वें एवं अन्य प्रावधानों का उल्लंघन तो कर ही रही है, साथ ही सरकार अब आधे-अधूरे जवाब के साथ अदालत को भी अंधेरे में रख कर दिग्भ्रमित कर रही है.

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संविधान की मूल अवधारणा का हनन है

याचिकाकर्ता के अधिवक्ता विनोद सिंह ने अदालत में कहा कि सरकार विकास किशन राव गवली vs महाराष्ट्र सरकार याचिका का जिक्र तो कर रही है, लेकिन सुरेश महाजन vs मध्य प्रदेश की रिट याचिका संख्या 278/2022 का जिक्र नहीं कर रही है, न ही अपने जवाब में इसको लाया है क्योंकि उस केस में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट आदेश दिया है कि सरकार को ओबीसी आरक्षण ट्रिपल टेस्ट कराकर ही निकाय/पंचायत चुनाव कराना है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि चुनाव ही नहीं कराए जाए, क्योंकि किसी भी परिस्थिति में चुनाव नहीं कराना संविधान की मूल अवधारणा का हनन है. इसलिए ओबीसी आरक्षण कर चुनाव कराना एक प्रक्रिया है लेकिन इसके कारण चुनाव नहीं कराना गलत है.

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