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रिम्स पर झारखंड हाइकोर्ट की टिप्पणी, व्यवस्था को सुधारने में लग जायेगा जीवन, अस्पताल प्रबंधन को दिया इन बिंदुओं पर जवाब दाखिल करने का निर्देश

लगता है कि रिम्स की व्यवस्था सुधारने में पूरा जीवन लग जायेगा. खंडपीठ ने रिम्स प्रबंधन को विभिन्न बिंदुओं पर छह जुलाई तक जवाब दायर करने का निर्देश दिया. साथ ही राज्य सरकार को भी शपथ पत्र के जरिये जवाब दायर करने को कहा.

By Prabhat Khabar News Desk | July 3, 2021 11:37 AM

Rims Ranchi Latest News रांची : झारखंड हाइकोर्ट ने राज्य में कोरोना वायरस संक्रमण और रिम्स में इलाज की लचर व्यवस्था को लेकर स्वत: संज्ञान से दर्ज जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कड़ी टिप्पणी की. चीफ जस्टिस डॉ रविरंजन और जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की खंडपीठ ने वीडियो काॅन्फ्रेंसिंग से मामले की सुनवाई करते हुए कहा : रिम्स बाहरी व्यवस्था पर निर्भर है. इसे हटाना मुश्किल लगता है. बार-बार कहने के बावजूद रिम्स में सुधार की गति धीमी है.

लगता है कि रिम्स की व्यवस्था सुधारने में पूरा जीवन लग जायेगा. खंडपीठ ने रिम्स प्रबंधन को विभिन्न बिंदुओं पर छह जुलाई तक जवाब दायर करने का निर्देश दिया. साथ ही राज्य सरकार को भी शपथ पत्र के जरिये जवाब दायर करने को कहा.

मामले की अगली सुनवाई आठ जुलाई को होगी. खंडपीठ ने रिम्स कैंपस में दवा दुकानों के मामले में पूछा :

‘प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र’ का शटर क्यों बंद है? कैंपस में ‘दवाई दोस्त’ की दुकान कैसे चल रही है? रिम्स कैंपस के अंदर ‘दवाई दोस्त’ की दुकान चलाने की अनुमति किसने दी है? वह चैरिटेबल संस्था है, इसके क्या प्रमाण हैं? खंडपीठ ने यह भी सवाल किया कि पीएम केयर्स फंड से 50 वेंटिलेटर मिले थे, उनकी अद्यतन स्थिति क्या है? क्या वेंटिलेटर काम कर रहे हैं? यदि नहीं कर रहे हैं, तो उसकी सूचना संबंधित संस्थान को दी गयी है या नहीं?

रिम्स में क्यों नहीं लगाया गया डीएनए सीक्वेंसर : खंडपीठ ने कहा कि कोरोना वायरस के वेरिएंट की पहचान के लिए डीएनए सीक्वेंसर जरूरी है. हर व्यक्ति में कोरोना वायरस के अलग-अलग वेरिएंट हैं. यह कैसे पता चलेगा कि कोई व्यक्ति कौन से वेरिएंट से संक्रमित है. चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन ने कोरोना वायरस की तुलना रक्तबीज से करते हुए कहा कि यह वायरस अपना रूप बदलता (जेनेटिक म्यूटेशन) है.

वायरस के वेरिएंट की पहचान के लिए सैंपल भुवनेश्वर भेजा जाता है. एक माह में जांच रिपोर्ट मिलती है. तब पता चलता है कि व्यक्ति वायरस के किस वेरिएंट से संक्रमित है. खंडपीठ ने सवाल किया कि रिम्स में अब तक डीएनए सीक्वेंसर क्यों नहीं लगाया गया है? रिम्स की ओर से अधिवक्ता डॉ अशोक कुमार सिंह ने पक्ष रखा.

झारखंड हाइकोर्ट ने स्वत: लिया था संज्ञान :

कोरोना संक्रमण को देखते हुए रिम्स में सिटी स्कैन मशीन, कैथ लैब सहित मेडिकल उपकरणों व पारा मेडिकल स्टाफ की कमी को झारखंड हाइकोर्ट ने गंभीरता से लेते हुए उसे जनहित याचिका में तब्दील कर दिया था. हाइकोर्ट के आदेश के बाद अब रिम्स में सीटी स्कैन मशीन, कैथ लैब सहित अन्य मेडिकल उपकरणों की कमी बहुत जल्द दूर हो जायेगी.

Posted By : Sameer Oraon

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