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जितिया व खोरठा लोकझूमर के मायने

जितिया परब भी करम परब की तरह मिलता झूलता पर्व है. कहीं करम की डाली तो कही ईख तो कहीं पीपल की डाली से भी इस पर्व को मनाया जाता है.

By Prabhat Khabar News Desk | October 6, 2023 11:59 AM
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डॉ कृष्णा गोप

संस्थापक/अध्यक्ष, खोरठा डहर

भादो के एकादशी करम परब बीतने के ठीक ग्यारह दिन बाद आसीन माह में अष्टमी के दिन मनाया जाने वाला लोकपरब ‘जितिया’ है. झारखंड में भी यह लोकप्रिय है. जनजातीय समुदाय और गैर जनजातीय समुदाय की अपनी भाषा संस्कृति के अनुसार आदिकाल से ही माताएं अपने पुरखों से अपने परिवार की सलामती के लिए इस परब को मनाती आ रही हैं. इस परब में माताएं अपने पुत्र एवं पुत्रियों की दीघार्यु के साथ-साथ प्रकृति से जुड़े रहने का भी संदेश देती हैं. करम परब की तरह ही माताएं गांव के तलाब, नदी या कुआं जो भी नजदीक होती वहां गांव की महिलाएं कतारबंद होकर गीत गाते हुए जाती हैं, जिन्हें ‘पारबतीन’ कहा जाता है. करम परब की तरह ही ‘जावा’ रखती हैं महिलाएं नदी से बालू उठा कर जौ, गेहूं, बूट, उरीद, मकई, मटर, बोदी, बटूरा आदि बुनती हैं. भादो आते ही अखड़ा में झूमर लोकगीतों का मधुर राग और तान भादो के झर और आसीन के झिकोर सबमें जोड़ा मांदर की थाप से अखड़ा झूम उठता है. आश्विन माह शुरू होते ही धान की बालियों में फूलों का आना शुरू हो जाता है. फसलों में फूलों का आना खुशहाली का प्रतीक है.

आंगन ही जनमा लेलय हो जितिया।

दया के सेवा करतय हो जितिया।

माय मोरा बुढ़िया,बहिन ससुरिया।

दया भौजी सेवा करतय हो जितिया।

जितिया परब भी करम परब की तरह मिलता झूलता पर्व है. कहीं करम की डाली तो कही ईख तो कहीं पीपल की डाली से भी इस पर्व को मनाया जाता है. इस लोकगीत में ‘देवर’ झूमर को गाते हुए उदासी और समाधान दोनों की ओर ध्यान अभिव्यक्त करता है. घर के आंगन में माता पिता अब बूढ़े हो चुके हैं. छूटल जा रही जितिया का सेवा कौन करेगा बहन ससुराल में है. फिर आगे कहता है, दया भौजी सेवा करतय हो जितिया जिससे चली आ रही लोकपरंपरा को उम्मीद मिलती है.नवविवाहित बेटी जिस आंगन जाती है एवं जब मां बनती है तो उस घर परिवार में ‘जितिया’ परब मनाने की परंपरा को आगे बढ़ाती है साथ ही अपने जीवन संघर्षों से परिचय कराती है.

सीता के अंगने जितिया गडाइल रे,एहे भाइ।

सीता सुतलय निरा भेद रे,एहे भाई।

का तोहे सीता सुतालय निरा भेद रे, एहे भाइ।

आइ गेलय रावना चोर रे एहे भाइ।

आवे देहूं, आवे देहूं रावना चोर रे, एहे भाइ

मारबे सीकरी उतार रे, एहे भाइ।

मारबे पायल उतराय रे, एहे भाइ।

इस खोरठा लोक झुमर में महिलाओं के अदम्य साहस और सशक्तिकरण की ओर इंगित करता है कि अपने परिवार की सलामती के लिए वर्षों से महिलाएं ही आगे रही हैं.

जितिया परब परिवार के साथ पति पत्नी के रिश्तों को और अधिक मजबूती देने वाली परब के रूप में जाना जाता है. इस झूमर के अनुसार समझ सकतें इस मर्म को

केकर हाथे रंग- रुपे अंगूठी गो

अंगिया चमकल आवे।

केकर मुडे बहुरा फूल गो

खोपवा धमकल आवे।

हाय रे….केकर हाथे…..।

किसके हाथ में रंग रूप की अंगूठी है किसके माथा में खोपा भर फूल है जो धमकता है. जवाब है धनी के हाथे रंग रूप अंगूठी और धनी के माथा में खोपा भर फूल धमकता है. खोरठा लोकझूमर में ऐसे कई झुमर गीत हैं जो पिया के रूठने और मनाने के भी गीत हैं

बिजली चमकय दीया बुते

हाय रे दीया बुते, हाय रे जोड़ी

कइसे खेलब जितिया राती।

अखरा में जोड़ा मांदर बाजो हे

हाय रे,मांदर बाजो हे

कइसे खेलब जितिया राती।

निनही दोसे पिया रूसी गेलय

हाय रे रूसी गेलय…

कइसे खेलब जितिया राती।

जितिया परब जीवन में सुख समृद्धि के साथ अखड़ा में जोड़ा मांदर के थाप, ढोल,नगाड़ो के गहदम आवाज और बांसुरी के मधुर तान से झारखंड झूम उठता है. नवमी के दिन जितिया परब के डाली को विसर्जित किया जाता है. जितिया का माड़ पी ठीक नौ दिन बाद इतनी बारिश होती है कि खेतों में लगी फसलों में उम्मीदों के दाने भरने लगते हैं.

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