झारखंड हाइकोर्ट ने सरकार से क्यों कहा- पुलिसकर्मियों की ट्रेनिंग चल रही है या सिर्फ कागजों तक ही सीमित?
नियमित रूप से पुलिसकर्मियों की ट्रेनिंग चल रही है या सिर्फ कागजों तक ही सीमित है. खंडपीठ ने नियमित रूप से पुलिसकर्मियों की ट्रेनिंग हो रही है या नहीं. इसे लेकर अदालत ने शपथ पत्र मांगा गया है.
झारखंड हाइकोर्ट ने मध्य प्रदेश पुलिस द्वारा बिना सूचना के गिरफ्तार किये गये लॉ के विद्यार्थी को प्रस्तुत करने को लेकर दायर हैवियस कॉरपस (बंदी प्रत्यक्षीकरण) याचिका पर सुनवाई की. जस्टिस रंगन मुखोपाध्याय व जस्टिस अंबुज नाथ की खंडपीठ ने सुनवाई करते हुए राज्य सरकार से पूछा कि सितंबर में सरकार ने शपथ पत्र दायर कर हर माह में पुलिसकर्मियों को ट्रेनिंग देने की बात कही थी.
नियमित रूप से पुलिसकर्मियों की ट्रेनिंग चल रही है या सिर्फ कागजों तक ही सीमित है. खंडपीठ ने नियमित रूप से पुलिसकर्मियों की ट्रेनिंग हो रही है या नहीं, इसे शपथ पत्र के माध्यम से कोर्ट को अवगत कराने का निर्देश दिया. मामले की अगली सुनवाई के लिए खंडपीठ ने 10 जनवरी की तिथि निर्धारित की.
पूर्व में कोर्ट ने प्रत्येक माह राज्य के पुलिसकर्मियों को अनुसंधान के तरीकों से अवगत कराने, सही दिशा में जांच करने, आइपीसी व सीआरपीसी की धाराओं की विस्तार से जानकारी देते हुए ट्रेनिंग कराये जाने का निर्देश दिया था. कोर्ट का मानना था कि झारखंड पुलिस को कानून की पूरी जानकारी नहीं है. उसे कानून के प्रति प्रशिक्षित किये जाने की जरूरत है. इससे पूर्व प्रार्थी की ओर से अधिवक्ता हेमंत कुमार सिकरवार ने मामले में पैरवी की.
उन्होंने खंडपीठ को बताया कि मध्य प्रदेश पुलिस बोकारो से एक लॉ के छात्र को गिरफ्तार कर ले गयी, लेकिन उसे कोर्ट में पेश नहीं किया गया था. अदालत के ट्रांजिट आदेश के बगैर ही उसे राज्य से बाहर ले जाया गया था, जबकि गिरफ्तारी में पुलिस भी सहयोग कर रही थी.
यह है मामला :
मध्य प्रदेश पुलिस ने 24 नवंबर 2021 को बोकारो से लॉ के छात्र को गिरफ्तार करने के पूर्व परिजनों को इसकी जानकारी नहीं दी. परिजन की जगह रिश्तेदार को गिरफ्तारी की जानकारी दी गयी. आरोप है कि छात्र की गिरफ्तारी के समय पुलिस के पास सिर्फ सर्च वारंट था, जबकि अरेस्ट वारंट अनिवार्य है. इसके बाद छात्र को प्रस्तुत करने के लिए नीलम चौबे ने हाईकोर्ट में हैवियस कॉरपस (बंदी प्रत्यक्षीकरण) याचिका दायर की है.