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झारखंड: स्थिति गंभीर हो जाने के बाद सरकारी अस्पतालों में सीधे रेफर नहीं कर पायेंगे निजी अस्पताल, मापदंड तैयार

मरीज अस्पताल से रेफर होने की मन:स्थिति में जब तक नहीं होता है, उसको दूसरे अस्पताल में नहीं भेजा जा सकता है. इस नये मापदंड को पालन करने के लिए शीघ्र कानून बनाया जायेगा.

राजीव पांडेय, रांची :

अब निजी अस्पताल मरीजों की स्थिति गंभीर होने पर सीधे सरकारी अस्पतालों को रेफर नहीं कर पायेंगे. मरीज की स्थिति और परिस्थिति दोनों को मूल्यांकन करने के बाद ही निजी अस्पताल मरीज को सरकारी अस्पताल में रेफर करेंगे. यानी सभी मापदंडों को देखने के बाद यह भी देखना होगा कि मरीज सरकारी अस्पताल तक सही से पहुंच पायेगा या नहीं. नये मापदंड के अनुसार, अस्पताल को यह देखना होगा कि मरीज की सांस की नली ठीक से काम कर रहा है या नहीं. ऑक्सीजन सेचुरेशन, बीपी, शुगर, पल्स रेट, हार्ट रेट ठीक है या नहीं. अगर ये चीजें यह मानक के अनुरूप नहीं है, तो निजी अस्पताल मरीज को सरकारी अस्पताल में रेफर नहीं कर सकते हैं. यही नियम मरीज को एक सरकारी अस्पताल से दूसरे सरकारी अस्पताल भेजने के लिए भी तय किया गया है.

वहीं, मरीज को रेफर करते समय उसकी मानसिक स्थिति का भी ख्याल रखना होगा. मरीज अस्पताल से रेफर होने की मन:स्थिति में जब तक नहीं होता है, उसको दूसरे अस्पताल में नहीं भेजा जा सकता है. इस नये मापदंड को पालन करने के लिए शीघ्र कानून बनाया जायेगा. इस मापदंड को देश के 24 डॉक्टरों की कमेटी ने तैयार किया है, जिसमें रिम्स क्रिटिकल केयर विभाग के अध्यक्ष डाॅ प्रदीप भट्टाचार्या भी शामिल हैं. यह पहली बार है जब राष्ट्रीय स्तर के मापदंड को तैयार करने में झारखंड के किसी डॉक्टर को शामिल किया गया है.

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न्यूनतम आइसीयू सुविधा नहीं, तो भर्ती करना भी मापदंड के विरुद्ध

निजी अस्पतालों का आइसीयू सिर्फ नाम का नहीं होना चाहिए. यहां सुविधाएं मापदंड के अनुरूप होना जरुरी, नहीं तो यह पूरी तरह से गलत माना जायेगा. नये मापदंड के अनुसार अस्पताल के आइसीयू में वेंटिलेटर होना चाहिए. एक्सरे, पैथोलॉजी, इसीजी के जांच की सुविधा भी होनी चाहिए. इसके अलावा ऑक्सीजन सेचुरेशन, न्यूरोलॉजी की समस्या के मॉनिटरिंग की सुविधा, बीपी और शुगर के मॉनिटरिंग की पूरी सुविधा होनी चाहिए.

राज्य के मेडिकल कॉलेजों में रेफर वाले दर्जनों मरीज

झारखंड के सरकारी मेडिकल कॉलेज में सबसे ज्यादा भार गंभीर अवस्था में पहुंचने वाले मरीजों का होता है. निजी अस्पतालों को जब लगता है कि उनसे यह केस संभल नहीं रहा है, तो वह सीधे मेडिकल कॉलेज रेफर कर देते हैं. राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स में प्रतिदिन करीब आधा दर्जन गंभीर मरीज विभिन्न निजी अस्पतालों से आते हैं. इस नये मापदंड से अब इस पर रोक लगने की उम्मीद है.

मरीजों के गंभीर अवस्था में रेफर होकर आने की समस्या सरकारी अस्पतालों में सबसे ज्यादा रहती है. आइसीयू में भी जबरन भर्ती रखने का आरोप लगता है. ऐसे में यह नया मापदंड मरीज और उनके परिजनों को राहत दिलायेगा. 24 डॉक्टरों में शामिल होने मेरे लिए गौरव की बात है.

डॉ प्रदीप भट्टाचार्या, विभागाध्यक्ष, क्रिटिकल केयर, रिम्स

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