धनबाद शहर में बढ़ते प्रदूषण को लेकर झारखंड हाईकोर्ट गंभीर, शपथ पत्र दायर करने का दिया निर्देश
धनबाद शहर सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में से एक है. प्रदूषण के बढ़ते मामले को लेकर झारखंड हाईकोर्ट में सोमवार को सुनवाई के दौरान झारखंड स्टेट प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने इस बात को स्वीकारा. इस दौरान बोर्ड के पास क्या योजना है. शपथ पत्र के माध्यम से कोर्ट को अवगत कराने का निर्देश दिया गया.
Jharkhand News: झारखंड हाइकोर्ट ने धनबाद शहर में बढ़ते वायु, ध्वनि एवं कोयला प्रदूषण की रोकथाम को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की. चीफ जस्टिस संजय कुमार मिश्र एवं जस्टिस आनंद सेन की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई के दाैरान प्रतिवादी झारखंड स्टेट प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (जेएसपीसीबी) एवं बीसीसीएल की ओर से दायर जवाब को देखा. खंडपीठ ने जेएसपीसीबी से जानना चाहा कि धनबाद में बढ़ते प्रदूषण की रोकने के लिए और क्या-क्या कदम उठाया जा सकता है. उसके लिए बोर्ड के पास क्या योजना है. शपथ पत्र के माध्यम से कोर्ट को अवगत कराने का निर्देश दिया गया. मामले की अगली सुनवाई के लिए खंडपीठ ने 19 जून की तिथि निर्धारित की.
क्या है जेएसपीसीबी व बीसीसीएल के दायर जवाब में
इससे पूर्व प्रार्थी की ओर से अधिवक्ता साैमित्र बारोई ने पैरवी की. उन्होंने खंडपीठ को बताया कि धनबाद राज्य का सबसे अधिक प्रदूषित शहर है. प्रदूषण रोकने के लिए ठोस पहल की जरूरत है. वहीं, झारखंड स्टेट प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड एवं बीसीसीएल की ओर से जवाब दायर किया गया. बोर्ड ने सुनवाई के दौरान स्वीकार किया कि सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में से धनबाद एक है. प्रदूषण रोकने के लिए कई कदम उठाये गये हैं. उसके बारे में खंडपीठ को बताया गया. वहीं, बीसीसीएल की ओर से बताया गया कि माइंस एरिया में कोयला खनन के लिए ड्राई ड्रिलिंग की बजाय वेट ड्रिलिंग का सहारा लिया जा रहा है, ताकि वातावरण में धूलकण की समस्या नहीं रहे. ट्रकों को ढक कर कोयला का परिवहन किया जाता है, ताकि प्रदूषण कम से कम हो.
ग्रामीण एकता मंच ने दायर की है जनहित याचिका
बता दें कि प्रार्थी ग्रामीण एकता मंच धनबाद की ओर से जनहित याचिका दायर की गयी है. याचिका में धनबाद शहर में बढ़ते प्रदूषण को रोकने की मांग की गयी है. प्रार्थी ने कहा है कि धनबाद का एयर क्वालिटी इंडेक्स देखा जाये, तो वह ठीक नहीं है. इंडेक्स देखने से प्रदूषण का स्तर पता चलता है. प्रार्थी ने कहा है कि प्रतिवादियों के पास ऐसा कोई आंकड़ा भी नहीं है, जिससे यह पता चल सके कि उनके द्वारा उठाये गये कदमों से प्रदूषण में कमी आ रही है.