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My Mati: आसिन कर अठमी के जितिया गड़ाय रे

जितिया व्रत 18 तारीख को है. जितिया का व्रत संतान प्राप्ति और उनकी दीर्घायु की कामना के लिए किया जाता है. इस दिन माताएं निर्जला व्रत रखकर अपने संतान के लिए लंबी उम्र की कामना करती हैं. आइए जानते हैं झारखंड में जितिया पर्व का क्या महत्व है और इसे कैसे मनाया जाता है...

My Mati: झारखंड बहुरंगी संस्कृति वाला राइज लागे! हिञा बारहों मास कोनो ना कोनो धरम कर परब-तेवहार रहबे करेला. अदमी मने ई परब-तेवहार के बहुत रीझ-रंग से मनायेला. काले कि परब-तेवहार में अदमी मन के बेस-बेस खायक- पियेक, पिधेंक-ओढ़ेक, नाचेक-डेगेक आउर रोज दिन कर रड़म-कचम से भी छुटकारा मिलेला.

ऐहे तेवहार मन में से एगो तेवहार जितिया भी लागे! जेके मांय मने आपन छउवा-पुता मनक खुसी आउर लंबा उमर कर खातिर बरत राखेना आउर पूजा -पाठ करेना. जितिया परब सदान मनक मुध परब लागे. मुदा ई परब के आदिवासी आउर सदान दुइयो मिल के करेना. ई परब के हर छेतर में दोसर- दोसर ढ़ंग से पूजा पाठ करेना. जितिया पूजा के झारखंड राइज कर अलावा बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल आउर पड़ोसी देस नेपाल कर थरूहट आउर मिथिला राइज कर आदमी मने भी बहुत धूम-धाम से करेना.

जितिया पूजा में पारबतीन मन जितपहान बाबा( पिपल वृक्ष या डाली) कर पूजा करेना.जितिया परब हर बछर आसिन महिना कर कृष्ण पख आठमी दिन के होवेला. पारबतीन मने आसिन चढ़त पहिल परिबा के जावा उठायना. भादों कर पूरनिमा दिना गांव कर पइनभरा गोटा गांव में हकवा देवेला. सुना-सुना सउभे पारबतिन मने आइज पूरनिमा हेके हो आउर काइल परिबा हेके. परिबा के सउभे कोई जावा धरबा. हकवा देवेक रिवाज आइज भी गांव-घर में देखेक ले मिलेगा. ई संस्कृति गांव के सहर से अलगे छिनगायला. पइनभरा कर हकवा देवल मोताबिक पारबतीन मने नहाय- धोवाय के भिनसुरे नदी से बाला लानेना ताकि बाला लानेक उ मनके केऊ ना देइख सके. बाला लानल बादे सउब पारबतीन मने मिल जुइल के बांस बलिया में आठ किसिम कर गोटा जौऊ, धान, बूट, मटर, मकई, उरीद, बोदी ,बटूरा के मिलाय के जावा राखेना.

जावा राखल दिन से पारबतीन मने सउब सुख- दुःख के भुलाय के आठ दिन तक जावा कर सेवा करेक आउर रीझ रंग करेक में लाइग जायना. ई बेरा घर में रसून-पेयाज, मीट-मास खायक-पियेक बंद रहेला. ई सब करते जब सतमी दिन आय जायला तो पारबतीन मने नदी, पोखइर,चाहे कुइया में नहाय-धोवाय के नदी-पोखइर कर पीड में चाहे घर कर छाइन में तेल-सेंदूर, झिंगा फूल, दतून, दही, गुर-चिवरा, चिलहो आउर सियार के खाय ले देवेना. इकर बादे पारबतीन मने अपनों गुर, दही-चिवरा खाय के संजोत राखेना. उकर बादे बियारी में आठ किसीम कर तियन आरवा चाउर कर भात, मडूवा कर रोटी खाय-पिके अठमी के निरजला उपास राखेना.

ई पुजा के मुध रूप से बेटा ले करल जायला. ई पुजा के सुहागिन आउर बिधवा दुइयो पारबतीन मने करेना. अगर कोई जितयारी पूजा करेक वाला पारबतीन जितिया पूजा दिन मोइर-हेराय जायना तो उसके मुंह दन से पानी नय देयके कान दन से पानी देवना. ताकि मोरल बादे भी उकर संतान कर परति कठोर तप ना टुटे. अठमी के जब अंगना में जितिया गड़ायला तो पारबतीन मने नवा-नवा लुगा-फाटा पींइध-ओइढ़ के पुवा-धुसका, आठ किसिम कर तियन फल-फूल साइज-गोइज के जितिया झुड कर चारों ओर बइठ के जीतपहान बाबा कर पूजा-पाठ करेना. फिन बामहन से चिलहो आउर सियारीन कर कथा सुइन के पारबतीन मने चिलहो जइसन ईश्वर कर परति सारधा भकति आउर पेरेम राखेना.

आउर जितपहान बाबा से आपन बेटा कर सुख- समरिधि, लंबा उमर आउर सोवासथ जीवन कर बरदान मांगेना. जोन पारबतीन कर बेटा नहीं रहेला आउर उ पूरा बिधि-बिधान से ई पूजा के कइर के जितपहान बाबा से बेटा मांगेला तो उके बेटा मिलेला. राइत-दिन कठोर तप मांय आपन संतान लागिन करेला. फिन जितिया राती. राइत सगर ढ़ाक, नगेरा, मांदर, बंसी, झांझ, करताल के बजनिया मने बजायना आउर पारबतीन मने उदासी भरल गीत गावेना आउर अंगना में रूमसाम झुमइर खेलेना. फिन नवमी चढ़ल से जितपहान बाबा कर भसान करल जायला। भसान करल बादे पारबतीन मने नहाय धोवाय के पूजा में चढ़ाल (गांडा/माला) के आपन संतान के पिंधायना.

नमिता पूनम

(स्नातकोत्तर नागपुरी विभाग, रांची विश्वविद्यालय, रांची)

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